GPS से लैस गोले, नहीं चूकेगा निशाना... तोप की इस टेक्नोलॉजी ने बदल दिया जंग का तरीका, भारत कहां खड़ा?

    अब आर्टिलरी गोले भी GPS से लैस हो गए हैं, जो उन्हें पारंपरिक तोपों की तुलना में कहीं अधिक सटीक और कुशल बनाता है.

    GPS-equipped cannonballs hit target precisely
    प्रतीकात्मक तस्वीर/Photo- ANI

    नई दिल्ली: आधुनिक युद्धों में अब केवल सैन्य शक्ति नहीं, बल्कि तकनीकी दक्षता भी निर्णायक बन चुकी है. अब आर्टिलरी गोले भी GPS से लैस हो गए हैं, जो उन्हें पारंपरिक तोपों की तुलना में कहीं अधिक सटीक और कुशल बनाता है. इसका अर्थ है कि अब हर गोला सीधे लक्ष्य को पहचानता है, उसका पीछा करता है और सटीक बिंदु पर जाकर विस्फोट करता है. यह है आज की ‘स्मार्ट वॉरफेयर’, जहाँ रणनीति का नेतृत्व तकनीक कर रही है — और परिणाम अधिक प्रभावशाली, तेज़ और सटीक बन रहे हैं.

    कैसे चलाते हैं तोप?

    पारंपरिक तोपों को संचालित करना एक तकनीकी और सामरिक प्रक्रिया रहा है. विशेष रूप से द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, भारी तोपों का इस्तेमाल दुश्मन की सेना और टैंकों पर प्रभावी बमबारी के लिए किया जाता था.

    इस प्रक्रिया में:

    • सैनिकों की एक टीम टारगेट की पहचान करती थी,
    • फिर तोपची दूरी, कोण, हवा की दिशा और गति का हिसाब लगाकर गोला दागता था.
    • यदि निशाना चूक जाता, तो यह चक्र दोहराया जाता.

    मुख्य चुनौतियाँ:

    • तोपची की स्थिति का खुलासा हो सकता था
    • गोला बर्बाद होने की संभावना अधिक रहती
    • दुश्मन को प्रतिक्रिया का समय मिल जाता
    • और कई बार लक्ष्य पूरी तरह चूक जाता

    GPS और स्मार्ट टेक्नोलॉजी ने बदली स्थिति

    अब तोप संचालन एक डिजिटल प्रोसेस में बदल चुका है, जिसमें GPS, सेंसर, और एडवांस्ड फायर कंट्रोल सिस्टम की मदद से:

    • दुश्मन की स्थिति का सटीक निर्धारण होता है,
    • फायरिंग एंगल और मौसम डेटा स्वतः समायोजित होते हैं,
    • गोला न सिर्फ निर्देशित होता है, बल्कि लक्ष्य तक पहुंचने के दौरान खुद को भी एडजस्ट करता है.

    नतीजा: निशाना लगभग अचूक हो गया है, गोला बर्बाद नहीं होता, और ऑपरेशन की सफलता दर बढ़ चुकी है.

    GPS-गाइडेड गोले क्यों हैं गेमचेंजर?

    ऐसे गोले अब केवल हथियार नहीं, बल्कि स्ट्रैटेजिक टूल बन चुके हैं. उदाहरण के तौर पर, अमेरिका का M982 Excalibur गोला — यह न सिर्फ सटीकता से लक्ष्यों को भेदता है, बल्कि वातावरण की हर चुनौती का स्वतः समाधान भी करता है. हवा, ऊँचाई, तापमान — हर डेटा का रियल टाइम विश्लेषण होता है.

    यानी अब गोले पर निर्भरता केवल तोपची की गणनाओं पर नहीं, बल्कि उस गोले की स्मार्ट नेविगेशन प्रणाली पर है.

    दुनिया के इन देशों के पास है ये खास तकनीक

    अमेरिका: M982 Excalibur

    • यह एक अत्यधिक सटीक गाइडेड गोला है, जिसे रेथियॉन और BAE Systems (स्वीडन) ने मिलकर बनाया है.
    • इसकी सटीकता 2 मीटर के भीतर होती है.
    • 39 किमी से 70 किमी की रेंज में यह दुश्मन के लक्ष्यों को मिलिट्री ग्रेड प्रिसिशन के साथ हिट करता है.
    • M777, M109, M198, Archer और PzH2000 जैसे हाउइट्ज़र सिस्टम के साथ पूरी तरह संगत है.

    रूस: Krasnopol M2

    • रूस का यह 152 मिमी लेज़र और GPS-गाइडेड गोला सर्जिकल सटीकता के लिए जाना जाता है.
    • लक्ष्य को अंत समय में एडजस्ट करने की क्षमता इसे विशेष बनाती है.
    • हवा में दिशा बदलने वाले इसके फिन्स इसे ड्रोन-जैसी गतिशीलता प्रदान करते हैं.
    • बंकर, टैंक और मूविंग टारगेट्स को यह अत्यधिक सटीकता से नष्ट कर सकता है.

    यूक्रेन: Kvitnik 152 MM

    • Kvitnik एक लेज़र-गाइडेड प्रोजेक्टाइल है, जिसे यूक्रेन ने विकसित किया है.
    • यह टैंक, आर्मर्ड व्हीकल्स, स्ट्रक्चर्स और बंकर जैसे स्थिर और संवेदनशील लक्ष्यों पर सटीक वार करता है.
    • 2001 में पहली बार पेश किया गया, और 2013 से इसका सीरियल प्रोडक्शन जारी है.

    भारत: DRDO के प्रिसिशन गाइडेड म्यूनिशन (PGM)

    • भारत का रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) भी PGM टेक्नोलॉजी पर केंद्रित कार्य कर रहा है.
    • इन हथियारों में GPS, लेज़र, इंफ्रारेड और रडार जैसी तकनीकों का संयोजन किया जाता है, जो इन्हें चलते-फिरते लक्ष्यों को भी भेदने में सक्षम बनाता है.

    भारत में विकसित प्रमुख सिस्टम:

    • Smart Anti-Airfield Weapon (SAAW) – दुश्मन के हवाई अड्डों को निष्क्रिय करने के लिए.
    • UAV-Launched PGM (ULPGM) – ड्रोन से छोड़े जाने वाले लक्षित हथियार.
    • 70 से 100 किमी तक की रेंज वाले स्मार्ट आर्टिलरी प्रोजेक्टाइल्स, जो दुश्मन की अग्रिम चौकियों पर सटीक वार करते हैं.

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