मॉस्को/नई दिल्ली: भारत की समुद्री सैन्य क्षमताओं को एक नया आयाम मिलने जा रहा है. रूस के साथ हुए बहुप्रतीक्षित समझौते के तहत भारत को 2028 तक एक अत्याधुनिक परमाणु हमलावर पनडुब्बी (SSN) मिलने वाली है. यह सौदा न केवल हिंद महासागर में भारत की रणनीतिक मौजूदगी को मजबूत करेगा, बल्कि नौसेना की दीर्घकालिक रक्षा रणनीति में भी निर्णायक भूमिका निभाएगा.
रूसी मीडिया हाउस स्पुतनिक की रिपोर्ट के अनुसार, यह पनडुब्बी अकुला-क्लास SSN होगी, जिसे भारतीय नौसेना में INS चक्र III के नाम से शामिल किया जाएगा. 10 वर्षों के पट्टे पर आधारित यह 3 अरब डॉलर की डील भारत की अब तक की सबसे अहम नौसैनिक परियोजनाओं में से एक मानी जा रही है.
कैलिबर मिसाइलों से लैस होगी INS चक्र III
INS चक्र III को पहले 500 किलोमीटर रेंज की मिसाइलों से लैस करने की योजना थी, लेकिन अब इसमें 1500 किलोमीटर रेंज की ‘Kalibr क्रूज मिसाइलें’ लगाई जाएंगी. यह परिवर्तन भारत को लंबी दूरी पर दुश्मन के ठिकानों को लक्षित करने की क्षमता देगा, विशेषकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में.
सैन्य विश्लेषकों का मानना है कि ये मिसाइलें पनडुब्बी की मारक क्षमता को दुगना नहीं, बल्कि कई गुना बढ़ा देंगी. गहरे समुद्र में अदृश्य रहते हुए यह पनडुब्बी दुश्मन के नौसैनिक अड्डों, पोतों और सामरिक ठिकानों को सटीकता से निशाना बना सकती है.
क्यों अहम है यह डील भारत के लिए?
भारतीय नौसेना के पास वर्तमान में 18 पारंपरिक पनडुब्बियां हैं, जिनमें से एक तिहाई एक दशक के भीतर सेवा से बाहर हो जाएंगी. वहीं भारत के पास कोई भी परमाणु हमला करने में सक्षम SSN पनडुब्बी इस समय मौजूद नहीं है. ऐसे में यह डील रणनीतिक समय पर लिया गया निर्णायक कदम है.
सेवानिवृत्त कमांडर हेमंत शेखर के अनुसार, "भारत में SSN निर्माण प्रक्रिया अभी शुरुआती चरण में है. ऐसे में रूस से अकुला-क्लास SSN का आना नौसेना के लिए महत्वपूर्ण अंतर भरने का काम करेगा. ये पनडुब्बियां बिना सतह पर आए हफ्तों तक दुश्मन के इलाके में परिचालन कर सकती हैं."
स्वदेशी निर्माण की दिशा में भी तेजी
भारत ने 12 अरब डॉलर के अनुमानित बजट के साथ 'प्रोजेक्ट 77' की शुरुआत की है, जिसके तहत छह स्वदेशी SSN पनडुब्बियों का निर्माण प्रस्तावित है.
हालांकि भारत ने बैलिस्टिक मिसाइलों से लैस परमाणु पनडुब्बियों (SSBNs) को सफलतापूर्वक डिजाइन और निर्माण किया है, लेकिन SSN पनडुब्बियों के लिए अभी विदेशी तकनीकी सहायता आवश्यक बनी हुई है. वर्तमान में पारंपरिक पनडुब्बियों का लगभग 80% घटक सामग्री विदेशों से आती है.
समुद्री शक्ति संतुलन पर पड़ेगा असर
भारत और रूस का यह रक्षा सहयोग केवल एक रक्षा सौदा नहीं है, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री शक्ति संतुलन को प्रभावित करने वाला रणनीतिक कदम है. यह डील भारत को दक्षिण चीन सागर, मलक्का जलडमरूमध्य और अरब सागर जैसे रणनीतिक इलाकों में बढ़त दे सकती है.
चीन की बढ़ती नौसैनिक उपस्थिति के बीच भारत का यह निवेश भविष्य की चुनौतियों का जवाब है. INS चक्र III जैसे स्टील्थ सक्षम SSN से लैस होकर भारत आने वाले वर्षों में हिंद महासागर क्षेत्र में 'नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर' की भूमिका को और मजबूती से निभा सकेगा.
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