भारतीय नौसेना के बेड़े में INS तमाल युद्धपोत को शामिल किया गया, जो रूस के साथ साझेदारी में विकसित किया गया है. यह युद्धपोत ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल से लैस है, जो भारत की सैन्य क्षमता को और भी मजबूत करता है. इसी बीच, भारतीय नौसेना के पनडुब्बी बेड़े में भी बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है. जनवरी 2025 में INS वाघशीर के शामिल होने के साथ, प्रोजेक्ट-75 का पूरा होना भारतीय नौसेना के पनडुब्बी बेड़े की ताकत में महत्वपूर्ण वृद्धि का संकेत है.
भारतीय नौसेना की पनडुब्बी ताकत
आज भारतीय नौसेना के पास 16 पारंपरिक पनडुब्बियां हैं, जिनमें प्रोजेक्ट-75 के तहत 6 कलवरी क्लास की पनडुब्बियां शामिल हैं. यह पनडुब्बियां एशिया-प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्रों में खासकर चीन और पाकिस्तान के खिलाफ एक महत्वपूर्ण सैन्य ताकत हैं. खासकर हिंद महासागर में चीन की बढ़ती गतिविधियों को देखते हुए, इन पनडुब्बियों की भूमिका और भी अहम हो गई है. चीन की पीएलए-नेवी के पास अब 355 युद्धपोत और पनडुब्बियां हैं, जो इसे दुनिया की सबसे बड़ी नौसैनिक शक्ति बनाती हैं. वहीं, पाकिस्तान भी चीन की सहायता से अपनी पनडुब्बी क्षमता को लगातार बढ़ा रहा है.
भारत की प्रतिक्रिया: पनडुब्बी क्षमता में वृद्धि
भारत ने इन बदलते हालात के बीच अपनी पनडुब्बी क्षमता को बढ़ाने के लिए कदम उठाए हैं. इसके तहत प्रोजेक्ट-75I के तहत एक महत्वपूर्ण विकास हो रहा है. मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDL) को एक बड़ी डिफेंस डील मिलने की संभावना है, जो भारतीय नौसेना के पनडुब्बी बेड़े को और भी मजबूत बनाएगी. इस डील की अनुमानित कीमत ₹1.06 लाख करोड़ है, और इसके तहत 6 अत्याधुनिक पनडुब्बियां बनाई जाएंगी.
मझगांव डॉक का अहम रोल
MDL को ₹70,000 करोड़ की लागत से 6 अत्याधुनिक पनडुब्बियां बनाने का ठेका मिलने जा रहा है. ये पनडुब्बियां HDW क्लास 214 डिज़ाइन पर आधारित होंगी और इनमें उच्चतम स्तर की स्टील्थ क्षमता होगी. इन पनडुब्बियों में एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) सिस्टम होगा, जिससे वे सतह पर आए बिना दो सप्ताह तक पानी के अंदर ऑपरेट कर सकेंगी. इस परियोजना में MDL का जर्मनी की थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स (TKMS) के साथ साझेदारी होगी, और इसमें 45% स्वदेशी तकनीक का इस्तेमाल अनिवार्य किया जाएगा, जो धीरे-धीरे बढ़कर 60% तक पहुंचेगा.
नई स्कॉर्पीन-क्लास पनडुब्बियों का निर्माण
इसके अलावा, भारत तीन नई स्कॉर्पीन-क्लास पनडुब्बियां भी बनाएगा, जिनकी लागत ₹36,000 करोड़ है. ये पनडुब्बियां मौजूदा कलवरी-क्लास से बड़ी और अधिक उन्नत होंगी, जिनमें 60% स्वदेशी सामग्री का इस्तेमाल होगा. इन पनडुब्बियों की डिजाइन ब्राजील नेवी द्वारा आपूर्ति की गई पनडुब्बियों से मेल खाएगी. इन पनडुब्बियों का निर्माण 6 साल में पूरा होगा, और बाकी दो हर साल डिलीवर करने की योजना है.
चीन और पाकिस्तान की चुनौती
चीन और पाकिस्तान की बढ़ती पनडुब्बी क्षमताओं को देखते हुए, भारत ने अपनी नौसेना को और भी सशक्त बनाने का निर्णय लिया है. चीन की हिंद महासागर में बढ़ती मौजूदगी और पाकिस्तान की पनडुब्बी क्षमता में विस्तार के कारण भारत को अपनी पनडुब्बी शक्ति बढ़ाने की आवश्यकता महसूस हो रही है. भारत ने 2035 तक 175 जहाजों वाली नौसेना बनाने का लक्ष्य रखा है, और इस दिशा में काम भी जारी है. वर्तमान में भारत के पास 130 से अधिक युद्धपोत हैं और 61 युद्धपोत निर्माणाधीन हैं.
DRDO और स्वदेशी पहल
भारत ने अपनी पनडुब्बी क्षमता को और बढ़ाने के लिए DRDO के साथ मिलकर स्वदेशी AIP सिस्टम विकसित किया है. इस सिस्टम का पहला परीक्षण INS कलवरी पर सितंबर 2025 में किया जाएगा. साथ ही, कलवरी-क्लास पनडुब्बियों में इलेक्ट्रॉनिक हेवी वेट टॉरपीडो लगाने के लिए ₹877 करोड़ का अनुबंध फ्रांसीसी नेवल ग्रुप के साथ किया गया है. इन टॉरपीडो से इन पनडुब्बियों की मारक क्षमता बढ़ेगी.
रोजगार और स्वदेशी निर्माण
इन परियोजनाओं से देश में बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन होगा. AIP परियोजना अकेले लगभग तीन लाख मैन-डे का रोजगार उत्पन्न करेगी. MDL और इसके सहयोगी पहले ही 50 से अधिक भारतीय कंपनियों को शामिल कर चुके हैं, जिससे स्वदेशी निर्माण को बढ़ावा मिल रहा है. साथ ही, फ्रांसीसी नेवल ग्रुप की भारतीय शाखा भी 70 से अधिक भारतीय इंजीनियरों को नौसेना परियोजनाओं में सहायता दे रही है.
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