एक ताज़ा रिपोर्ट से पता चला है कि क़तर की राजधानी दोहा में हमास के नेताओं को निशाना बनाने वाले इज़रायली ऑपरेशन के बारे में अमेरिका को जानबूझकर उस वक्त सूचित किया गया जब उसके पास कोई विकल्प हाथ में न हो. वॉल स्ट्रीट जर्नल ने वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से इस ऑपरेशन की पूरी रूपरेखा जारी की है.
रिपोर्ट के अनुसार, इस हमले में इज़रायल ने लाल सागर के ऊपर से बैलिस्टिक मिसाइलें दागी थीं. ये मिसाइलें दक्षिण दिशा से उड़ान भरकर अरब प्रायद्वीप को पार करके दोहा की ओर गईं. कुल मिलाकर आठ F‑15 और चार F‑35 लड़ाकू विमानों ने इसमें हिस्सा लिया. विमानों ने उड़ान भरी, मिसाइलें फायर कीं और यह पूरा ऑपरेशन तेज़ी से अंजाम दिया गया ताकि अमेरिका को असमय सूचना मिल सके.
अमेरिका को सूचनाएँ इतनी देर से मिली कि कोई प्रतिक्रिया न हो सके
अमेरिकी अधिकारियों ने बताया कि मिसाइल लॉन्च होते ही सूचना मिली, लेकिन इस तरह की सूचना इतनी करीब थी कि कोई आदेश पलटना या रोकना संभव नहीं था. अमेरिका ने न तो टारगेट की सटीकता पहले से देखी थी और न ही समय मिला कि कार्रवाई की योजना बनाई जा सके. अमेरिका के स्पेस‑आधारित संवेदन (sensors) ने मिसाइलों के हीट सिग्नेचर — यानी तापमान संकेत से यह पहचान की कि लक्ष्य दोहा हो सकता है.
प्रेरणा और समय‑बद्धता: क्यों अमरीका को समय नहीं मिला
इज़रायल ने यह हमला उस दौर में किया जब दोहा में हमास के नेता विभिन्न देशों की मध्यस्थता प्रस्तावों और युद्ध विराम की संभावनाओं पर चर्चा कर रहे थे. अमेरिका ने गाज़ा में युद्ध विराम की एक संकल्पना पर विचार मंथन कर रही थी. इस बीच इज़रायली हमले ने इस प्रक्रिया को बाधित कर दिया.
परिणाम और विवाद: जान-माल की हानि और सवालों की बौछार
हमले में कम‑से‑कम छह लोग मारे गए हैं. यह घटना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवादित मानी जा रही है क्योंकि इस तरह के देर से दी गई सूचनाएँ कूटनीति और सुरक्षा सिद्धांतों पर प्रश्न खड़े करती हैं. अमेरिकी रक्षा अधिकारी ने इस ऑपरेशन को "बिल्कुल अकल्पनीय" बताया है. इसलिए कि यह उस सीमा तक की कार्रवाई थी जिसे सामान्य कूटनीतिक आदान‑प्रदान से नहीं टाला जा सकता था.
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