तालिबान के कब्ज़े के बाद सुरक्षा और रोज़गार की तलाश में ईरान पहुंचे अफगानों के लिए हालात अचानक बदल गए हैं. ईरान सरकार बड़े पैमाने पर अफगान नागरिकों को देश से निकाल रही है. बॉर्डर इलाकों में सुरक्षाकर्मी जहां भी अफगानों को पकड़ रहे हैं, उन्हें ज़बरदस्ती ट्रकों और बसों में बैठाकर अफगानिस्तान भेजा जा रहा है. इनमें छात्र, नौकरीपेशा लोग और महिलाएं भी शामिल हैं, जिन्हें पढ़ाई या काम बीच में ही छोड़ना पड़ रहा है. कई मामलों में उन्हें न तो बकाया वेतन दिया जा रहा है और न ही ज़रूरी कागज़ात के अलावा कुछ और ले जाने की अनुमति.
रिपोर्टों के मुताबिक, इज़राइल की हालिया एयरस्ट्राइक के बाद जब तेहरान का असर अमेरिका और इज़राइल पर नहीं पड़ा, तो शिया शासन ने अफगान शरणार्थियों पर सख्ती तेज कर दी. उन पर इज़राइल के लिए जासूसी करने के आरोप लगाए जा रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) के अनुसार, जून से अब तक लगभग 7 लाख अफगानों को ईरान से बाहर निकाला जा चुका है.
ईरान का पक्ष “सिर्फ बिना दस्तावेज़ वालों पर कार्रवाई”
ईरान के गृह मंत्री एस्कंदर मोमेनी का कहना है कि केवल उन अफगानों को निकाला जा रहा है, जिनके पास कोई वैध दस्तावेज़ नहीं हैं, और अधिकतर लोग स्वेच्छा से लौटे हैं. उनका दावा है कि अब तक 10 लाख से ज़्यादा लोग अपनी इच्छा से ईरान छोड़ चुके हैं. मार्च में, ईरान ने करीब 20 लाख अफगान नागरिकों के अस्थायी जनगणना कार्ड अमान्य कर दिए थे और उन्हें जुलाई तक देश छोड़ने का समय दिया गया था.
रोज़ाना 30 हज़ार से ज़्यादा लोगों की वापसी
यूएनएचसीआर के आंकड़ों के मुताबिक, इज़राइल-ईरान युद्ध के बाद निर्वासन की रफ्तार 15 गुना बढ़ गई. पहले जहां रोज़ाना औसतन 2,000 अफगान लौटते थे, वहीं अब यह संख्या 30,000 से अधिक हो गई है. इस्लाम क़ला में राहतकर्मियों ने बताया कि कई लोग बिना भोजन-पानी के कई दिनों तक सफर करके लौटे हैं.
अनिश्चित भविष्य और मानसिक तनाव
वापस लौट रहे अफगानों का कहना है कि वे ऐसे देश में लौट आए हैं, जो अब उनके लिए अजनबी हो गया है. कई लोगों ने यह भी दावा किया कि वे ईरान में वैध दस्तावेज़ों के साथ रह रहे थे, फिर भी उन्हें जबरन निकाला गया. कुछ ने रास्ते में और बॉर्डर पर दुर्व्यवहार की शिकायत की, हालांकि काबुल में ईरान के राजदूत अलीरेजा बिगडेली ने आधिकारिक तौर पर ऐसी किसी रिपोर्ट से इनकार किया है.
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