भारत ने दुश्मन के साथ भी दिखाई इंसानियत, बातचीत बंद के बावजूद भी पाकिस्तान को दिया बाढ़ का अलर्ट

    भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में अचानक आई बाढ़ को देखते हुए पड़ोसी देश पाकिस्तान को संभावित खतरे के बारे में समय रहते आगाह किया है.

    India gave flood alert to Pakistan as a humanitarian gesture
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ ANI

    नई दिल्ली: भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में अचानक आई बाढ़ को देखते हुए पड़ोसी देश पाकिस्तान को संभावित खतरे के बारे में समय रहते आगाह किया है. यह जानकारी भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा साझा की गई, जिसमें बताया गया कि यह कदम पूरी तरह इंसानियत के नाते और मानवीय सहायता के तहत उठाया गया है.

    बाढ़ की यह चेतावनी जम्मू की तवी नदी में अचानक बढ़े जलस्तर को लेकर दी गई, जिसकी जानकारी भारत ने इस्लामाबाद स्थित अपने हाई कमीशन के माध्यम से पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय को भेजी. यह पहली बार है जब भारत ने ऐसी कोई आपातकालीन सूचना सीधे अपने राजनयिक मिशन के जरिए दी है.

    सामान्य प्रक्रिया से हटकर यह तरीका क्यों अपनाया?

    अतीत में इस तरह की जानकारी आम तौर पर सिंधु जल संधि के अंतर्गत दोनों देशों के जल आयुक्तों (वॉटर कमिश्नर्स) के बीच साझा की जाती थी. लेकिन मई 2025 में भारत द्वारा "ऑपरेशन सिंदूर" चलाने के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच लगभग सभी द्विपक्षीय बातचीत ठप हो चुकी है. ऐसे हालात में, भारत द्वारा इस जानकारी को साझा करना एक महत्वपूर्ण और सकारात्मक मानवीय प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.

    पाकिस्तानी मीडिया का दावा और सच्चाई

    पाकिस्तान के मीडिया चैनलों जैसे जियो न्यूज और द न्यूज इंटरनेशनल ने दावा किया कि भारत ने यह जानकारी सिंधु जल संधि के तहत दी है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत ने 24 अगस्त की सुबह तवी नदी में बाढ़ की आशंका को लेकर पाकिस्तान को चेतावनी दी थी. हालांकि, भारत की ओर से स्पष्ट किया गया कि यह जानकारी संधि के औपचारिक प्रोटोकॉल के तहत नहीं, बल्कि इंसानियत के लिहाज से दी गई है.

    पहलगाम हमले के बाद सिंधु जल संधि स्थगित

    गौरतलब है कि अप्रैल 2025 में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम इलाके में हुए एक आतंकी हमले के बाद भारत ने 1960 में हुई सिंधु जल संधि को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया था. भारत का यह कदम पाकिस्तान से आ रहे आतंकवाद पर जवाबी कार्रवाई के तौर पर देखा गया.

    क्या है सिंधु जल संधि?

    सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) भारत और पाकिस्तान के बीच पानी के बंटवारे को लेकर 1960 में हुई एक ऐतिहासिक संधि है. इसे विश्व बैंक की मध्यस्थता में तैयार किया गया था और इस पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने कराची में हस्ताक्षर किए थे.

    इस संधि के अनुसार:

    • भारत को रावी, ब्यास और सतलुज (तीन पूर्वी नदियों) का जल उपयोग करने का पूरा अधिकार है.
    • वहीं, सिंधु, झेलम और चिनाब (तीन पश्चिमी नदियों) का पानी पाकिस्तान को आवंटित किया गया.

    इस जल प्रणाली का क्षेत्रफल और असर

    सिंधु जल प्रणाली का विस्तार लगभग 11.2 लाख वर्ग किलोमीटर में है. इसमें:

    • 47% हिस्सा पाकिस्तान में,
    • 39% भारत में,
    • 8% चीन में,
    • और 6% अफगानिस्तान में आता है.

    इस क्षेत्र में लगभग 30 करोड़ लोग बसते हैं और इनकी जीवनरेखा इन नदियों पर ही निर्भर है.

    संधि के स्थगन का पाकिस्तान पर प्रभाव

    भारत द्वारा सिंधु जल संधि को स्थगित किए जाने का पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और आम नागरिकों पर गंभीर असर पड़ सकता है:

    • पाकिस्तान की 90% कृषि भूमि (लगभग 4.7 करोड़ एकड़) सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है.
    • कृषि क्षेत्र पाकिस्तान की 23% जीडीपी में योगदान देता है और 68% ग्रामीण आबादी की आजीविका इससे जुड़ी है.
    • अगर पानी की आपूर्ति प्रभावित हुई, तो मंगल और तारबेला जैसे बड़े हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स में बिजली उत्पादन में 30% से 50% तक की गिरावट आ सकती है.
    • इससे न केवल बिजली संकट उत्पन्न होगा बल्कि औद्योगिक उत्पादन और रोजगार पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा.

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