उत्तर प्रदेश की पुलिस एक बार फिर अपनी लापरवाही के चलते चर्चा में है. इस बार मामला इतना अजीब है कि कानून भी शर्मिंदा हो जाए. फिरोजाबाद में एक पुलिस अफसर ने चोरी के आरोपी को पकड़ने की जगह खुद कोर्ट की जज को ही आरोपी बना डाला.
क्या है पूरा मामला?
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने चोरी के आरोपी राजकुमार उर्फ पप्पू के खिलाफ CRPC की धारा 82 के तहत पेशी का उद्घोषणा पत्र (Proclamation Notice) जारी किया था. यह नोटिस तब जारी होता है जब कोई आरोपी फरार हो और पुलिस उसे पकड़ न पाए. इस नोटिस को आरोपी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी सब-इंस्पेक्टर बनवारीलाल को दी गई थी. लेकिन उन्होंने ऐसा कारनामा कर दिया कि सभी चौंक गए.
जज को ही समझ लिया आरोपी!
पुलिस अफसर ने बिना समझे-बूझे उद्घोषणा पत्र में आरोपी के नाम की जगह उस जज का नाम ही लिख दिया जिन्होंने ये आदेश जारी किया था — यानी मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नगमा खान. इतना ही नहीं, सब-इंस्पेक्टर साहब ने तो इसे गिरफ्तारी वारंट (नॉन बेलेबल वारंट) समझ लिया और जज नगमा खान की तलाश में निकल पड़े. रिपोर्ट में उन्होंने बाकायदा लिख भी दिया आरोपी नगमा खान उनके घर पर नहीं मिलीं, कृपया अगली कार्रवाई की जाए.
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कोर्ट का सख्त रुख
23 मार्च को जब यह फाइल कोर्ट में पहुंची तो पूरा मामला सामने आया. कोर्ट ने इस पर सख्त नाराज़गी जताते हुए कहा कि इस पुलिस अफसर को न तो प्रक्रिया की जानकारी है और न ही ये समझ है कि आदेश किसके खिलाफ जारी हुआ है. यह सीधी-सीधी ड्यूटी में लापरवाही है.
क्या आदेश दिया कोर्ट ने?
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने अपने आदेश में लिखा. अगर ऐसे लापरवाह पुलिस वालों पर सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो ये किसी भी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकते हैं. बिना पढ़े आदेश को गैर-जमानती वारंट समझना और फिर जज का नाम आरोपी के रूप में दर्ज करना, ये साबित करता है कि अफसर ने आदेश पढ़ने तक की कोशिश नहीं की. कोर्ट ने इसे एक गंभीर चूक मानते हुए आईजी को निर्देश दिया है कि इस मामले में विभागीय जांच कराई जाए और संबंधित अफसर पर सख्त कार्रवाई की जाए.