भारत की रक्षा रणनीति में जल्द ही एक बड़ा बदलाव आ सकता है. रूस ने भारत को दुनिया के सबसे ताकतवर सुपरसोनिक बॉम्बर विमानों में से एक, तुपोलेव Tu-160M ‘व्हाइट स्वान’, की पेशकश की है. यह विमान न केवल अपनी श्रेणी में सबसे बड़ा है, बल्कि इसकी रफ्तार, मारक क्षमता और हथियार ले जाने की क्षमता इसे एक सामरिक महाशक्ति बना देती है.
जहां आज रक्षा विमानों की दुनिया में 5वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान जैसे Su-57, F-35 और राफेल की चर्चा होती है, वहीं Tu-160M एक ऐसा बॉम्बर है जो किसी भी 5th जेनरेशन फाइटर को ताकत के मामले में पीछे छोड़ सकता है. इसे रणनीतिक हमलों के लिए डिजाइन किया गया है और इसकी क्षमताएं किसी भी आधुनिक युद्ध के समीकरण को बदलने में सक्षम हैं.
Tu-160M: एक नजर में महाशक्ति
राफेल से सस्ता लेकिन ज्यादा खतरनाक?
राफेल लड़ाकू विमानों की कीमत 200 से 300 मिलियन डॉलर तक जाती है, जबकि एक Tu-160M बॉम्बर की अनुमानित कीमत करीब 163 मिलियन डॉलर बताई जाती है. इस तुलना से यह स्पष्ट होता है कि दो Tu-160M की कीमत दो राफेल फाइटर्स के बराबर हो सकती है, लेकिन सामरिक रूप से इसकी मारक क्षमता कहीं अधिक है.
राफेल की अधिकतम रेंज लगभग 3,700 किलोमीटर है, वहीं Tu-160M बिना रिफ्यूलिंग के 12,000 किलोमीटर की दूरी तक उड़ान भर सकता है, यानी चीन या यूरोप के किसी भी कोने तक.
Tu-160: दुश्मनों के लिए खौफ का दूसरा नाम
यदि भारत इस बॉम्बर को अपने बेड़े में शामिल करता है और इसमें ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलें जोड़ी जाती हैं, तो यह भारत को एक ऐसी रणनीतिक क्षमता देगा जो अभी तक सीमित थी. Tu-160M में ब्रह्मोस या Kh-101 जैसी मिसाइलें फिट की जा सकती हैं, जिनकी रेंज 2,500 किमी से भी अधिक हो सकती है.
इसका मतलब है कि भारत बिना दुश्मन की हवाई सीमा में प्रवेश किए, हजारों किलोमीटर दूर स्थित सामरिक ठिकानों पर प्रिसिजन स्ट्राइक कर सकेगा. चाहे पाकिस्तान के संवेदनशील सैन्य ठिकाने हों या चीन के थ्री गॉर्जेस डैम और लोप नोर जैसे रणनीतिक क्षेत्र सब Tu-160M की रेंज में होंगे.
जहां 5th जनरेशन फाइटर जेट्स का उद्देश्य हवाई युद्ध में बढ़त बनाना होता है, वहीं Tu-160M का उपयोग दीर्घ दूरी के परमाणु या पारंपरिक हमलों के लिए होता है. यह दुश्मन के सैन्य और औद्योगिक इंफ्रास्ट्रक्चर को नष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.
भारत की न्यूक्लियर ट्रायड को मिलेगा बड़ा सपोर्ट
भारत पहले से ही न्यूक्लियर ट्रायड (थल, जल, वायु से परमाणु हमला करने की क्षमता) का हिस्सा है. Tu-160M जैसे बॉम्बर विमानों की तैनाती इस ट्रायड के "एयर-बेस्ड" हिस्से को और मजबूत कर सकती है.
वर्तमान में भारत के पास Su-30MKI और Mirage-2000 जैसे लड़ाकू विमान हैं जो परमाणु हथियार ले जाने की क्षमता रखते हैं, लेकिन इनकी रेंज Tu-160M के मुकाबले बहुत कम है. Tu-160M की तैनाती से भारत का हवाई हमला आयाम वैश्विक स्तर पर नई ऊंचाइयों तक पहुंच सकता है.
क्या Tu-160M को भारत लीज पर ले सकता है?
भारत अतीत में रूस से INS चक्र पनडुब्बी को लीज मॉडल पर ले चुका है. ऐसे में Tu-160 बॉम्बर को भी लंबी अवधि की लीज पर लेने की संभावना पर चर्चा की जा रही है. इससे न केवल तत्काल खर्च कम होगा, बल्कि भारत को इसे चलाने और मेंटेन करने का अनुभव भी मिलेगा.
हालांकि, ऐसे किसी भी सौदे के लिए कई बुनियादी आवश्यकताएं होंगी:
क्या हैं चुनौतियां और कूटनीतिक जोखिम?
1. उच्च लागत और लॉजिस्टिक्स
इस बॉम्बर का रखरखाव, स्पेयर पार्ट्स, और संचालन लागत बहुत अधिक होगी. भारत को इसके लिए अलग से लॉजिस्टिक बेस तैयार करना पड़ेगा.
2. रूस की उत्पादन समस्याएं
यूक्रेन युद्ध के कारण रूस के डिफेंस सेक्टर को सप्लाई चेन और उत्पादन में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे इस बॉम्बर की डिलीवरी और मेंटेनेंस प्रभावित हो सकता है.
3. अमेरिकी प्रतिबंध (CAATSA)
रूस से बड़े रक्षा सौदों पर अमेरिका द्वारा लगाए जाने वाले प्रतिबंध (CAATSA) की संभावना को भी भारत को ध्यान में रखना होगा. इससे भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव आ सकता है.
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