इज़रायल ने एक बड़ा और कड़ा फैसला लेते हुए ईरान के सेंट्रल बैंक समेत कई वित्तीय संस्थानों को आतंकी संगठन घोषित कर दिया है. इस फैसले पर इज़रायली रक्षा मंत्री योआव गैलेंट ने हस्ताक्षर किए हैं. इस निर्णय का मुख्य उद्देश्य है ईरान की उन आर्थिक गतिविधियों पर रोक लगाना जो हिज़्बुल्लाह और हमास जैसे आतंकवादी संगठनों को फंडिंग देती हैं. हालांकि यह कदम सीधे तौर पर ईरान को निशाना बनाता है, लेकिन इसका अंतरराष्ट्रीय असर, खासकर भारत जैसे देशों पर, नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
क्या भारत पर पड़ेगा कोई असर?
सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि ईरान का सेंट्रल बैंक आम जनता के लिए नहीं होता, यानी इसमें किसी भारतीय नागरिक के खाते नहीं होते. इसका लेन-देन मुख्य रूप से सरकारों और वित्तीय संस्थानों के बीच होता है. इसलिए इस प्रतिबंध का सीधा प्रभाव सरकारों और बैंकों पर पड़ेगा. भारत ने 2019 से अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते ईरान से तेल की खरीद लगभग बंद कर दी है, लेकिन पूरी तरह नहीं. कई कोशिशें फिर से व्यापार शुरू करने की चल रही हैं.
भारत के लिए क्यों बढ़ीं चिंता की लकीरें?
फंसे हुए 6 अरब डॉलर
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत ने ईरान से तेल खरीद के बदले लगभग 6 अरब डॉलर जमा कर रखे हैं. ये रकम पहले से ही अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से ट्रांसफर नहीं हो पा रही थी, और अब इज़रायल के इस कदम के बाद इसका निपटारा और ज्यादा पेचीदा हो सकता है.
बैंकों की सतर्कता
जैसे UCO Bank, जो पहले ईरान के साथ लेन-देन करता था, अब और ज्यादा कानूनी जोखिम और अंतरराष्ट्रीय निगरानी के कारण सतर्क हो जाएगा. कोई भी लेन-देन इस बात की जांच के बिना नहीं किया जाएगा कि क्या वह इज़रायल के नए आदेशों का उल्लंघन कर रहा है.
भारत की डिप्लोमैसी पर असर
भारत की हमेशा से बैलेंस्ड फॉरेन पॉलिसी रही है. वह अमेरिका और इज़रायल के साथ रणनीतिक साझेदारी रखता है, वहीं ईरान से भी गहरे रणनीतिक रिश्ते हैं – जैसे
अब इस नए फैसले के बाद भारत को अपनी वित्तीय नेटवर्किंग और कूटनीतिक चालें और अधिक सतर्कता से चलानी होंगी.
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