पहलगाम आतंकी हमले ने भारत की सहनशीलता की सीमा पार कर दी है. अब देश के भीतर और सीमापार पल रहे आतंक के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई तय मानी जा रही है. भारत ने पहले भी जब-जब उसके नागरिकों पर हमला हुआ है, सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट जैसी कार्रवाइयों से जवाब दिया है. अब हालात एक बार फिर उसी मोड़ पर आ खड़े हुए हैं.
इस बार भारत के जवाबी हमले की तस्वीर में राफेल के साथ एक और घातक चेहरा सामने आ सकता है, जगुआर. ये वही लड़ाकू विमान है, जिसने कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान की नींव हिला दी थी. अब, जब पाकिस्तान में डर और बौखलाहट बढ़ रही है, तो भारत के इस पुराने लेकिन अपग्रेडेड हथियार की प्रासंगिकता फिर से चर्चा में है.
इंदिरा का शेर: 1970 से अब तक मिशन रेडी
जगुआर लड़ाकू विमान भारतीय वायुसेना की 'डीप स्ट्राइक कैपेबिलिटी' का आधार रहा है. इसे भारत में "शमशेर" के नाम से भी जाना जाता है. इसका आगमन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के उस रणनीतिक विज़न का नतीजा था, जिसमें उन्होंने 1971 के युद्ध के बाद भारत की वायु शक्ति को मजबूत करने का निर्णय लिया था. 1978 में यूके की रॉयल एयर फोर्स से इसकी खरीद और बाद में HAL को मिला निर्माण लाइसेंस इस बात की गवाही है कि भारत ने लंबे समय से इस हथियार पर भरोसा जताया है. 1979 में वायुसेना में शामिल होने के बाद से जगुआर ने अपनी उपयोगिता बार-बार सिद्ध की है.
क्यों खास है जगुआर?
• मल्टी-रोल स्ट्राइक कैपेबिलिटी: जमीन पर हमला हो या हवाई मिशन, दोनों में पारंगत.
• लो-लेवल फ्लाइट क्षमता: रडार को चकमा देकर कम ऊंचाई से सटीक वार करता है.
• अपग्रेडेड सिस्टम: समय-समय पर इसे नए हथियारों और तकनीक से लैस किया गया है, जिसमें लेजर-गाइडेड बम, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम और नाइट ऑपरेशन के लिए अत्याधुनिक सेंसर शामिल हैं.
• किफायती लेकिन प्रभावशाली: आधुनिक विमानों की तुलना में सस्ता होने के बावजूद इसका युद्धक प्रभाव जबरदस्त है.
कारगिल में निभाई निर्णायक भूमिका
1999 के कारगिल युद्ध में जगुआर ने भारतीय वायुसेना के लिए आंख और हथियार दोनों का काम किया. इसने टोही मिशन में दुश्मन की सटीक लोकेशन बताई और फिर लेजर गाइडेड बमों से दुश्मन के बंकरों को तबाह किया। इसकी हिट एंड रन स्ट्राइक क्षमता ने पाकिस्तान की सैन्य रणनीति को तहस-नहस कर दिया.
आने वाला वक्त: राफेल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर
हालांकि भारत के पास अब राफेल जैसे अति-आधुनिक फाइटर जेट्स हैं, लेकिन जगुआर की ऑपरेशनल वैल्यू आज भी कम नहीं हुई है. अगर भारत पाकिस्तान के आतंकी नेटवर्क को खत्म करने के लिए कोई प्रेसिजन स्ट्राइक मिशन चलाता है, तो जगुआर को फ्रंटलाइन में देखा जा सकता है. इसके अत्यधिक विश्वसनीय और मिशन-प्रूवन ट्रैक रिकॉर्ड के चलते यह भारत की रणनीतिक योजना का मजबूत स्तंभ बना हुआ है.
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