पाकिस्तान की सियासत एक बार फिर दिलचस्प मोड़ पर पहुंच चुकी है. एक ओर फौज के सबसे ताकतवर जनरल आसिम मुनीर ने खुद को फील्ड मार्शल घोषित कर लिया है, तो दूसरी ओर जेल में बंद इमरान खान ने राजनीति का नया पासा फेंकते हुए खुद को PTI का 'पेट्रन इन चीफ' यानी संरक्षक घोषित कर दिया है. अब एक के पास बंदूक की ताकत है और दूसरे के पास भीड़ का जुनून. ये टकराव सिर्फ दो शख्सियतों का नहीं, पाकिस्तान की सत्ता की दिशा तय करने वाली लड़ाई बन चुकी है.
क्या इमरान ने आखिरी दांव चला?
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, इमरान खान का यह कदम उनकी मजबूरी भी था और मास्टरस्ट्रोक भी. पार्टी पर चल रहे सरकारी और सैन्य शिकंजे के बीच इमरान को एहसास हो गया कि अगर उन्होंने अब कोई ठोस फैसला नहीं लिया, तो PTI पूरी तरह बिखर सकती है. जेल में होने के बावजूद उन्होंने 'पेट्रन इन चीफ' का रोल लेकर पार्टी में अपना वर्चस्व और पकड़ बरकरार रखने का रास्ता चुना.
अब PTI का मतलब = सिर्फ इमरान खान
सेना के क्रैकडाउन और लगातार टूटते काडर के बीच इमरान खान ने संदेश दे दिया है — चाहे जो हो जाए, PTI में आखिरी फैसला उन्हीं का होगा. यह पद संवैधानिक नहीं है, लेकिन पार्टी के भीतर यह सर्वोच्च नेतृत्व की कुर्सी है. "इमरान इज PTI एंड PTI इज इमरान" अब सिर्फ एक जुमला नहीं, राजनीतिक हकीकत बन गया है.
क्यों बढ़ी आसिम बनाम इमरान की जंग?
2019 में जब इमरान खान ने जनरल आसिम मुनीर को ISI चीफ के पद से हटाया था, उसी वक्त से दोनों के बीच अनकहा संघर्ष शुरू हो गया था. अब जब आसिम मुनीर फील्ड मार्शल बनकर सत्ता की चाबी थाम चुके हैं, तो इमरान के लिए चुनौती और बढ़ गई है. वहीं, इमरान का यह नया रोल सेना को यह भी दिखाने की कोशिश है कि पार्टी पर उनकी पकड़ टूटने वाली नहीं है. पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी की मानें तो पाकिस्तान अब एक दिलचस्प सत्ता संघर्ष के मुहाने पर खड़ा है. एक तरफ सेना का मुखिया जो खुद को आजीवन सत्ता में देखना चाहता है, और दूसरी ओर एक जननायक, जो जेल की सलाखों के पीछे से भी अपने राजनीतिक वजूद को ज़िंदा रखे हुए है.
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