मॉस्को: रूस की आधिकारिक यात्रा पर गए भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने अंतरराष्ट्रीय मंच से एक बार फिर भारत की ऊर्जा नीति और व्यापार संबंधों को स्पष्ट करते हुए अमेरिका को निशाने पर लिया. रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव के साथ साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में जयशंकर ने बिना शब्दों को घुमाए साफ कहा कि भारत को रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीदार बताना तथ्यों के विपरीत है और यह वैश्विक ऊर्जा सहयोग की गलत व्याख्या है.
जयशंकर का यह तीखा बयान ऐसे समय आया है जब अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए टैरिफ को लेकर तनाव लगातार बढ़ रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से घोषित 25 प्रतिशत सेकेंडरी टैरिफ 27 अगस्त से प्रभाव में आने वाला है, जो पहले से ही लागू 27 प्रतिशत टैरिफ को मिलाकर कुल 50% तक पहुंच सकता है.
जयशंकर ने अमेरिका के आरोपों को किया खारिज
संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक सवाल के जवाब में जयशंकर ने दो टूक शब्दों में कहा, "हम न तो रूसी कच्चे तेल के सबसे बड़े खरीदार हैं, और न ही एलएनजी के. अगर तथ्यों की बात करें, तो रूस से सबसे ज्यादा तेल खरीदने वाला देश चीन है और एलएनजी के मामले में यूरोपीय संघ आगे है. भारत का रूस के साथ व्यापार बढ़ा है, लेकिन अन्य देशों की तुलना में यह कहीं अधिक नियंत्रित और संतुलित रहा है."
उन्होंने आगे कहा कि 2022 के बाद जिन देशों का रूस के साथ व्यापारिक संबंधों में भारी इजाफा हुआ है, वे दक्षिण के कुछ विकसित देश हैं, न कि भारत.
भारत की ऊर्जा नीति पर दी स्पष्टता
जयशंकर ने भारत की ऊर्जा खरीद नीति पर बात करते हुए कहा, "हम वर्षों से यह सुनते आए हैं कि वैश्विक ऊर्जा बाजार को स्थिर रखने के लिए सभी देशों को योगदान देना चाहिए. इसी दृष्टिकोण से भारत ने रूस से तेल खरीदा है यह एक व्यावसायिक निर्णय है, न कि कोई राजनीतिक बयान. वैसे, हम अमेरिका से भी तेल खरीदते हैं, और वह मात्रा भी हाल के वर्षों में काफी बढ़ी है."
उनका इशारा इस ओर था कि भारत की नीति हमेशा बैलेंस और राष्ट्रीय हितों पर आधारित रही है, न कि किसी बाहरी दबाव के अधीन.
अमेरिका की टैरिफ नीति पर अप्रत्यक्ष कटाक्ष
जयशंकर का बयान ऐसे वक्त पर आया है जब अमेरिका ने भारत पर टैरिफ के रूप में आर्थिक दबाव बढ़ा दिया है. फिलहाल भारत पर 27% टैरिफ लागू है, और यदि नया सेकेंडरी टैरिफ प्रभावी होता है, तो यह 50% तक पहुंच जाएगा. ऐसे में भारत के लिए अपनी स्थिति स्पष्ट करना जरूरी हो गया था.
जयशंकर ने इस संदर्भ में यह भी कहा, "हम उस तर्क से वास्तव में हैरान हैं कि एक तरफ हमसे अपेक्षा की जाती है कि वैश्विक स्थिरता में भागीदार बनें, और दूसरी तरफ हमें उस सहयोग के लिए दंडित किया जाता है."
भारत-रूस संबंधों पर भी दिया बड़ा संदेश
जयशंकर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह भी रेखांकित किया कि भारत और रूस के संबंध केवल ऊर्जा व्यापार तक सीमित नहीं हैं, बल्कि दोनों देशों के बीच रक्षा, विज्ञान, तकनीकी, निवेश और संस्कृति जैसे कई क्षेत्रों में मजबूत सहयोग है.
उन्होंने कहा, "यह यात्रा न सिर्फ हमारे राजनीतिक रिश्तों को मजबूती देने का अवसर है, बल्कि व्यापार, निवेश, रक्षा और नागरिक संपर्कों को भी नई दिशा देने का मौका है. हमारे नेताओं ने बीते वर्ष जुलाई में शिखर सम्मेलन में भाग लिया था, और अब हम आगामी वार्षिक शिखर सम्मेलन की तैयारी कर रहे हैं."
रूसी विदेश मंत्रालय ने भी साझा की रूपरेखा
रूसी विदेश मंत्रालय ने बैठक के एजेंडे को लेकर बयान जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि दोनों देशों के बीच:
रूस ने भी संकेत दिए कि दोनों देश वैश्विक भू-राजनीतिक दबावों से "स्वतंत्र आर्थिक ढांचे" की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.
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