नई दिल्ली: भारत अपनी तोपखाना क्षमताओं को आधुनिक बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाने जा रहा है. स्वदेशी रूप से विकसित माउंटेड गन सिस्टम (MGS) अब परीक्षण चरण में प्रवेश करने के लिए तैयार है. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित यह प्रणाली वर्ष 2026 तक भारतीय सेना में सेवा प्रारंभ कर सकती है, जिससे यह चीन और पाकिस्तान की वर्तमान MGS प्रणालियों के मुकाबले एक रणनीतिक बढ़त दिला सकती है.
आधुनिकता और गतिशीलता का समन्वय
यह MGS प्रणाली 155 मिमी, 52 कैलिबर की लंबी दूरी तक मार करने वाली आर्टिलरी गन है, जिसे एक ऑल-टेरेन टाट्रा ट्रक प्लेटफॉर्म पर माउंट किया गया है. प्रमुख तकनीकी विवरण निम्नानुसार हैं:
MGS प्रणाली की सबसे बड़ी विशेषता इसकी "शूट एंड स्कूट" क्षमता है, जो इसे सीमित समय में दुश्मन के रडार से बचने और स्थान बदलने की सुविधा देती है. फायरिंग के बाद यह तुरंत री-लोकेट हो सकती है, जिससे काउंटर बैटरी फायर का खतरा न्यूनतम होता है.
रणनीतिक लाभ: चीन-पाक गन प्रणालियों से श्रेष्ठ
चीन और पाकिस्तान ने अपनी तोपखाना क्षमताओं को बढ़ाने के लिए SH-15 जैसे मोबाइल गन सिस्टम को अपनाया है. पाकिस्तान ने 2019 में NORINCO से 236 SH-15 गन का सौदा किया, जिनमें से अब तक 54 भारत-पाक सीमा के उत्तर और दक्षिण क्षेत्रों में तैनात की जा चुकी हैं.
SH-15 की अधिकतम दावा की गई मारक क्षमता ~53 किमी है, हालांकि यह रेंज आदर्श परिस्थितियों पर निर्भर है और वास्तविक युद्ध क्षेत्र में कई कारकों से प्रभावित हो सकती है.
भारतीय MGS की तुलनात्मक श्रेष्ठता:
विकास और उत्पादन की स्थिति
MGS परियोजना को भारत सरकार की 'मेक इन इंडिया' पहल के तहत प्रोत्साहन मिला है. कुल 814 यूनिट्स की खरीद योजना बनाई गई है. DRDO और निजी क्षेत्र के साझेदारों द्वारा संयुक्त रूप से इस प्रणाली को विकसित किया गया है.
सूत्रों के अनुसार, जनवरी 2026 से उपयोगकर्ता परीक्षण (User Trials) शुरू होंगे. परीक्षण सफल रहने की स्थिति में अगले दो वर्षों में बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू किया जा सकता है.