नई दिल्ली: लद्दाख सीमा विवाद के बाद ठंडे पड़े भारत-चीन संबंधों में अब धीरे-धीरे सकारात्मक बदलाव के संकेत नजर आने लगे हैं. हाल ही में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी और चीन के उप विदेश मंत्री सुन वेईडोंग के बीच हुई बातचीत में दोनों देशों ने अपने रिश्तों को स्थिर करने की गंभीर कोशिशें शुरू की हैं.
हवाई सेवाएं और संपर्क बहाली पर सहमति
भारत और चीन ने सीधी हवाई सेवाओं को फिर से शुरू करने पर सहमति व्यक्त की है. कोविड-19 और सीमा विवाद के चलते जो विमान सेवाएं लगभग ठप हो गई थीं, उन्हें पुनर्जीवित करने के लिए दोनों पक्ष अब रफ्तार पकड़ रहे हैं. एयर सर्विस एग्रीमेंट को जल्द अपडेट करने पर भी काम शुरू किया जा चुका है.
इसके अलावा, वीजा प्रक्रियाओं को आसान बनाने, मीडिया प्रतिनिधियों और थिंक-टैंक के बीच संवाद बढ़ाने जैसे व्यावहारिक कदमों पर भी सहमति बनी है. दोनों देशों का मानना है कि लोगों के बीच सीधे संपर्क बहाल करना आपसी विश्वास बहाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.
व्यापारिक मुद्दों को सुलझाने की पहल
व्यापार के मोर्चे पर भी नई संभावनाएं खुलती दिख रही हैं. भारत ने चीन के साथ दुर्लभ पृथ्वी तत्वों (Rare Earth Elements) के निर्यात नियंत्रण, व्यापार पारदर्शिता और नीति स्थिरता जैसे मुद्दों पर स्पष्ट और दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता जताई है. दोनों देश इस दिशा में व्यावसायिक बातचीत को तेज करने पर सहमत हुए हैं.
भारत विशेष रूप से चाहता है कि चीन अपने निर्यात नियंत्रण नियमों में स्थिरता और पूर्वानुमेयता सुनिश्चित करे ताकि भारतीय कंपनियों को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में बेहतर स्थान मिल सके.
कूटनीतिक संवाद और सीमा वार्ता
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद अब भी एक संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है, लेकिन दोनों देश इसे सुलझाने के लिए विशेष प्रतिनिधियों की वार्ता को प्राथमिकता दे रहे हैं. पिछले साल पांच साल के लंबे अंतराल के बाद यह संवाद फिर से शुरू हुआ था, जिसे दोनों पक्ष आगे भी जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
इस संदर्भ में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच लगातार संपर्क बनाए रखने की योजना है. 2025 में वांग यी की भारत यात्रा के लिए भी सहमति बन चुकी है.
कैलाश मानसरोवर यात्रा और जल सहयोग
भारत ने कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने में चीन के सहयोग की सराहना की है. साथ ही, सीमा पार नदियों विशेषकर ब्रह्मपुत्र (जिसे चीन में यारलुंग त्सांगपो कहा जाता है) पर जल विज्ञान डेटा साझा करने की प्रक्रिया को भी मजबूत करने पर सहमति बनी है. भारत पहले ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन द्वारा बनाए जा रहे बड़े जलविद्युत परियोजना को लेकर चिंता जता चुका है, ऐसे में यह सहयोग महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
SCO सम्मेलन: चीन की कूटनीतिक उम्मीद
चीन इस साल तियानजिन में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भागीदारी को लेकर खासा उत्सुक है. चीन चाहता है कि भारत इस सम्मेलन में सक्रिय भूमिका निभाए, जहां रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भी मौजूद रहेंगे.
हालांकि भारत ने अभी इस बारे में कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिया है. माना जा रहा है कि भारत सीमा वार्ता और SCO विदेश मंत्रियों की बैठक के परिणामों के आधार पर अपने अगले कदम तय करेगा. विदेश मंत्री एस. जयशंकर के सम्मेलन में भाग लेने की संभावना है, लेकिन प्रधानमंत्री स्तर की भागीदारी पर अभी सस्पेंस बरकरार है.
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