इस्लामाबाद: पाकिस्तान के पहले इकोनॉमिक सेंसस ने एक ऐसा सच सामने रखा है, जिसने न केवल नीति-निर्माताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया है, बल्कि आम लोगों और विश्लेषकों के बीच भी गहरी बहस छेड़ दी है. इस सर्वे के आंकड़ों से साफ होता है कि देश में धार्मिक गतिविधियों का प्रसार आर्थिक विकास की तुलना में कहीं अधिक हुआ है. सेंसस में सामने आया है कि पूरे देश में जहां 6 लाख से ज्यादा मस्जिदें मौजूद हैं, वहीं फैक्ट्रियों और उत्पादन इकाइयों की संख्या महज 23,000 के करीब है.
इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान ने बीते दशकों में औद्योगिक विकास और आर्थिक उत्पादन के बजाय धार्मिक संस्थानों के निर्माण पर अधिक ध्यान दिया. क्या यही वजह है कि आज पाकिस्तान बार-बार आर्थिक संकट की ओर लौट जाता है?
मस्जिदों की भरमार, फैक्ट्रियों की भारी कमी
पाकिस्तान के इस पहले इकोनॉमिक सर्वे में धार्मिक स्थलों और मदरसों की संख्या चौंकाने वाली है. जहां देशभर में 6,00,000 से अधिक मस्जिदें मौजूद हैं, वहीं 36,000 से अधिक धार्मिक मदरसे भी दर्ज किए गए हैं. ये आंकड़े बताते हैं कि पाकिस्तान की नीतियों में शिक्षा, विज्ञान, उद्योग और तकनीक की तुलना में धार्मिक निर्माण को कहीं अधिक महत्व दिया गया.
इसके विपरीत पूरे देश में सिर्फ 23,000 फैक्ट्रियां हैं, जो इस बात की गवाही देती हैं कि औद्योगीकरण की दिशा में पाकिस्तान ने अपेक्षाकृत कम निवेश किया है. जबकि छोटे स्तर की उत्पादन इकाइयों की संख्या लगभग 6.43 लाख है, लेकिन उनमें से अधिकांश पारंपरिक, अल्प-प्रौद्योगिकी और कम रोजगार देने वाले प्रतिष्ठान हैं.
आर्थिक ढांचे में पंजाब का वर्चस्व
सेंसस से यह भी स्पष्ट हुआ है कि पाकिस्तान के आर्थिक और बुनियादी ढांचे में सबसे अधिक भागीदारी पंजाब प्रांत की है. देश की कुल 4 करोड़ स्थायी इकाइयों में से 58% पंजाब में स्थित हैं. पंजाब में 1.36 करोड़ कार्यरत कर्मचारी हैं, जो सेवा और उत्पादन दोनों क्षेत्रों में सबसे आगे हैं.
इसके बाद सिंध आता है, जहां करीब 5.7 मिलियन (57 लाख) लोग काम कर रहे हैं. खैबर पख्तूनख्वा में 40 लाख और बलूचिस्तान में महज 14 लाख कर्मचारी कार्यरत हैं. इस्लामाबाद की भागीदारी सबसे कम सिर्फ 1% दर्ज की गई.
रोजगार का असमान वितरण
सर्वे में रोजगार संरचना को भी विस्तार से दिखाया गया है. इसके अनुसार, 70 लाख से अधिक आर्थिक इकाइयां केवल 1 से 50 लोगों को ही रोजगार देती हैं, जो बताता है कि पाकिस्तान में छोटे स्तर के व्यापार का वर्चस्व है. वहीं, 250 से अधिक लोगों को रोजगार देने वाली इकाइयों की संख्या मात्र 7,086 है.
51 से 250 लोगों को रोजगार देने वाली इकाइयों की संख्या भी महज 35,351 है. इससे यह स्पष्ट होता है कि बड़ी औद्योगिक इकाइयों की कमी है, और देश में व्यवस्थित औद्योगीकरण का अभाव बना हुआ है.
शिक्षा बनाम धार्मिक शिक्षा
शिक्षा के क्षेत्र में भी असंतुलन दिखता है. पूरे देश में जहां 242,616 स्कूल दर्ज हैं, वहीं केवल 11,568 कॉलेज और 214 विश्वविद्यालय ही हैं. इसके मुकाबले 36,331 मदरसे मौजूद हैं, जिनका असर पाकिस्तान की सामाजिक संरचना और रोजगार पर भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है.
आधुनिक उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के बजाय धार्मिक शिक्षा के विस्तार ने युवा पीढ़ी के कौशल विकास और तकनीकी दक्षता को सीमित कर दिया है, जिससे उनकी ग्लोबल रोजगार बाजार में भागीदारी घटती जा रही है.
हेल्थ, बैंकिंग और अन्य प्रतिष्ठान
स्वास्थ्य और बैंकिंग जैसी बुनियादी सेवाओं का आंकड़ा भी इस असंतुलन को उजागर करता है. देशभर में 119,789 अस्पताल हैं, जिनमें से अधिकांश प्राइवेट सेक्टर के हैं. बैंकिंग सेक्टर में कुल 19,645 बैंक इकाइयां दर्ज की गई हैं.
व्यापार क्षेत्र में 27 लाख से अधिक खुदरा दुकानें, 1.88 लाख थोक विक्रेता, और 2.56 लाख होटल शामिल हैं, जो यह दिखाता है कि देश में खुदरा और असंगठित क्षेत्र का वर्चस्व है.
पाकिस्तान के भविष्य के बारे में क्या कहता है सेंसस?
पाकिस्तान के इस पहले आर्थिक सर्वेक्षण से यह स्पष्ट होता है कि नीतिगत प्राथमिकताओं में गहरी असमानता रही है. धर्म और आस्था के नाम पर बड़ी संख्या में मस्जिदें और मदरसे जरूर बनाए गए, लेकिन व्यवसायिक और तकनीकी विकास के लिए आवश्यक ढांचे जैसे विश्वविद्यालय, फैक्ट्रियां, R&D केंद्र, स्टार्टअप्स और औद्योगिक कॉरिडोर को वह समर्थन नहीं मिला जिसकी देश को आवश्यकता थी.
विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक पाकिस्तान धार्मिक भावना और आधुनिक आर्थिक रणनीति के बीच संतुलन नहीं बनाएगा, तब तक वह स्थायी आर्थिक विकास की राह पर नहीं बढ़ पाएगा.
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