Ahmedia Muslims in Pakistan: ईद का पर्व जहां पूरी दुनिया में भाईचारे, इबादत और कुर्बानी का प्रतीक माना जाता है, वहीं पाकिस्तान में एक बार फिर यह दिन धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए पीड़ा और अपमान का कारण बन गया. लाहौर से कराची तक अहमदिया समुदाय के मुसलमानों को सिर्फ इसलिए गिरफ्तार किया गया क्योंकि उन्होंने ईद-उल-अजहा की नमाज अदा की और परंपरागत कुर्बानी की रस्म निभाई.
नमाज पढ़ना, कुर्बानी देना अपराध
लाहौर के बागबानपुरा इलाके से सामने आई तस्वीरों में साफ दिख रहा है कि पुलिस ने दर्जनों अहमदिया मुसलमानों को मस्जिद से बाहर निकालकर हिरासत में ले लिया. नमाज पढ़ना ही उनका अपराध बन गया. इसके बाद जिस मस्जिद में नमाज अदा की गई थी, वहां पुलिस ने ताला जड़ दिया. उसी दौरान तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) के कार्यकर्ता बाहर खड़े होकर कट्टर नारेबाजी करते नजर आए.
कुर्बानी का जानवर भी उठा ले गई पुलिस
पुलिसिया कार्रवाई सिर्फ लाहौर तक सीमित नहीं रही. सरगोधा जिले के सिलनवाली कस्बे में भी एक अहमदिया परिवार को कुर्बानी देने के आरोप में टारगेट किया गया. पुलिस न केवल घर में घुसी, बल्कि कुर्बानी का जानवर जब्त कर ले गई. कराची में भी TLP कार्यकर्ताओं और स्थानीय पुलिस ने एक अहमदिया परिवार के घर पर धावा बोला.
पाक संसद ने अहमदियों को घोषित किया गैर-मुस्लिम
यह घटनाएं सिर्फ धार्मिक असहिष्णुता नहीं बल्कि मानवाधिकारों के खुलेआम उल्लंघन का उदाहरण हैं. जिन्ना ने जिस पाकिस्तान का सपना अहमदिया मुसलमानों को दिखाया था, वो सपना एक डरावने हकीकत में बदल चुका है. 1974 में अहमदियों को पाकिस्तान की संसद ने गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया और 1984 में लागू ‘ऑर्डिनेंस XX’ के तहत उनके लिए मुसलमान कहलाना, नमाज पढ़ना, इस्लामी अभिवादन करना, यह सब अपराध बना दिया गया.
आज स्थिति यह है कि अगर कोई अहमदिया मुसलमान खुद को मुसलमान कह दे तो उसे जेल और जुर्माना दोनों झेलना पड़ सकता है. हर साल की तरह इस बार भी अहमदिया समुदाय को ईद की इबादत और परंपराओं से रोका गया, जो न केवल पाकिस्तान के भीतर कट्टरता की गहराई को दिखाता है, बल्कि यह भी बताता है कि धार्मिक स्वतंत्रता और समानता जैसे मूल अधिकार अब वहां केवल किताबों में बचे हैं.
कौन हैं अहमदिया मुसलमान?
अहमदिया मुसलमान एक ऐसा समुदाय है जो इस्लाम की बुनियादी शिक्षाओं को मानते हुए भी मुख्यधारा मुस्लिमों से थोड़े मतभेद रखते हैं. इनका विश्वास है कि मिर्जा गुलाम अहमद अल्लाह के भेजे गए मसीहा हैं, जबकि पारंपरिक मुस्लिम पैगंबर मुहम्मद को अंतिम नबी मानते हैं. 1889 में भारत के कादियान गांव से शुरू हुए इस आंदोलन के अनुयायी अब 200 से अधिक देशों में फैले हैं. अहमदिया मुस्लिमों की आबादी लगभग दो करोड़ है और ये समुदाय शांति, भाईचारे और धार्मिक सहिष्णुता के लिए जाना जाता है, हालांकि कई देशों में इन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ता है.
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