महाराष्ट्र में आईआईटी बॉम्बे के नाम को लेकर राजनीतिक हलचल एक बार फिर तेज हो गई है. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बुधवार को ऐलान किया कि राज्य सरकार इस प्रतिष्ठित संस्थान का नाम बदलकर "आईआईटी मुंबई" करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को पत्र भेजेगी. यह फैसला केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह के उस बयान के बाद आया है, जिसमें उन्होंने आईआईटी बॉम्बे का नाम मुंबई न किए जाने को "अच्छी बात" करार दिया था. इस बयान के बाद महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रमुख राज ठाकरे ने इसे सरकार की मानसिकता का प्रतीक बताया.
आईआईटी बॉम्बे का नाम होगा आईआईटी मुंबई
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने नागपुर में मीडिया से बात करते हुए कहा कि बको पता है कि बीजेपी नेता राम नाइक ने बॉम्बे का नाम मुंबई करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी. हम हमेशा 'मुंबई' कहते हैं, 'बॉम्बे' नहीं. हम लगातार प्रयास कर रहे हैं कि जहां भी 'Bombay' शब्द है, उसे 'Mumbai' से बदल दिया जाए. मैं पीएम और HRD मंत्री को IIT Bombay का नाम बदलकर IIT Mumbai करने के लिए पत्र लिखूंगा.
राज ठाकरे का विरोध
राज ठाकरे ने इस नाम परिवर्तन के प्रस्ताव पर तीखी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व ट्विटर) पर लिखा, मुंबई हमेशा मराठी लोगों की रही है. अब फिर से कोशिश हो रही है कि शहर को महाराष्ट्र से अलग किया जाए. मुंबई का नाम 'मुंबई' उन्हें इसलिए चुभता है क्योंकि यह मुम्बादेवी के नाम पर है. पहले मुंबई, फिर पूरा MMR क्षेत्र गुजरात से जोड़ा जाएगा, मराठी लोग सतर्क हो जाएं.
MNS का विरोध: "IIT Mumbai" का बैनर
इस विवाद के बीच महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) ने अपनी प्रतिक्रिया जताते हुए बुधवार को आईआईटी बॉम्बे के बाहर एक बैनर लगा दिया. इस बैनर पर "IIT Mumbai" लिखा था, जो प्रतीकात्मक रूप से इस नाम परिवर्तन के समर्थन में था. MNS के कार्यकर्ताओं ने यह कदम सरकार के फैसले को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट करने के रूप में उठाया.
मुंबई नाम कब हुआ था आधिकारिक?
दिलचस्प बात यह है कि मुंबई का नाम पहले बॉम्बे हुआ करता था. हालांकि, 1995 में महाराष्ट्र सरकार ने इस शहर का आधिकारिक नाम "मुंबई" रखा. इस बदलाव के पीछे एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण था, जिसमें स्थानीय देवी मुम्बादेवी के सम्मान में इस नाम को अपनाया गया. यह कदम औपनिवेशिक प्रभावों को समाप्त करने और भारतीय सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास था.
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