स्विफ्ट, फोर्ड, BMW का प्रोडक्शन रुका... चीन के रेयर अर्थ मटेरियल एक्सपोर्ट पर रोक का दुनिया पर असर

    चीन द्वारा महत्वपूर्ण रेयर अर्थ मटेरियल्स (REMs) के निर्यात पर लगाई गई नई पाबंदियों ने वैश्विक ऑटोमोटिव उद्योग की रीढ़ पर सीधा असर डाला है.

    Impact of Chinas ban on rare earth material export
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- FreePik

    नई दिल्ली/बीजिंग: चीन द्वारा महत्वपूर्ण रेयर अर्थ मटेरियल्स (REMs) के निर्यात पर लगाई गई नई पाबंदियों ने वैश्विक ऑटोमोटिव उद्योग की रीढ़ पर सीधा असर डाला है. जापान की सुजुकी मोटर कॉर्पोरेशन को अपने प्रमुख मॉडल स्विफ्ट का उत्पादन रोकना पड़ा है, तो वहीं यूरोप की प्रमुख कंपनियों- BMW, मर्सिडीज, फोर्ड और निसान ने भी अपने कुछ प्लांट्स को अस्थायी रूप से बंद करने का फैसला लिया है.

    यह संकट केवल उत्पादन तक सीमित नहीं है. यदि चीन अपनी सख्ती पर कायम रहता है, तो यह स्थिति आने वाले महीनों में इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) की लागत और उपलब्धता को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है- भारत सहित.

    रेयर अर्थ मटेरियल्स: छोटी धातुएं, बड़ी रणनीति

    रेयर अर्थ मटेरियल्स, जैसे- नियोडिमियम, टेरबियम और डिस्प्रोसियम ऑटोमोटिव और हाई-टेक इंडस्ट्री के लिए अत्यंत आवश्यक हैं. इनका उपयोग विशेष रूप से इलेक्ट्रिक गाड़ियों की मोटरों, सेंसर, डिस्प्ले सिस्टम और केटालिटिक कन्वर्टर्स में होता है.

    • इलेक्ट्रिक वाहन आज की ग्रीन टेक्नोलॉजी क्रांति के केंद्र में हैं, और इन धातुओं के बिना उनकी कल्पना असंभव है.
    • चीन इस क्षेत्र में लगभग 70% वैश्विक खनन और 90% तक रिफाइनिंग को नियंत्रित करता है, जिससे वह पूरी सप्लाई चेन पर एक निर्णायक स्थिति में है.

    प्रोडक्शन हॉल्ट: जापान से अमेरिका तक असर

    • सुजुकी मोटर कॉर्पोरेशन ने 26 मई से स्विफ्ट का उत्पादन रोका है. यह जापान में लिया गया पहला बड़ा निर्णय है.
    • फोर्ड ने शिकागो में अपनी एक्सप्लोरर SUV असेंबली लाइन बंद की.
    • निसान के CEO इवान एस्पिनोसा ने वैकल्पिक सप्लाई चैनल्स की खोज पर बल दिया है.
    • BMW और मर्सिडीज ने भी स्वीकार किया कि उनके सप्लाई चेन पर दबाव बढ़ रहा है और वे संभावित स्टॉक आउट की स्थिति से निपटने के लिए रणनीति बना रहे हैं.

    भारत की चिंता: EV सेक्टर पर मंडराया संकट

    भारत में भी स्थिति गंभीर हो सकती है. बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के EV निर्माता केवल 6 से 8 सप्ताह की REM इन्वेंटरी पर निर्भर हैं. TVS मोटर के प्रबंध निदेशक सुदर्शन वेणू ने आगाह किया है कि जून या जुलाई तक उत्पादन प्रभावित हो सकता है. भारत सरकार अब इस संकट का समाधान खोजने के लिए सक्रिय हुई है.

    चीन भेजा जाएगा उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल

    भारत अगले हफ्ते चीन में एक हाई-लेवल ऑटोमोटिव डेलिगेशन भेजेगा. इसमें SIAM (Society of Indian Automobile Manufacturers) और ACMA (Automotive Component Manufacturers Association) के प्रतिनिधि शामिल होंगे.

    यह प्रतिनिधिमंडल चीन के अधिकारियों से आग्रह करेगा कि भारत के लिए आवश्यक रेयर अर्थ मटेरियल्स की शीघ्र शिपमेंट को स्पेशल परमिट के तहत मंजूरी दी जाए. इसके समानांतर भारतीय विदेश मंत्रालय भी बीजिंग स्थित दूतावास के माध्यम से लगातार संपर्क में है.

    चीन की नीति और भू-राजनीतिक संकेत

    4 अप्रैल को जारी आदेश के अनुसार, सात प्रमुख धातुओं और उनके डेरिवेटिव्स को सिर्फ स्पेशल परमिट के आधार पर ही एक्सपोर्ट किया जाएगा. कंपनियों को एंड-यूज़ सर्टिफिकेट देना होगा जिसमें यह स्पष्ट करना होगा कि संबंधित मटेरियल सैन्य उपयोग में नहीं आएगा.

    विश्लेषकों के अनुसार, यह कदम चीन की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसमें वह अमेरिका के साथ तकनीकी और व्यापार युद्ध में रेयर अर्थ मटेरियल्स को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है.

    वैश्विक बाजार में अस्थिरता की आशंका

    अगर यह प्रतिबंध लंबा चला, तो इससे EV गाड़ियों की कीमतों में तेज उछाल आ सकता है. सप्लाई चेन में बाधाएं, उत्पादन की लागत बढ़ाना तय करेंगी, जिससे उपभोक्ताओं के लिए इलेक्ट्रिक मोबिलिटी एक महंगा विकल्प बन सकती है.

    यह संकट ग्रीन ट्रांजिशन की गति को धीमा कर सकता है, खासकर उन देशों में जहां EVs को सब्सिडी और सरकारी प्रोत्साहन के जरिए बढ़ावा दिया जा रहा है.

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