Iran to america: पश्चिम एशिया में एक बार फिर हालात तनावपूर्ण होते दिख रहे हैं. ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु समझौते को लेकर चल रही कशमकश अब खुलकर सामने आ गई है. ईरान ने अमेरिका को साफ शब्दों में कह दिया है कि अगर उसे बातचीत के दौरान सैन्य कार्रवाई से सुरक्षा की गारंटी नहीं दी जाती, तो किसी भी प्रत्यक्ष वार्ता की संभावना नहीं है.
तेहरान से सोमवार को बयान जारी करते हुए ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने कहा कि, "हम अमेरिका से सीधे बात करने के लिए तब तक तैयार नहीं हैं, जब तक हमें यह स्पष्ट गारंटी नहीं मिलती कि वार्ता की प्रक्रिया के दौरान हम पर कोई हमला नहीं होगा." उनके इस बयान ने साफ कर दिया कि ईरान अब आंख मूंदकर बातचीत में शामिल नहीं होगा, खासकर तब, जब हाल के वर्षों में कई बार अमेरिका की नीतियों ने उसके भरोसे को झकझोर दिया है.
अमेरिका पर भरोसा टूट चुका है
अराघची ने यह भी याद दिलाया कि ईरान ने पहले भी कई बार परमाणु वार्ता के लिए पहल की थी, लेकिन बार-बार अमेरिकी हमलों और कठोर प्रतिबंधों ने संवाद का दरवाज़ा बंद कर दिया. अब जब अंतरराष्ट्रीय बिरादरी इस डील को फिर से ज़िंदा करने की कोशिशों में लगी है, तो ईरान पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि वह सुरक्षा की गारंटी के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ेगा.
"अल्लाह के दुश्मन हैं ट्रंप और नेतन्याहू"
ईरान का सियासी संदेश यहीं खत्म नहीं होता. देश के वरिष्ठ शिया धर्मगुरु ग्रैंड अयातुल्ला नासेर मकारेम शिराज़ी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को "मोहरेब" यानी अल्लाह का दुश्मन करार देते हुए उनके खिलाफ फतवा जारी कर दिया. उन्होंने कहा कि इस्लामिक नेताओं को धमकाना ईश्वर के खिलाफ युद्ध करने जैसा है और ईरान के कानून के मुताबिक, ऐसे अपराधियों को फांसी, अंग विच्छेदन या देश से निकाले जाने जैसी कड़ी सजाएं दी जा सकती हैं. धर्मगुरु ने पूरी मुस्लिम दुनिया से एकजुट होने की अपील करते हुए कहा कि, "जो मुसलमान इस संघर्ष में चोट खाता है, वह अल्लाह की राह में शहीद माना जाएगा और उसे स्वर्ग में इनाम मिलेगा."
12 दिन की जंग के बाद फिर तनी तलवारें
हाल ही में ईरान और इजरायल के बीच चला 12 दिन लंबा युद्ध अब भी ताजा है. इस टकराव की शुरुआत ईरान की ओर से इजरायली सैन्य ठिकानों पर मिसाइल और ड्रोन हमले से हुई, जिसके जवाब में इजरायल ने ईरान के कई सैन्य और परमाणु ठिकानों को तबाह कर दिया. इस झड़प में दर्जनों सैनिक मारे गए, सैकड़ों घायल हुए और कई महत्वपूर्ण इमारतें और ठिकाने बर्बाद हो गए.
स्थिति तब और भड़क गई जब अमेरिका ने इस युद्ध में सीधा हस्तक्षेप किया और ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों पर हमले कर दिए. यह हमला इतना बड़ा था कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी गूंज सुनाई दी. बाद में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संघर्ष विराम (सीजफायर) की घोषणा की, लेकिन दोनों पक्षों की तल्खी अब भी बरकरार है.
अब आगे क्या?
ईरान की तरफ से रखी गई शर्त अमेरिका को कूटनीतिक तौर पर असहज स्थिति में डाल सकती है. क्या ट्रंप प्रशासन वार्ता की मेज़ पर लौटने के लिए सैन्य कार्रवाई से पीछे हटेगा? या फिर एक और सैन्य टकराव की जमीन तैयार हो रही है? फिलहाल, दुनिया की नजरें फिर से विएना या न्यूयॉर्क में होने वाली संभावित परमाणु वार्ता पर टिकी हैं, लेकिन इस बार शर्तों के साथ.
यह भी पढ़ें: ‘आकाश’ डिफेंस सिस्टम ने चीन के विकल्प को पछाड़ा, ब्राजील करेगा लोकल प्रोडक्शन