आज जब अमेरिका और यूरोप भारत की ऊर्जा नीति पर सवाल उठा रहे हैं और अतिरिक्त टैरिफ लगाने की तैयारी कर रहे हैं, तब भारत एक अलग ही ऊर्जा रणनीति से अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में जुटा है. यह रणनीति है- रूस से सस्ते दामों पर कच्चा तेल खरीदकर उसे रिफाइन कर दुनिया के बाजारों में ऊंचे दामों पर बेचना.
अमेरिका द्वारा भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाने का फैसला अगले दो दिनों में लागू हो जाएगा. यह टैक्स रूस से कच्चे तेल की खरीद पर लगाया जा रहा है, जिससे अब कुल मिलाकर भारत पर अमेरिका का टैरिफ 50% हो जाएगा. अमेरिका और यूरोपीय संघ का आरोप है कि भारत रूस से कच्चा तेल खरीदकर उसे प्रोसेस कर दुनिया को बेच रहा है, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से रूस को यूक्रेन युद्ध के लिए आर्थिक मदद मिल रही है.
डोनाल्ड ट्रंप और उनके प्रशासन ने भी भारत पर यह आरोप लगाया है कि भारत रूसी तेल खरीदकर पुतिन की "वॉर मशीन" को फ्यूल दे रहा है. हालांकि, इस लेख का मकसद उन आरोपों की चर्चा नहीं, बल्कि इस रणनीति से भारत की आर्थिक मजबूती को समझना है.
कोविड के बाद भारत को मिला रूसी तेल
कुछ साल पहले तक भारत की ऊर्जा टोकरी (ऑयल बास्केट) में रूस की हिस्सेदारी 2% से भी कम थी. कोविड-19 महामारी के दौरान जब पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं संकट में थीं, भारत भी बड़ी आर्थिक चुनौतियों से गुजर रहा था. उस समय भारत के निर्यात में भारी गिरावट आई थी, और विदेशी मुद्रा कमाने के रास्ते सीमित हो गए थे.
ऐसे में रूस से मिलने वाला सस्ता कच्चा तेल भारत के लिए एक गेमचेंजर साबित हुआ. भारत ने रूस से भारी मात्रा में सस्ते दाम पर कच्चा तेल खरीदा, उसे घरेलू रिफाइनरियों में प्रोसेस किया और फिर तैयार पेट्रोलियम उत्पादों को अमेरिका, यूरोप और अन्य देशों को एक्सपोर्ट किया.
2024-25 में भारत ने कमाया 5.25 लाख करोड़
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने रिफाइंड तेल और अन्य पेट्रोलियम उत्पादों को बेचकर 60.07 बिलियन डॉलर, यानी 5.25 लाख करोड़ रुपये की कमाई की. हालांकि, यह आंकड़ा पिछले वित्त वर्ष 2023-24 के मुकाबले थोड़ा कम है, जब भारत ने 84.2 बिलियन डॉलर यानी 7.37 लाख करोड़ रुपये का पेट्रोलियम एक्सपोर्ट किया था.
इस गिरावट का मुख्य कारण रहा वैश्विक स्तर पर पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में कमी. लेकिन इसके बावजूद भारत की यह कमाई उल्लेखनीय है और यह दिखाती है कि कैसे कच्चे तेल के आयात और रिफाइनिंग के माध्यम से देश को विदेशी मुद्रा अर्जित हो रही है.
भारत बना रूस का सबसे बड़ा ग्राहक
भारत आज दुनिया के उन गिने-चुने देशों में शामिल है, जो ऊर्जा जरूरतों के लिए इतने विविध स्रोतों पर निर्भर हैं. मौजूदा समय में भारत के पास 50 से ज्यादा देशों से कच्चा तेल खरीदने के विकल्प हैं. इनमें रूस फिलहाल सबसे बड़ा सप्लायर बनकर उभरा है.
केप्लर की रिपोर्ट के अनुसार अगस्त 2025 में भारत ने रूस से रोजाना औसतन 2 मिलियन बैरल कच्चा तेल खरीदा, जो जुलाई के 1.6 मिलियन बैरल प्रतिदिन से ज्यादा था. यह उस समय हुआ जब अमेरिका पहले ही भारत पर अतिरिक्त टैक्स लगाने का ऐलान कर चुका था.
रूस की हिस्सेदारी अगस्त में भारतीय ऑयल बास्केट में 38% तक पहुंच गई. इसके मुकाबले इराक से भारत का इंपोर्ट 907,000 बैरल/दिन से घटकर 730,000 बैरल/दिन रह गया, और सऊदी अरब से 700,000 बैरल/दिन से घटकर 526,000 बैरल/दिन. अमेरिका भी अब भारत का पांचवां सबसे बड़ा तेल सप्लायर है, जिसने अगस्त में 264,000 बैरल/दिन सप्लाई की.
रिफाइंड तेल से किस-किस प्रोडक्ट पर कितनी कमाई हुई?
भारत ने 2024-25 में विभिन्न रिफाइंड पेट्रोलियम उत्पादों को बेचकर अरबों डॉलर की कमाई की. नीचे प्रमुख उत्पादों और उनसे हुई कमाई का विवरण दिया गया है:
इन आंकड़ों से साफ है कि भारत का सबसे बड़ा एक्सपोर्ट प्रोडक्ट हाई-स्पीड डीजल रहा, जिसे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जबरदस्त मांग मिली.
क्या कहते हैं जानकार?
ऊर्जा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत ने वैश्विक ऊर्जा संकट को अपने पक्ष में मोड़ने में सफलता पाई है. रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते जब कई देशों ने रूस से तेल खरीदना बंद किया, तब भारत ने अवसर का लाभ उठाते हुए रियायती दरों पर कच्चा तेल खरीदा. इससे भारत की ऊर्जा लागत घटी और रिफाइनिंग उद्योग को बढ़ावा मिला.
भारत की यह रणनीति न केवल आर्थिक दृष्टि से लाभदायक रही है, बल्कि इससे रोजगार के अवसर भी बढ़े हैं और रिफाइनिंग सेक्टर में नई क्षमताएं जुड़ी हैं.
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