चीन में वन चाइल्ड पॉलिसी की वजह से 7 साल में आधी हुई जन्म दर, बच्चा पैदा करने पर ₹1.30 लाख देगी सरकार

    दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश अब जन्मदर गिरने से जूझ रहा है.

    Government will give 1.30 lakh rupees for giving birth to child in China
    प्रतिकात्मक तस्वीर/ FreePik

    बीजिंग: दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश अब जन्मदर गिरने से जूझ रहा है. चीन, जिसने एक वक्त में अपनी बढ़ती जनसंख्या को थामने के लिए 'वन चाइल्ड पॉलिसी' लागू की थी, आज उसी के उलट दिशा में कदम बढ़ा रहा है. अब देश की सरकार चाहती है कि लोग ज्यादा बच्चे पैदा करें और इसके लिए वह आर्थिक मदद भी दे रही है.

    ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, चीन की सरकार ने ऐलान किया है कि बच्चा पैदा करने पर माता-पिता को 1.30 लाख रुपए तक की नकद सहायता दी जाएगी. यह रकम तीन साल में चरणबद्ध तरीके से दी जाएगी, हर साल 3,600 युआन (करीब 44,000 रुपए) की दर से.

    यह योजना देशभर में लागू की जाएगी और इसमें तीन साल से कम उम्र के बच्चों वाले माता-पिता को शामिल किया जाएगा. यह फैसला एक ऐसे समय में आया है, जब चीन की जन्मदर ऐतिहासिक रूप से अपने न्यूनतम स्तर पर है और देश की एक बड़ी आबादी बुजुर्गों की श्रेणी में आ चुकी है.

    चीन की बदलती तस्वीर: 7 साल में जन्मदर आधी हुई

    2016 में चीन में कुल 1.8 करोड़ बच्चे पैदा हुए थे. 2023 तक यह आंकड़ा घटकर केवल 90 लाख रह गया. यानी महज सात वर्षों में जन्म दर में 50% की गिरावट आ चुकी है. वर्ष 2024 में यह आंकड़ा थोड़ी बढ़त के साथ 95 लाख तक जरूर पहुंचा, लेकिन कुल जनसंख्या में फिर भी गिरावट ही दर्ज की गई, क्योंकि मृत्यु दर अब जन्म दर से अधिक हो चुकी है.

    यह गिरावट सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि भविष्य की सामाजिक और आर्थिक संरचना पर गहरा असर डालने वाला संकेत है. देश की लगभग 21% आबादी अब 60 वर्ष से अधिक उम्र की हो चुकी है, और युवा कार्यबल सिकुड़ता जा रहा है.

    योजना का दायरा और शुरुआत की टाइमलाइन

    नवीनतम घोषणा के अनुसार, यह नई सब्सिडी योजना 1 जनवरी 2025 से लागू होगी. इसमें तीन साल से कम उम्र के वे सभी बच्चे कवर होंगे, जिनके माता-पिता चीनी नागरिक हैं.

    अगर कोई बच्चा पहले पैदा हो चुका है लेकिन अभी भी तीन साल से कम उम्र का है, तो उसे भी उतने महीनों की सब्सिडी मिलेगी, जितने महीने वह योजना के दायरे में रहेगा.

    राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग ने बताया कि यह पहली बार है जब पूरे देश के लिए एक समान बाल देखभाल सब्सिडी योजना लागू की जा रही है. अनुमान है कि इससे करीब 2 करोड़ परिवारों को हर साल फायदा मिलेगा.

    राज्य सरकारें भी जोड़ सकेंगी आर्थिक सहयोग

    हालांकि यह योजना केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई है, लेकिन राज्यों को भी इसमें अपनी ओर से योगदान देने की छूट दी गई है. वे चाहें तो सब्सिडी की राशि बढ़ा सकते हैं, लेकिन इसके लिए अतिरिक्त खर्च उन्हें खुद वहन करना होगा.

    गौरतलब है कि इससे पहले भी कुछ राज्य या स्थानीय सरकारें परिवार नियोजन से जुड़ी स्कीमें चला चुकी हैं, लेकिन उनमें सब्सिडी अक्सर दूसरे या तीसरे बच्चे तक सीमित रहती थी. नई योजना की खास बात यह है कि पहले, दूसरे और तीसरे — सभी बच्चों के लिए समान प्रावधान होगा.

    क्या सिर्फ पैसे से बढ़ेगी जन्म दर?

    विशेषज्ञों की राय में केवल आर्थिक सहायता से लोगों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रेरित नहीं किया जा सकता. चीन जैसे देश में, जहां शहरीकरण, प्रतिस्पर्धा, शिक्षा और जीवनशैली पहले ही जटिल हो चुके हैं, वहां बच्चे की परवरिश एक बड़ी चुनौती बन चुकी है.

    यंग पॉपुलेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक, चीन में एक बच्चे को 17 साल तक पालने में औसतन 56 लाख रुपए खर्च होते हैं. यानी केवल 1.30 लाख रुपए की मदद लंबी अवधि की जिम्मेदारियों के सामने नाकाफी है.

    इसलिए विशेषज्ञ मानते हैं कि इस योजना को बच्चों की देखभाल सेवाएं, मातृत्व अवकाश, सस्ती प्री-स्कूलिंग और आवास सुविधाओं से जोड़ना जरूरी होगा. तभी इसका दीर्घकालिक प्रभाव दिखेगा.

    वन चाइल्ड पॉलिसी का कड़वा विरासत

    चीन की मौजूदा जनसांख्यिकीय स्थिति एक हद तक उसकी पुरानी जनसंख्या नीति की देन भी है. 1979 में शुरू की गई 'वन चाइल्ड पॉलिसी' ने देश की जन्म दर को कृत्रिम रूप से नीचे बनाए रखा.

    1982 में यह नीति संविधान का हिस्सा बन गई, और इसके तहत कई बार जबरन गर्भपात, नसबंदी और भारी जुर्माने जैसी कठोर कार्रवाइयों का भी सहारा लिया गया.

    अनुमान है कि इस नीति के चलते करीब 40 करोड़ बच्चों के जन्म को रोका गया. हालांकि सरकार ने 2016 में इसे हटाकर 'टू-चाइल्ड पॉलिसी' लागू की, लेकिन तब तक सामाजिक और मानसिक बदलाव इतने गहरे हो चुके थे कि नई नीति से भी जन्म दर में कोई खास इजाफा नहीं हुआ.

    भविष्य की चुनौती: क्या चीन समय पर संभलेगा?

    वर्ल्ड बैंक और अन्य एजेंसियों की रिपोर्टों के अनुसार, अगर वर्तमान रुझान जारी रहा तो सदी के अंत तक यानी 2100 तक चीन की जनसंख्या घटकर 1 अरब या उससे भी कम हो सकती है.

    इसका सीधा असर न सिर्फ देश की आर्थिक प्रगति, बल्कि उसकी सेना, तकनीक, स्वास्थ्य सेवा और वैश्विक नेतृत्व क्षमता पर भी पड़ेगा.

    चीन ने यह तो समझ लिया है कि अब समय तेजी से फिसल रहा है, लेकिन क्या ये नकद सब्सिडी जैसी योजनाएं इस ढलती रफ्तार को फिर से ऊपर की दिशा में मोड़ पाएंगी? यह देखना बाकी है.

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