नई दिल्ली: भारतीय वायुसेना की अगली बड़ी छलांग अब बस कुछ फैसलों की दूरी पर है. जब पूरा विश्व छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमानों की दिशा में आगे बढ़ रहा है और भारत का स्वदेशी AMCA प्रोजेक्ट अभी भी टेस्टिंग और विकास के शुरुआती चरणों में है, तब एक यक्ष प्रश्न सामने खड़ा है—क्या भारत अमेरिकी F-35 स्टेल्थ फाइटर जेट की ओर बढ़ रहा है?
अब तक भारत की प्राथमिकता रूस के Su-57 विमान को लेकर थी, और दोनों देशों ने इसे मिलकर बनाने की योजना भी बनाई थी. लेकिन अब जब पाकिस्तान, चीन के स्टेल्थ फाइटर J-35 को अपनी वायुसेना में शामिल करने की तैयारी कर रहा है, तो भारत के पास पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट को लेकर कोई विकल्प नहीं बचा है—या तो तुरंत खरीद, या खतरे का इंतज़ार.
पाकिस्तान की तैयारी ने बढ़ाई भारत की बेचैनी
सूत्रों की मानें तो 2026 तक पाकिस्तान की वायुसेना J-35 स्टेल्थ फाइटर से लैस हो सकती है. यह वही विमान है जिसे चीन ने J-20 के बाद विकसित किया है और अब यह चीन-पाक दोस्ती की नई मिसाइल बन चुका है. ऐसे में भारत की वायुसेना दो मोर्चों—चीन और पाकिस्तान—पर एक साथ स्टेल्थ तकनीक से लैस विरोधियों का सामना नहीं कर सकती.
वर्तमान में भारत के पास कोई पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान नहीं है. Su-30MKI, Rafale और मिराज जैसे विमान बेहतरीन हैं, लेकिन वे रडार पर पकड़ में आते हैं. चीन के पास पहले से ही J-20 है और अब पाकिस्तान के पास J-35 आने वाला है. ऐसे में भारत के पास अब रणनीतिक रूप से चुप रहने का विकल्प नहीं बचा है.
भारतीय वायुसेना की ज़रूरतें और अमेरिका का विकल्प
भारतीय वायुसेना ने रक्षा मंत्रालय को एक प्रस्तुति में यह स्पष्ट किया है कि उसे कम से कम 40 से 60 स्टेल्थ फाइटर जेट्स की आवश्यकता है, जो दो से तीन स्क्वाड्रन के बराबर है. यह संख्या इस बात को ध्यान में रखते हुए तय की गई है कि भारत को चीन और पाकिस्तान जैसे दोनों विरोधियों से एक साथ मुकाबला करना पड़ सकता है.
अब भारत के पास दो प्रमुख विकल्प हैं:
Su-57 को लेकर रूस ने भारत को बेहद लुभावने प्रस्ताव दिए हैं—100% तकनीक ट्रांसफर, भारत में निर्माण और यहां तक कि भारत के AMCA प्रोजेक्ट में मदद भी. लेकिन एक कड़वा सच यह है कि Su-57 की स्टेल्थ तकनीक पर हमेशा संदेह रहा है.
वहीं, F-35 को आज की तारीख में दुनिया का सबसे आधुनिक और ‘कम्प्लीट’ स्टेल्थ फाइटर माना जाता है. इसमें ऑल-एस्पेक्ट स्टेल्थ क्षमता है, जो इसे किसी भी दिशा से रडार पर न पकड़ में आने वाला बनाता है. इसका रडार क्रॉस सेक्शन केवल 0.0015 वर्ग मीटर है—यानि उड़ते हुए कबूतर जितना! तुलना करें तो Su-57 का RCS लगभग 0.1–0.5 वर्ग मीटर तक माना जाता है.
F-35: एक उड़ता हुआ युद्धक कमांड सेंटर
F-35 सिर्फ एक लड़ाकू विमान नहीं है, यह एक डिजिटल युद्ध प्रणाली है. इसमें 360-डिग्री डिस्ट्रीब्यूटेड अपर्चर सिस्टम, सेंसर फ्यूजन, नेटवर्क-सेंट्रिक वॉरफेयर क्षमताएं और मल्टी-डोमेन ऑपरेशन की ताकत है. यह विमान अपने आप में एक फ्लाइंग कमांड सेंटर बन जाता है, जिससे युद्ध के मैदान पर रणनीतिक बढ़त मिलती है.
इसके अलावा यह विमान पहले से ही युद्ध में खुद को साबित कर चुका है—सीरिया, इराक, अफगानिस्तान जैसे कई मोर्चों पर इसका सफल संचालन हुआ है.
लेकिन क्या भारत F-35 का संचालन कर पाएगा?
यह सबसे बड़ा सवाल है. भारतीय वायुसेना ने अब तक अमेरिकी लड़ाकू विमानों का कभी उपयोग नहीं किया है. जबकि रूस के साथ भारत की रणनीतिक और तकनीकी साझेदारी दशकों पुरानी है. Su-30MKI का निर्माण भारत में ही हो रहा है. ऐसे में Su-57 को उसी उत्पादन लाइन पर बनाना आसान रहेगा.
इसके अलावा भारत पहले से ही रूसी S-400 एयर डिफेंस सिस्टम का संचालन कर रहा है, जो Su-57 के साथ इंटीग्रेट किया जा सकता है. वहीं, अमेरिका अपने F-35 की सुरक्षा के लिए इतने सख्त नियम लागू करता है कि वह भारत को S-400 और F-35 दोनों एक साथ रखने की इजाजत नहीं देगा. इससे भारत की समग्र 'किल चेन' टूट सकती है.
क्या ट्रंप फैक्टर भारत के रास्ते में बाधा बनेगा?
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भले ही भारत को F-35 की पेशकश की थी, लेकिन हाल के महीनों में उनके बयान पाकिस्तान की तरफ झुकते दिखे हैं. यह बात भारत को सताती है. हालांकि कुछ जानकार मानते हैं कि ट्रंप की यह पाकिस्तान परस्ती केवल डील के लिए दबाव बनाने की रणनीति भी हो सकती है.
इस बीच कुछ रिपोर्ट्स यह भी बताती हैं कि भारतीय वायुसेना के अंदर F-35 को लेकर आकर्षण गहरा है. खासकर पाकिस्तान के खिलाफ सीमा पार की सर्जिकल स्ट्राइक या डीप पेनिट्रेशन ऑपरेशन में यह फाइटर निर्णायक भूमिका निभा सकता है.
भारत के सामने बड़ा रणनीतिक विकल्प
अब यह फैसला केवल तकनीकी या सामरिक नहीं, बल्कि राजनीतिक और रणनीतिक भी है. क्या भारत रूस के साथ अपने पुराने रक्षा रिश्तों को और गहराएगा, या अमेरिका की ओर एक निर्णायक मोड़ लेगा?
F-35 भारत को अमेरिका की सैन्य रणनीति में और गहराई से जोड़ देगा. यह अमेरिका के साथ एक गहरे लॉजिस्टिक और ऑपरेशनल संबंध की ओर ले जाएगा. वहीं, Su-57 भारत को पारंपरिक भरोसे की ओर लौटाएगा—साथ ही टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का वादा भी मिलेगा.
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