नई दिल्लीः भारत और इजरायल के बीच कई दशकों से मजबूत रक्षा साझेदारी रही है. इन दोनों देशों ने मिलकर कई उन्नत रक्षा प्रणालियां विकसित की हैं और अपने सामरिक हितों के लिए एक-दूसरे का समर्थन किया है. लेकिन हालिया घटनाओं ने इस साझेदारी में दरार के संकेत दिए हैं. आरोप लगाए जा रहे हैं कि इजरायल, भारत के साथ मिलकर विकसित किए गए एक प्रमुख एयर डिफेंस सिस्टम को अकेले ही बेचने की कोशिश कर रहा है. यह एयर डिफेंस सिस्टम है—Barak-8—जो पाकिस्तान की मिसाइल को भारत के हरियाणा में इंटरसेप्ट कर नष्ट कर चुका है.
Barak-8 का इतिहास और विवाद
Barak-8 एयर डिफेंस सिस्टम को भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और इजरायली कंपनी इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (IAI) ने मिलकर विकसित किया था. यह एडवांस एयर डिफेंस सिस्टम विशेष रूप से बैलिस्टिक मिसाइलों, ड्रोन, क्रूज मिसाइलों, और लड़ाकू विमानों को इंटरसेप्ट करने के लिए डिजाइन किया गया था. 2006 में इस सिस्टम की शुरुआत के समय, दोनों देशों का उद्देश्य था एक साझा और प्रभावी रक्षा प्रणाली का निर्माण करना.
इजरायल और भारत के बीच इस सहयोग को रणनीतिक साझेदारी का महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया था. लेकिन अब खबरें आ रही हैं कि इजरायल, Barak-8 को 'Barak MX' नाम देकर कुछ देशों को बेचने की कोशिश कर रहा है, जबकि इसमें DRDO द्वारा विकसित कुछ महत्वपूर्ण तकनीकों को शामिल नहीं किया गया है. सबसे बड़ी चिंता यह है कि इजरायल ने इस एयर डिफेंस सिस्टम के एक्सपोर्ट वैरिएंट में dual-pulse रॉकेट मोटर को शामिल नहीं किया है, जिसे DRDO ने विशेष रूप से तैयार किया था.
DRDO की तकनीकी भूमिका और इजरायल की रणनीति
भारत ने इस प्रणाली के लिए विशेष रूप से dual-pulse रॉकेट मोटर विकसित की, जो मिसाइल को आखिरी स्टेज तक अपनी गति बनाए रखते हुए टारगेट तक पहुंचने और दिशा बदलने की क्षमता देती है. इस महत्वपूर्ण तकनीक को इजरायल के निर्यात मॉडल में छोड़ दिया गया है, जिससे DRDO की मेहनत और भारत की रक्षा क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं. भारत के रक्षा क्षेत्र में यह एक बड़ा धक्का हो सकता है, खासकर तब जब DRDO ने भारत के लिए कई स्वदेशी तकनीकों को विकसित किया है.
इजरायल के व्यापारिक कदम और भारत की स्थिति
इजरायल ने अब तक Barak-8 एयर डिफेंस सिस्टम की बिक्री के लिए कई देशों के साथ समझौते किए हैं. अज़रबैजान और मोरक्को जैसे देशों के साथ इजरायल ने यह सिस्टम बेचा है, लेकिन इन सौदों में DRDO द्वारा विकसित तकनीकों को शामिल नहीं किया गया है. रिपोर्ट्स के अनुसार, इजरायल संयुक्त अरब अमीरात के साथ भी इस सिस्टम की बिक्री पर चर्चा कर रहा है.
भारतीय सूत्रों के अनुसार, इजरायल का यह कदम भारत के लिए चिंता का विषय बन चुका है, क्योंकि इससे भारत को वैश्विक रक्षा बाजार में कोई खास लाभ नहीं मिल रहा है. इसके अलावा, इस प्रोजेक्ट से जुड़े बौद्धिक संपदा और डेटा अधिकारों पर भी सवाल उठ रहे हैं. भारतीय रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के कदमों से दोनों देशों के बीच भविष्य में होने वाले रक्षा समझौतों पर असर पड़ सकता है.
इजरायल और भारत के भविष्य में रिश्ते
भारत और इजरायल के बीच रक्षा क्षेत्र में सहयोग हमेशा से मजबूत रहा है, लेकिन यदि इजरायल अपनी रणनीतिक साझेदारी को एकतरफा तरीके से आगे बढ़ाता है, तो यह भविष्य में दोनों देशों के रिश्तों को प्रभावित कर सकता है. भारत ने कई बार अपनी तकनीकी और आर्थिक हिस्सेदारी पर जोर दिया है, और यह स्थिति इजरायल के लिए एक संकेत हो सकती है कि भविष्य में ऐसी स्थिति में भारत की तरफ से अविश्वास पैदा हो सकता है.
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