दुनिया के 20 ताकतवर नेताओं से मिलेंगे जिनपिंग, मोदी-पुतिन भी होंगे शामिल, अब ट्रंप को लगेगी मिर्ची!

    चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग 31 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक चीन के तियानजिन शहर में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के वार्षिक शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने जा रहे हैं.

    Jinping will meet 20 powerful leaders of the world
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ ANI

    बीजिंग: चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग 31 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक चीन के तियानजिन शहर में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के वार्षिक शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने जा रहे हैं. यह सम्मेलन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहद अहम माना जा रहा है, जिसमें विश्व के 20 से अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्ष भाग लेंगे. सम्मेलन का उद्देश्य न केवल आपसी आर्थिक और सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देना है, बल्कि वैश्विक राजनीति में शक्ति संतुलन को पुनर्परिभाषित करने का भी एक मंच बन सकता है.

    इस बैठक में जिन बड़े नेताओं के हिस्सा लेने की पुष्टि हुई है, उनमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, और तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन प्रमुख रूप से शामिल हैं. इसके अलावा ईरान, कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, बेलारूस जैसे सदस्य देशों के प्रमुख भी इसमें शिरकत करेंगे. यह सम्मेलन चीन के लिए एक अहम कूटनीतिक अवसर है, जिसे वह अमेरिका के बढ़ते दबाव और वैश्विक नीतियों के खिलाफ एकजुटता दिखाने के रूप में देख रहा है.

    चीन की अमेरिका को घेरने की रणनीति

    सम्मेलन से पहले चीन के सहायक विदेश मंत्री लियू बिन ने एक प्रेस ब्रीफिंग के दौरान साफ संकेत दिए कि चीन इस मंच का उपयोग अमेरिका की नीतियों के खिलाफ वैश्विक विरोध को एकजुट करने के लिए करेगा. उन्होंने अमेरिका पर आरोप लगाया कि वह बार-बार अपनी राष्ट्रीय हितों को वैश्विक समुदाय के हितों से ऊपर रखता है, जिससे वैश्विक स्थिरता को खतरा पहुंचता है.

    लियू बिन ने इस बात पर जोर दिया कि शंघाई सहयोग संगठन "शीत युद्ध की मानसिकता", "सभ्यताओं के टकराव" और "जीरो-सम गेम" जैसे पुराने विचारों को नकारता है और बहुपक्षीय सहयोग को प्राथमिकता देता है. उनका इशारा साफ था कि अमेरिका द्वारा शुरू किए गए व्यापार युद्ध, टैरिफ नीतियां और एकतरफा फैसले विश्व व्यवस्था के लिए चुनौती बन चुके हैं.

    रणनीति, सुरक्षा और व्यापार पर फोकस

    इस बार के शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों के बीच कई अहम मुद्दों पर चर्चा होगी:

    संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर – सदस्य देश वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों पर साझा रुख तय करने वाले एक संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करेंगे.

    एससीओ विकास रणनीति की मंजूरी – आने वाले वर्षों के लिए संगठन की दीर्घकालिक रणनीति को अंतिम रूप दिया जाएगा.

    सुरक्षा सहयोग – सीमा पार आतंकवाद, साइबर सुरक्षा और ड्रग तस्करी जैसे मुद्दों पर सहयोग को और मजबूत किया जाएगा.

    आर्थिक साझेदारी – सदस्य देश व्यापार, निवेश, ऊर्जा और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के उपायों पर चर्चा करेंगे.

    इसके अलावा सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन, आपदा प्रबंधन, स्वास्थ्य और तकनीकी सहयोग जैसे नए क्षेत्रों को भी शामिल किए जाने की संभावना है.

    भारत और एससीओ: एक सक्रिय भूमिका

    भारत ने 24 जून 2016 को औपचारिक रूप से एससीओ की सदस्यता हासिल की थी. तब से भारत ने संगठन के भीतर कई अहम पहलों में योगदान दिया है. भारत न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा में बल्कि संपर्क (connectivity), ऊर्जा सहयोग और आतंकवाद विरोधी अभियानों में भी एक सक्रिय भूमिका निभा रहा है.

    भारत का एससीओ में शामिल होना उसके ‘मल्टी-वेक्टर डिप्लोमेसी’ की रणनीति का हिस्सा माना जाता है, जिसमें वह पश्चिमी देशों के साथ-साथ रूस और चीन जैसे देशों से भी संतुलित संबंध बनाए रखना चाहता है.

    एससीओ: एक बढ़ता हुआ संगठन

    शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना 2001 में चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान द्वारा की गई थी. धीरे-धीरे इसमें भारत, पाकिस्तान, ईरान और बेलारूस जैसे देश भी शामिल हो गए. मंगोलिया और सऊदी अरब जैसे देश पर्यवेक्षक (observer) के रूप में जुड़े हुए हैं.

    इस संगठन का मुख्य उद्देश्य क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक सहयोग, और आपसी विश्वास को बढ़ाना है. एससीओ की ताकत इस बात में है कि यह एशिया के प्रमुख शक्तिशाली देशों को एक मंच पर लाता है और पश्चिमी गठबंधनों के विकल्प के रूप में उभर रहा है.

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