जापान में पिछले कुछ दशकों से बच्चों को अनोखे, चमकदार और हटकर नाम देने का चलन तेजी से बढ़ रहा था. इन खास नामों को वहां "किराकिरा नेम्स" कहा जाता है, यानी ऐसे नाम जो दिखने और सुनने में एकदम अलग और आकर्षक हों. लेकिन अब इस ट्रेंड पर लगाम लगाने के लिए जापान सरकार ने नए सख्त नियम लागू कर दिए हैं.
क्या हैं 'किराकिरा नेम्स' और क्यों बढ़ी परेशानी?
जापान में अधिकतर नाम कनजी (चीनी मूल की लिपि) में लिखे जाते हैं, जिनमें एक ही अक्षर के कई उच्चारण हो सकते हैं. ‘किराकिरा’ नामों की समस्या तब शुरू होती है जब माता-पिता केवल नाम की ध्वनि पर ध्यान देते हैं, लेकिन उसके लिए कोई भी कनजी चुन लेते हैं – भले ही वो उस उच्चारण से मेल न खाता हो.
उदाहरण के लिए, कुछ माता-पिता अपने बच्चे का नाम ‘पिकाचू’ जैसा रख देते हैं और उसके लिए कोई कनजी लिख देते हैं, जो उस नाम के उच्चारण से जुड़ा नहीं होता. ऐसे नाम स्कूलों, अस्पतालों, और सरकारी दफ्तरों में भ्रम पैदा करते हैं. टीचर्स को हाजिरी लेने में दिक्कत होती है, नर्सों को बच्चों को पुकारने में परेशानी होती है, और बैंक या प्रशासनिक कामकाज में रुकावट आती है.
अब क्या कहता है नया नियम?
जापान की सरकार ने साफ कर दिया है कि अब बच्चों के नाम रजिस्टर कराते समय उसका उच्चारण भी स्पष्ट रूप से बताना होगा. अगर दिया गया उच्चारण उस कनजी के पारंपरिक या सामान्य उच्चारण से मेल नहीं खाता, तो या तो नाम रिजेक्ट कर दिया जाएगा या माता-पिता को अतिरिक्त दस्तावेज़ और प्रक्रिया से गुजरना होगा. इस कदम का उद्देश्य है कि नाम पढ़ने, समझने और बोलने में आसानी हो और बच्चों को बाद में अपने नाम की वजह से किसी शर्मिंदगी या मजाक का सामना न करना पड़े.
सोशल मीडिया पर राय बंटी हुई
सरकार के इस फैसले के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है. कुछ लोगों का मानना है कि यह माता-पिता के अधिकारों में हस्तक्षेप है – उनका कहना है कि बच्चों के नामकरण का अधिकार पूरी तरह परिवार का होना चाहिए. वहीं दूसरी ओर, बड़ी संख्या में लोग इस फैसले का समर्थन कर रहे हैं. उनके अनुसार यह एक ज़रूरी कदम है जिससे समाज में व्यवहारिक समस्याओं से निपटा जा सकेगा.
जापान में नामों को लेकर विवाद कोई नई बात नहीं
यह पहला मौका नहीं है जब जापान में नामों को लेकर बहस छिड़ी हो. वहां आज भी कानून के तहत शादी के बाद पति-पत्नी को एक ही सरनेम रखना होता है, और अधिकतर मामलों में महिलाएं पति का सरनेम अपनाती हैं. अब जब फर्स्ट नेम पर भी नियंत्रण की शुरुआत हो चुकी है, तो साफ है कि जापानी समाज में नामकरण की संस्कृति एक नए दौर में प्रवेश कर रही है.
यह भी पढ़ें: मस्क ने छोड़ा ट्रंप का साथ, अब DOGE का क्या होगा; क्या लग जाएगा ताला?