पाकिस्तान के पंजाब, खैबर पख्तूनख्वा और लाहौर में भारी तबाही, अबतक 250 से अधिक मौतें, जानिए क्या है कारण?

    हर साल की तरह इस बार भी पाकिस्तान में मानसून का आगमन सिर्फ पानी की बौछार नहीं, बल्कि तबाही और त्रासदी लेकर आया है. सड़कें नदियों में तब्दील हो चुकी हैं, घर बह चुके हैं, और आसमान से बरसता पानी अब राहत नहीं, डर का रूप ले चुका है.

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    Image Source: Meta AI

    Pakistan Flood: हर साल की तरह इस बार भी पाकिस्तान में मानसून का आगमन सिर्फ पानी की बौछार नहीं, बल्कि तबाही और त्रासदी लेकर आया है. सड़कें नदियों में तब्दील हो चुकी हैं, घर बह चुके हैं, और आसमान से बरसता पानी अब राहत नहीं, डर का रूप ले चुका है. खासकर पंजाब, खैबर पख्तूनख्वा और लाहौर जैसे इलाकों में हालात भयावह हैं. पानी की तेज़ धार ने इंसानी जीवन की नमी छीन ली है और सैकड़ों परिवारों को सूखा दर्द दे दिया है. बताया जा रहा है कि जून की शुरुआत से ही जब मानसून-पूर्व की बारिशें शुरू हुईं, तभी से हालात बेकाबू होते चले गए. अब तक 250 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है, जिनमें एक बड़ी संख्या मासूम बच्चों की है. सैकड़ों लोग लापता हैं और राहत कार्यों की सुस्ती ने ज़मीनी हालात को और भी बदतर बना दिया है.

    सबसे ज़्यादा प्रभावित क्षेत्र पंजाब प्रांत

    इस बार भी सबसे ज़्यादा प्रभावित क्षेत्र पंजाब प्रांत रहा है, जहां निचले इलाकों में बाढ़ ने लोगों को घरों में कैद कर दिया है. राजधानी लाहौर के हालात तो इतने खराब हैं कि गलियों में जमा पानी के कारण बिजली के तारों की मरम्मत तक नहीं हो पा रही है. खैबर पख्तूनख्वा में स्वात नदी उफान पर है और ग्रामीण इलाकों में बाढ़ की चपेट में आए लोगों को मदद पहुंचाने की कोशिशें बहुत धीमी हैं. मौसम विभाग के पूर्वानुमान और जनता के अनुभव में कोई तालमेल नहीं दिखता. हर साल की तरह इस साल भी सवाल वही हैं, मगर जवाब कहीं नहीं. आखिर क्यों पाकिस्तान की नदियाँ हर साल बेकाबू हो जाती हैं? क्यों सरकार हर बार तब जागती है जब जानें जा चुकी होती हैं? जवाब छिपे हैं पाकिस्तान की भौगोलिक बनावट में भी और नीतिगत लापरवाही में भी.

    समस्या सिर्फ मौसम की नहीं...

    गर्मियों में जब देश के उत्तरी हिस्सों में तापमान 45 डिग्री से ऊपर चला जाता है, तो हजारों ग्लेशियर पिघलने लगते हैं. वहीं, एक ही मौसम में पूरी साल की बारिश हो जाना, देश के जलप्रबंधन की कमज़ोरी को खुलकर उजागर कर देता है. लेकिन जितनी जिम्मेदारी कुदरत की है, उतनी ही जवाबदेही सरकार की भी बनती है. इमारतों का गिरना, लोगों को समय पर सुरक्षित जगहों पर न पहुंचा पाना और आपदा प्रबंधन टीमों की सुस्त प्रतिक्रिया, ये सभी संकेत हैं कि समस्या सिर्फ मौसम की नहीं, व्यवस्था की भी है. इन सबसे बढ़कर पाकिस्तान इस त्रासदी के लिए वैश्विक समुदाय को भी दोषी मानता है. उसका कहना है कि दुनिया में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में उसकी भूमिका नाममात्र की है, लेकिन जलवायु परिवर्तन का खामियाजा उसके नागरिकों को भुगतना पड़ रहा है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टें इस बात की पुष्टि करती हैं कि जलवायु आपदाओं से जान गंवाने का खतरा पाकिस्तान में अन्य देशों के मुकाबले कहीं ज़्यादा है.

     हर साल 40 से 50 अरब डॉलर की जरूरत

    2022 में आई विनाशकारी बाढ़ के बाद पाकिस्तान को वैश्विक दानदाताओं से 10 अरब डॉलर की सहायता का वादा मिला था, मगर हकीकत में उसे अब तक महज़ 2.8 अरब डॉलर ही मिले हैं. और अब 2025 में फिर वही मंजर, वही पीड़ा, वही लाचारी. पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए हर साल 40 से 50 अरब डॉलर की जरूरत होगी, लेकिन ऐसी रकम का इंतज़ाम राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक संकट झेल रहे इस देश के लिए दूर की कौड़ी बन चुका है.

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