येरेवन (आर्मेनिया): आधुनिक वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य में जब शक्ति संतुलन एशिया से यूरेशिया की ओर बढ़ रहा है, ऐसे समय में भारत की मल्टी-वेक्टर विदेश नीति भी एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है. इसी कड़ी में ब्लैक सी कॉरिडोर जैसी परियोजनाएं भारत के लिए केवल भौगोलिक संपर्क नहीं, बल्कि एक रणनीतिक परिकल्पना बनकर उभर रही हैं.
इस दिशा में एक अहम कदम सामने आया है — आर्मेनिया द्वारा भारत के ब्लैक सी कॉरिडोर प्रोजेक्ट को समर्थन देना. यह समर्थन सिर्फ कूटनीतिक नहीं, बल्कि एक बड़े भू-राजनीतिक समीकरण में भारत की भूमिका को मजबूत करने का मंच भी बन रहा है, खासकर तब जब चीन, तुर्की, अजरबैजान और पाकिस्तान जैसे शक्तिशाली गठबंधनों की जटिलता यूरेशिया क्षेत्र को प्रभावित कर रही है.
भारत-आर्मेनिया साझेदारी: मजबूत होती मित्रता
इन पहलुओं ने भारत को यह समझने का अवसर दिया है कि यदि यूरेशिया में एक विश्वसनीय रणनीतिक सहयोगी की जरूरत है, तो आर्मेनिया एक प्राकृतिक भागीदार बनकर उभरता है.
ब्लैक सी कॉरिडोर: भारत की वैश्विक नीति का नया आधार
ब्लैक सी कॉरिडोर की परिकल्पना, भारत को मध्य एशिया, कॉकस, और यूरोप से जोड़ने का एक भू-सामरिक और आर्थिक पुल प्रदान कर सकती है. इस मार्ग में प्रमुख पड़ाव होंगे — ईरान, आर्मेनिया, जॉर्जिया और अंत में ब्लैक सी के रास्ते यूरोप.
इस परियोजना के लाभ:
रणनीतिक विशेषज्ञ एन्वार्ड चालिक्यान ने फर्स्टपोस्ट से कहा, "अगर भारत यूरोप तक एक वैकल्पिक मार्ग चाहता है जो तुर्की और अजरबैजान से होकर न गुजरे, तो ईरान, आर्मेनिया और जॉर्जिया के रास्ते ब्लैक सी सबसे उपयुक्त मार्ग है."
वास्तविकता: प्रतिबंध और भू-राजनीतिक उलझनें
हालांकि इस योजना में कई व्यावहारिक अड़चनें भी हैं:
फिर भी, भारत और आर्मेनिया दोनों के लिए यह अवसर इतना रणनीतिक रूप से लाभकारी है कि दोनों देश इस दिशा में अपने-अपने कूटनीतिक प्रयासों से आगे बढ़ने को तैयार हैं.
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