ईरान और इज़राइल के बीच छिड़े युद्ध के खत्म होने के बावजूद, इसके गहरे असर ने भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा पर नए सिरे से सोचने को मजबूर कर दिया है. अब केंद्र सरकार इस दिशा में बड़ा कदम उठाने जा रही है. मौजूदा हालातों को देखते हुए भारत में जल्द ही छह नई जगहों पर रणनीतिक पेट्रोलियम रिजर्व तैयार किए जाएंगे. इसका मकसद सिर्फ आपातकालीन स्थिति से निपटना नहीं, बल्कि देश को ऊर्जा संकट से सुरक्षित बनाना भी है.
फिलहाल भारत के पास महज 9 दिन की जरूरत भर का ही कच्चा तेल भंडार मौजूद है, जिसे बढ़ाकर अंतरराष्ट्रीय मानक के अनुरूप 90 दिन तक ले जाने की योजना है. इस महत्वाकांक्षी योजना पर सरकार जल्द ही काम शुरू करने वाली है.
ईआईएल को मिली जिम्मेदारी
इस रणनीतिक योजना को लागू करने के लिए सरकार ने इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड (EIL) को छह प्रस्तावित साइटों पर रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश दिया है. रिपोर्ट साल के अंत तक सौंप दी जाएगी, ताकि निर्माण कार्य में देर न हो.
कहां-कहां बनेंगे नए तेल रिजर्व?
बाकी चार साइटें समुद्री तटों या रिफाइनरी क्षेत्रों के पास होंगी, ताकि लॉजिस्टिक्स आसान रहे
क्यों है यह कदम जरूरी?
भारत अपनी कुल तेल जरूरतों का 85% आयात करता है और इसमें से लगभग 46% पश्चिम एशिया से आता है. यह आपूर्ति मुख्य रूप से होर्मुज जलडमरूमध्य के रास्ते होती है, जिसे हाल ही में ईरान ने बंद करने की धमकी दी थी. अगर ऐसा होता तो भारत ही नहीं, दुनियाभर के तेल बाजार पर असर पड़ता.
भारत में फिलहाल लगभग 55 लाख बैरल प्रतिदिन की खपत होती है, ऐसे में आपात स्थिति में तेल की किल्लत न हो, इसके लिए सरकार तेल भंडारण को प्राथमिकता दे रही है.
फिलहाल कितनी है भंडारण क्षमता?
कुल: 53.3 लाख टन (9 दिन की जरूरत)
सरकार की योजना है कि इस क्षमता को बढ़ाकर कम से कम 90 दिन का स्टॉक तैयार किया जाए.
ओडिशा और पदूर में भी चल रहा है विस्तार कार्य
ओडिशा के चंडीकोल में 65 लाख टन क्षमता का एक नया रिजर्व बन रहा है, जबकि पदूर की मौजूदा क्षमता को भी दोगुना करने का काम जारी है.
तेल भंडारण: भारी लागत, लेकिन दीर्घकालिक सुरक्षा
एक अनुमान के मुताबिक, 10 लाख टन का भंडार तैयार करने में करीब 2,500 करोड़ रुपये का खर्च आता है. हालांकि यह निवेश भविष्य की ऊर्जा सुरक्षा और वैश्विक संकट से बचाव के लिहाज से बेहद जरूरी है.
पहले भी झेल चुके हैं संकट
नवंबर 2021 में कोविड के कारण उत्पन्न स्थिति में सरकार को अपने भंडार से 50 लाख टन तेल जारी करना पड़ा था. बाद में जब कीमतें गिरीं, तो सरकार ने सस्ते में तेल खरीदकर करीब 69 करोड़ डॉलर की बचत की थी.
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