चीन की बढ़ती आक्रामकता और डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की नीतियों ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के शक्ति संतुलन को पूरी तरह से बदल दिया है. अमेरिका के साथ-साथ उसके कुछ करीबी सहयोगियों का भी विश्वास डगमगाने लगा है. इस परिस्थिति को देखते हुए, जापान के एक थिंक टैंक ने एक महत्वपूर्ण सुझाव दिया है. उनका कहना है कि भारत और जापान को मिलकर लंबी दूरी की सामरिक स्ट्राइक क्षमता विकसित करनी चाहिए. इसके जरिए दोनों देश चीन की बढ़ती सैन्य ताकत और उसके प्रभाव को काउंटर कर सकते हैं.
चीन की सैन्य ताकत में वृद्धि
पिछले कुछ वर्षों में, चीन ने अपनी सैन्य क्षमता में महत्वपूर्ण वृद्धि की है. चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ने हाइपरसोनिक मिसाइलों से लेकर नौसैनिक ताकत तक अपने सैन्य हथियारों की सीमा बढ़ाई है. इसके साथ ही, उसने दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में भी अपनी उपस्थिति को मजबूत किया है, जिससे उसके पड़ोसी देशों को चिंताएं बढ़ी हैं. भारत और जापान दोनों ही चीन के लिए संभावित सैन्य खतरा बन चुके हैं, क्योंकि चीन ने जापान के सेनकाकू द्वीप पर दावा किया है और भारत के साथ सीमा विवाद भी चल रहा है.
भारत और जापान के सामरिक सहयोग की जरूरत
जापानी थिंक टैंक का मानना है कि अगर भारत और जापान मिलकर लंबी दूरी तक मार करने वाली सामरिक मिसाइल का निर्माण करते हैं, तो इससे दोनों देशों की सुरक्षा में मजबूत वृद्धि हो सकती है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस तरह की मिसाइलों की रेंज 2000-3000 किलोमीटर के बीच होनी चाहिए. इस संयुक्त प्रयास के जरिए दोनों देश चीन के सैन्य ठिकानों को निशाना बना सकते हैं, और उन्हें पारंपरिक रूप से अमेरिकी सहयोग पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं होगी.
भारत और जापान की सैन्य क्षमताओं का संयुक्त इस्तेमाल
भारत और जापान के पास पहले से ही अपनी-अपनी सैन्य क्षमताएं हैं. भारत के पास पहले से ही अग्नि सीरीज़ की बैलिस्टिक मिसाइलें हैं, जबकि जापान टॉमहॉक क्रूज मिसाइल और एडवांस टाइप-12 मिसाइल जैसे सिस्टम के लिए अमेरिका से अधिग्रहण की कोशिश कर रहा है. दोनों देशों के पास अपनी-अपनी सैन्य ताकतों को मिलाकर चीन के गहरे अंदर तक हमले करने की क्षमता हो सकती है. जापान की सटीक इंजीनियरिंग और भारत के किफायती मिसाइल कार्यक्रमों का संयुक्त प्रयास एक मजबूत मिसाइल सिस्टम को जन्म दे सकता है.
चीन की बढ़ती मिसाइल क्षमता और भारत-जापान की साझेदारी का महत्व
चीन ने अपनी DF-26 बैलिस्टिक मिसाइल जैसी शक्तिशाली मिसाइलों को भी अपनी सैन्य ताकत में शामिल किया है, जिसे “एयरक्राफ्ट कैरियर किलर” कहा जाता है. इस मिसाइल की रेंज 4000 किलोमीटर से ज्यादा है, जो चीन को अमेरिका के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने की क्षमता प्रदान करती है. इसके अलावा, चीन ने अपनी एंटी-एक्सेस/एरिया-डिनायल (A2/AD) रणनीति को भी मजबूत किया है, जिसका उद्देश्य ताइवान और दक्षिण चीन सागर में अपने विरोधियों के खिलाफ बढ़त हासिल करना है.
इन परिस्थितियों में, भारत और जापान का मिलकर लंबी दूरी की सामरिक स्ट्राइक क्षमता विकसित करना एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है. जापान के पास परमाणु हथियार नहीं हैं, जबकि भारत एक परमाणु शक्ति है. इस क्षमता के विकास से दोनों देशों को चीन के रणनीतिक ठिकानों को निशाना बनाने की ताकत मिल सकती है, जिससे उनकी सुरक्षा में महत्वपूर्ण वृद्धि होगी.
भारत-जापान सहयोग से सुरक्षा का एक नया आयाम
जापान और भारत के मिलकर यह कदम उठाने से दोनों देशों की “इंटीग्रेटेड डिटरेंस” (संयुक्त रक्षात्मक क्षमता) मजबूत हो सकती है. इस सहयोग से न सिर्फ दोनों देशों की सैन्य ताकत बढ़ेगी, बल्कि उन्हें अमेरिका पर निर्भरता भी कम हो सकती है. एक संयुक्त हाइपरसोनिक या क्रूज मिसाइल विकसित करके, दोनों देश चीनी सैन्य ठिकानों को कमजोर कर सकते हैं. इससे न सिर्फ समुद्री प्लेटफार्मों से, बल्कि हवाई और स्थलीय प्लेटफार्मों से भी हमला किया जा सकता है.
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