नई दिल्लीः जरा सोचिए, जब दुश्मन देश की ओर से फाइटर जेट या मिसाइलें उड़ती हुई आपकी ओर बढ़ें, तो उन्हें हवा में ही ढेर कर देने वाला कोई सुरक्षा कवच कितना जरूरी होगा. यही काम करते हैं एयर डिफेंस सिस्टम और अब भारत इस खेल में पीछे नहीं रहा. दशकों से अमेरिका, इज़रायल और रूस जैसे देशों की गिनती इस मामले में अव्वल होती रही है, लेकिन अब भारत ने भी आकाश प्राइम के रूप में एक ऐसा हथियार तैयार किया है जो न सिर्फ दुश्मन के मंसूबों को चकनाचूर कर सकता है, बल्कि बहुत कम कीमत में अपनी सीमाओं को काफी हद तक अजेय बना सकता है.
पहाड़ों की रक्षा के लिए बना है ‘आकाश’
भारत ने आकाश को इस हिसाब से डिजाइन किया है कि वह दुर्गम पहाड़ी इलाकों में भी दुश्मन की हवाई चालों को नाकाम कर सके. चीन और पाकिस्तान की ओर से जितनी भी हवाई हलचल होती है, वह अधिकतर ऊंचाई वाले इलाकों से होती है. ऐसे में भारत को एक ऐसा एयर डिफेंस सिस्टम चाहिए था जो ना सिर्फ ट्रक पर लोड होकर किसी भी ऊंचाई पर पहुंच सके, बल्कि वहां बेहद कम ऑक्सीजन में भी सही-सही काम कर सके.
DRDO ने इसी सोच के साथ आकाश प्राइम को विकसित किया. 15 हजार फीट की ऊंचाई पर इसका सफल परीक्षण साबित करता है कि अब भारत भी दुनिया के उन गिने-चुने देशों में शामिल हो चुका है जो अपनी हवाई सीमाओं की सुरक्षा खुद तय कर सकते हैं.
क्या है आकाश प्राइम की ताकत?
आकाश प्राइम कोई दिखावे का सिस्टम नहीं है. इसकी रेंज 25 से 30 किलोमीटर है और यह 4,500 मीटर तक उड़ रहे टारगेट्स को इंटरसेप्ट कर सकता है. इसका सबसे खास फीचर है – रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) सीकर, जो फाइटर जेट, ड्रोन और क्रूज मिसाइल जैसे तेज गति वाले लक्ष्यों को पहचानता और फॉलो करता है.
लद्दाख में जब इसे परखा गया, तब इसने एक नहीं बल्कि दो अलग-अलग ड्रोन को हवा में ही गिरा दिया. और खास बात ये – चाहे सर्दी हो, गर्मी हो या रेगिस्तान की धूल, आकाश प्राइम को हर जगह तैनात किया जा सकता है – अरुणाचल से लेकर राजस्थान तक.
अब नजर डालते हैं अमेरिका के ‘पैट्रियट’ सिस्टम पर
अमेरिका का पैट्रियट PAC-3 सिस्टम दशकों से उसकी सबसे बड़ी ताकत रहा है. यह वही मिसाइल है जिसने 1991 के Gulf War में स्कड मिसाइलों को इंटरसेप्ट किया था. बाद में ईरान से लेकर यमन तक, जहां-जहां अमेरिका के ठिकाने रहे, वहां यह पैट्रियट सिस्टम एक भरोसेमंद ढाल की तरह काम करता रहा.
इसकी रेंज लगभग 35 किलोमीटर है और ऊंचाई 15 किलोमीटर तक. लेकिन इसकी असली ताकत है – Hit-to-Kill टेक्नोलॉजी. यानी ये मिसाइलें दुश्मन की मिसाइल से टकराकर उसे टुकड़ों में तब्दील कर देती हैं, सिर्फ ट्रैक नहीं करतीं.
एक पैट्रियट बैटरी 100 से 200 वर्ग किलोमीटर के इलाके की सुरक्षा कर सकती है, लेकिन इसकी कीमत सुनकर शायद आपके होश उड़ जाएं. एक बैटरी की कीमत 1 अरब डॉलर तक पहुंचती है. यही वजह है कि इसे अमेरिका के अलावा सिर्फ कुछ अमीर और सामरिक रूप से अहम देशों ने ही अपनाया है – जैसे इज़रायल, जापान, सऊदी अरब, पोलैंड और यूक्रेन.
आकाश बनाम पैट्रियट – कौन किस पर भारी?
अगर आप सिर्फ रेंज और टेक्नोलॉजी से तुलना करें, तो पैट्रियट PAC-3 कहीं आगे दिखता है, लेकिन जब बात आती है अपने देश की ज़रूरतों और ज़मीनी हकीकत की, तो आकाश प्राइम कहीं ज्यादा व्यावहारिक साबित होता है. पैट्रियट एक महंगा, भारी-भरकम और बड़े बेस पर टिकने वाला सिस्टम है. वहीं आकाश – सस्ता, मोबाइल और हर मौसम में एक जैसा काम करने वाला हथियार है. भारत के पास सीमाएं ज्यादा हैं, दुश्मन दो मोर्चों पर हैं, और इलाके विविध हैं – तो जरूरत भी ऐसी ही तकनीक की है जो हर जगह फिट हो सके. आकाश प्राइम ने वही किया है.
आकाश का अगला वर्जन और भी खतरनाक
DRDO अब एक और बड़ा कदम उठा रहा है – Akash Next Generation (Akash-NG). यह सिस्टम 70 से 80 किलोमीटर की रेंज तक काम करेगा और ज्यादा तेज व अधिक घातक टारगेट्स को भी सेकंडों में ढेर कर सकेगा. इसका मतलब ये है कि आकाश प्राइम और अगला वर्जन मिलकर भारत को एक बेहद मजबूत मल्टी-लेयर एयर डिफेंस कवच देने जा रहे हैं – कुछ-कुछ उसी तरह जैसे अमेरिका का खुद का सिस्टम है.
तुलना किस बात की होनी चाहिए?
सिर्फ ‘कौन बेहतर है’ पूछना सवाल का अधूरा जवाब देता है. असली सवाल ये है – किस देश की जरूरत क्या है? भारत को चाहिए – तेज़, सस्ता, ऊंचाई पर टिकाऊ, स्वदेशी और भरोसेमंद सिस्टम. आकाश यही सब कुछ है. यह कोई दिखावटी ‘हाई-टेक’ प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि भारत के सुरक्षा ढांचे की एक ठोस कड़ी बन गया है. और जब इसका अगला वर्जन तैयार होगा, तब शायद इसे दुनिया के सबसे बेहतर एयर डिफेंस सिस्टम की लिस्ट में ऊपर ही रखा जाएगा.
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