संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच पर जब इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबिआंतो बोले, तो उनका अंदाज़ बाकी नेताओं से अलग नजर आया. अपने भाषण की शुरुआत और समापन उन्होंने संस्कृत के मंत्रों से की, जिसने श्रोताओं का ध्यान खींचा और एक सांस्कृतिक संदेश भी दिया. भाषण में उन्होंने धर्म, मानवता, विश्वशांति और एकजुटता जैसे अहम मुद्दों पर विचार साझा किए.
राष्ट्रपति प्रबोवो ने अपने भाषण की शुरुआत “ओम स्वस्तिअस्तु” से की, जो इंडोनेशिया के बाली द्वीप में आमतौर पर उपयोग होने वाला एक पारंपरिक अभिवादन है. इसका अर्थ है. "आप धन्य, सुरक्षित और शांत रहें." उन्होंने भाषण का समापन भी शांति का आह्वान करते हुए “ओम शांति शांति शांति ओम” से किया, जो वैदिक परंपरा का हिस्सा है. इस आध्यात्मिक शैली ने वैश्विक समुदाय के बीच भारत और इंडोनेशिया की सांस्कृतिक निकटता को भी रेखांकित किया.
सभी धर्मों के प्रति सम्मान का संदेश
राष्ट्रपति सुबिआंतो ने अपने भाषण में स्पष्ट रूप से कहा कि दुनिया के सभी धर्म — चाहे वो हिंदू हों, मुस्लिम, ईसाई, यहूदी या बौद्ध — एक ही मानव परिवार का हिस्सा हैं. उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि इंडोनेशिया इस विचारधारा को व्यवहार में लाने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है.
संयुक्त राष्ट्र का किया समर्थन, अमेरिका पर अप्रत्यक्ष निशाना
जब कुछ देशों की ओर से संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर सवाल उठाए जा रहे हैं, उसी समय राष्ट्रपति प्रबोवो ने वैश्विक मंच का समर्थन करते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र ने इंडोनेशिया को आज़ादी के संघर्ष, और बीमारी, भुखमरी व गरीबी से लड़ने में सहयोग दिया है. उन्होंने इस मंच को इंडोनेशिया की अंतरराष्ट्रीय वैधता का स्तंभ बताया. बिना किसी देश का नाम लिए, उन्होंने ऐसी ताकतों की आलोचना की जो विश्व समुदाय को धमकाने या डराने की कोशिश कर रही हैं. उनका यह बयान सीधे तौर पर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उस टिप्पणी पर प्रतिक्रिया माना जा रहा है, जिसमें ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र की आलोचना की थी.
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