सुपरसोनिक से हो जाएगी हाइपरसोनिक, भारत-रूस मिलकर बनाएंगे ब्रह्मोस-2K मिसाइल, कांपेंगे चीन-पाकिस्तान!

    भारत और रूस की सैन्य साझेदारी एक नए युग में प्रवेश कर रही है. दोनों देशों के बीच रक्षा क्षेत्र में सहयोग का एक और अध्याय जुड़ने जा रहा है.

    India and Russia will jointly develop Brahmos-2K missile
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ ANI

    नई दिल्ली/मॉस्को: भारत और रूस की सैन्य साझेदारी एक नए युग में प्रवेश कर रही है. दोनों देशों के बीच रक्षा क्षेत्र में सहयोग का एक और अध्याय जुड़ने जा रहा है. सूत्रों के अनुसार, भारत और रूस अब ब्रह्मोस मिसाइल के हाइपरसोनिक अवतार "ब्रह्मोस-2K" पर मिलकर काम शुरू करने जा रहे हैं. इस हाई-टेक मिसाइल परियोजना पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की आगामी भारत यात्रा के दौरान औपचारिक समझौते की संभावना जताई जा रही है.

    ब्रह्मोस मिसाइल ने हाल ही में हुए 'ऑपरेशन सिंदूर' में जिस तरह की सटीकता और विध्वंसक क्षमता दिखाई, उसने न केवल भारत की सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया कि सुपरसोनिक स्तर की मौजूदा ब्रह्मोस मिसाइल भी चीन और पाकिस्तान जैसे देशों के एयर डिफेंस को चकमा देने में सक्षम है. अब ब्रह्मोस-2K के साथ भारत और रूस एक ऐसी मिसाइल प्रणाली विकसित करने की ओर बढ़ रहे हैं, जिसे रोक पाना मौजूदा तकनीक के लिए लगभग असंभव होगा.

    ब्रह्मोस-2K: भविष्य की हाइपरसोनिक शक्ति

    ब्रह्मोस-2K को ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल की अगली पीढ़ी के रूप में देखा जा रहा है. इस हाइपरसोनिक मिसाइल की रफ्तार 7 से 8 मैक तक हो सकती है, जो ध्वनि की गति से कई गुना तेज है. विशेषज्ञों के अनुसार, इसकी रेंज 1500 किलोमीटर तक हो सकती है और यह स्क्रैमजेट इंजन पर आधारित होगी.

    इस प्रणाली का सबसे खास पहलू यह है कि यह एक न्यूक्लियर कैपेबल मिसाइल होगी, यानी यह पारंपरिक विस्फोटकों के साथ-साथ परमाणु हथियारों को भी लक्ष्य तक पहुंचा सकती है. इसे रूस की उन्नत '3M22 Zircon' हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक पर आधारित माना जा रहा है, लेकिन भारत इसमें अपनी खुद की प्रौद्योगिकी और सुधार भी जोड़ेगा.

    स्क्रैमजेट इंजन और कम रडार सिग्नेचर

    ब्रह्मोस-2K में स्क्रैमजेट इंजन के इस्तेमाल की योजना है, जो इसे हाइपरसोनिक गति तक ले जाने में सक्षम बनाएगा. इसके अलावा, मिसाइल को लो ऑब्जर्वेबल यानी कम रडार सिग्नेचर वाली डिजाइन दी जा रही है, जिससे इसे पहचानना और रोकना बेहद कठिन होगा. इसके एडवांस मैनूवरिंग फीचर्स इसे एंटी-मिसाइल सिस्टम से बच निकलने में मदद देंगे.

    डिफेंस टेक्नोलॉजी में रुचि रखने वालों के लिए यह जानना रोचक होगा कि मौजूदा ब्रह्मोस की स्पीड लगभग 3.5 मैक है और इसकी रेंज 800 किलोमीटर है. यह भारतीय थल सेना, नौसेना और वायुसेना तीनों में तैनात है. वहीं, ब्रह्मोस-2K न केवल दुश्मन की सीमाओं में गहराई तक मार कर सकेगी, बल्कि यह किसी भी मौजूदा एयर डिफेंस शील्ड को पार करने में सक्षम होगी.

    भारत में विकसित स्क्रैमजेट इंजन बना गेमचेंजर

    इस साल अप्रैल में DRDO ने स्वदेशी स्क्रैमजेट इंजन का सफल ग्राउंड टेस्ट किया था. यह परीक्षण करीब 1000 सेकंड तक चला और पूरी तरह सफल रहा. इस उपलब्धि से ब्रह्मोस-2K को नई ऊर्जा मिली है. DRDO के पूर्व महानिदेशक डॉ. सुधीर कुमार मिश्रा के अनुसार, यह इंजन ब्रह्मोस-2K में इस्तेमाल किया जा सकता है और इससे रूस पर तकनीकी निर्भरता भी कम होगी.

    यानी अब भले डिजाइन रूस की Zircon मिसाइल से प्रेरित हो, लेकिन भारत इस सिस्टम में अपनी तकनीक का समावेश करके एक हाइब्रिड मिसाइल तैयार करेगा जो स्वदेशी आत्मनिर्भरता का भी उदाहरण होगी.

    वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत की हाइपरसोनिक छलांग

    भारत यह महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट ऐसे समय शुरू कर रहा है जब वैश्विक स्तर पर हाइपरसोनिक हथियारों की दौड़ तेज हो चुकी है. रूस और चीन जहां पहले ही इस क्षेत्र में सफलता हासिल कर चुके हैं, वहीं अमेरिका को अब तक कई असफलताओं का सामना करना पड़ा है.

    भारत ने अपने मिसाइल विकास कार्यक्रम की नींव दशकों पहले रख दी थी और धीरे-धीरे एक संपूर्ण रक्षा इकोसिस्टम तैयार किया है. इसी का परिणाम है कि अब भारत मिसाइल परीक्षण, विकास और उत्पादन में दुनिया के अग्रणी देशों में शामिल हो गया है.

    कब तक होगी ब्रह्मोस-2K तैयार?

    रिपोर्ट्स के अनुसार, ब्रह्मोस-2K के दो वैरिएंट पर काम चल रहा है. पहला वैरिएंट, जो हाइपरसोनिक गति के निकट होगा, उसे 2026 के अंत तक तैयार करने की योजना है. दूसरा संस्करण, जिसमें पूरी तरह स्क्रैमजेट तकनीक का उपयोग होगा, 2027 तक तैयार हो सकता है.

    रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत और रूस की तकनीकी साझेदारी इतनी मजबूत है कि यह परियोजना समयबद्ध तरीके से पूरी की जा सकती है. दिल्ली डिफेंस रिव्यू के निदेशक सौरव झा के अनुसार, भारत के पास परीक्षण और विकास की उन्नत सुविधाएं हैं, जो इसे अन्य देशों से आगे रखती हैं.

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