भारत और अमेरिका के रिश्तों में हाल के दिनों में तनातनी देखने को मिल रही है. इसका मुख्य कारण है भारत का रूस से कच्चा तेल खरीदना, जिस पर अमेरिका लगातार नाराजगी जता रहा है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर दबाव बढ़ाते हुए 50 प्रतिशत टैरिफ तक लगा दिया है. मगर भारत ने दो टूक जवाब देते हुए स्पष्ट कर दिया है कि वह वही तेल खरीदेगा, जो उसकी जेब और जरूरत दोनों के अनुकूल हो.
भारत की ऊर्जा नीति पर कोई समझौता नहीं: राजदूत विनय कुमार
मॉस्को में भारत के राजदूत विनय कुमार ने रूस की सरकारी एजेंसी TASS को दिए एक साक्षात्कार में साफ कहा कि भारतीय कंपनियां महंगा तेल खरीदने के लिए बाध्य नहीं की जा सकतीं. उन्होंने जोर देकर कहा "हमारी प्राथमिकता भारत की ऊर्जा सुरक्षा है. कंपनियां उन्हीं विकल्पों का चुनाव करेंगी जो आर्थिक रूप से फायदेमंद हों." राजदूत ने यह भी कहा कि भारत की ऊर्जा नीति राष्ट्रीय हित और बाजार की वास्तविकता के आधार पर तय होती है, किसी के दबाव में नहीं.
चीन को छूट, भारत पर शिकंजा?
यह बात भी चर्चा में है कि अमेरिका ने चीन, जो कि रूस से कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार है, के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की, जबकि भारत को लगातार निशाना बनाया जा रहा है. भारत का कहना है कि उसकी तेल खरीद पूरी तरह से आर्थिक और रणनीतिक जरूरतों पर आधारित है, और किसी के कहने पर वह अपने निर्णय नहीं बदलेगा.
ट्रेड डील पर भी नहीं बनी सहमति
भारत और अमेरिका के बीच एक व्यापार समझौता (ट्रेड डील) लंबित है, लेकिन कृषि और डेयरी जैसे संवेदनशील मुद्दों को लेकर दोनों देशों के बीच सहमति नहीं बन पाई है. अमेरिका चाहता है कि भारत अपने कृषि बाज़ार में अधिक पहुंच दे, जबकि भारत ने स्पष्ट कहा है कि वह अपने किसानों और छोटे उत्पादकों के हितों से समझौता नहीं करेगा.
एस. जयशंकर ने दी स्पष्ट चेतावनी
भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने हाल ही में इकोनॉमिक टाइम्स वर्ल्ड लीडर्स फोरम में बोलते हुए कहा था. "भारत की व्यापार नीति घरेलू हितधारकों की सुरक्षा के सिद्धांत पर आधारित है." उन्होंने अमेरिकी टैरिफ को अनुचित करार देते हुए यह भी स्पष्ट कर दिया कि भारत दबाव की राजनीति को स्वीकार नहीं करेगा.
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