इजराइल के कई शहरों में बीते दिन जनता का गुस्सा फूट पड़ा. राजधानी तेल अवीव समेत विभिन्न हिस्सों में हजारों लोग गाजा में युद्धविराम और हमास के कब्जे में मौजूद बंधकों की सुरक्षित रिहाई की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए. प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू इस मुद्दे पर गंभीरता नहीं दिखा रहे और राजनीतिक अड़चनों के चलते बंधकों की जान जोखिम में डाल रहे हैं.
प्रदर्शन में भाग लेने वाले कई परिजनों ने कहा कि सरकार के पास समझौता करने का अवसर है, लेकिन नेतन्याहू की जिद और राजनीति इस मानवीय संकट को और गहरा कर रही है. लिरन बर्मन, जिनके दो छोटे भाई गली और जिव बर्मन 7 अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा अगवा किए गए थे, भी इस प्रदर्शन में शामिल हुए. उन्होंने कहा "हमास ने संकेत दिए हैं कि अब भी समझौते की गुंजाइश है, लेकिन यह मौका हमेशा के लिए नहीं रहेगा. नेतन्याहू बातचीत की बात तो करते हैं, मगर हकीकत में टालते जा रहे हैं." लिरन ने इसे बंधकों की वापसी का अंतिम मौका बताया और सरकार से तत्काल कदम उठाने की अपील की.
प्रधानमंत्री ने क्या कहा?
इन आरोपों के बीच, प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने गुरुवार को बयान दिया कि उन्होंने बंधकों की वापसी के लिए बातचीत शुरू करने का निर्देश दे दिया है. साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि गाजा शहर पर सैन्य नियंत्रण हासिल करने की रणनीति पर आगे बढ़ने का निर्णय लिया गया है. हालांकि, नेतन्याहू ने यह स्पष्ट किया कि इजराइल सिर्फ उसी समझौते को स्वीकार करेगा जिसमें उसकी सभी शर्तें शामिल हों,
जैसे:हमास का पूरी तरह हथियार डालना गाजा पट्टी का सैन्यीकरण खत्म करना (Demilitarization), हमास की ओर से प्रस्तावित समझौता, हाल ही में हमास ने प्रस्ताव दिया था कि 60 दिन के युद्धविराम के दौरान, 10 जीवित बंधकों की रिहाई और 18 मृत बंधकों के शव इजराइल को सौंपे जाएंगे. इसके बदले में इजराइल को सैकड़ों फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा करना होगा. इस अंतराल में दोनों पक्ष युद्ध की समाप्ति और शेष बंधकों की रिहाई पर भी बातचीत कर सकते हैं. लेकिन नेतन्याहू ने यह संकेत दिया है कि वे आंशिक या चरणबद्ध समझौते के बजाय केवल एक व्यापक और अंतिम समझौते के पक्षधर हैं.
सार्वजनिक दबाव में क्या बदलेगा रुख?
तेल अवीव से लेकर यरुशलम तक हो रहे ये विरोध अब केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि भावनात्मक रूप ले चुके हैं.प्रदर्शनकारी बार-बार यह सवाल उठा रहे हैं कि अगर बंधकों की सुरक्षित वापसी संभव है, तो सरकार किन कारणों से पीछे हट रही है? अब देखना यह होगा कि बढ़ते सार्वजनिक दबाव के बीच नेतन्याहू की रणनीति में कोई बदलाव आता है या फिर यह विवाद और भी गहराता है.
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