गाजा का हाल और होगा बेहाल! यूएन में अमेरिका ने कर दिया खेल, इजरायल का रास्ता हुआ साफ

    Gaza ceasefire Deal: जब पूरी दुनिया गाजा में खून-खराबा बंद कराने की गुहार लगा रही थी, तब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पेश एक प्रस्ताव पर अमेरिका ने वीटो लगाकर सबको चौंका दिया. यह प्रस्ताव गाजा में "तत्काल, बिना शर्त और स्थायी युद्धविराम" की मांग करता था.

    Gaza plight will only worsen America game at the UN has cleared the way for Israel
    Image Source: ANI/ File

    Gaza ceasefire Deal: जब पूरी दुनिया गाजा में खून-खराबा बंद कराने की गुहार लगा रही थी, तब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पेश एक प्रस्ताव पर अमेरिका ने वीटो लगाकर सबको चौंका दिया. यह प्रस्ताव गाजा में "तत्काल, बिना शर्त और स्थायी युद्धविराम" की मांग करता था. लेकिन अमेरिका ने इसे खारिज कर दिया, और ऐसा करके फिर एक बार उसने यह संदेश दिया कि वह हर हाल में इजराइल के साथ खड़ा रहेगा, भले ही कीमत कितनी भी मानवीय क्यों न हो.

    संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 10 निर्वाचित सदस्यों ने यह मसौदा पेश किया था, जिसमें युद्धविराम के अलावा गाजा में रखे गए सभी बंधकों की रिहाई और मानवीय सहायता पर लगे प्रतिबंधों को हटाने की अपील की गई थी. कुल 15 में से 14 सदस्यों ने प्रस्ताव का समर्थन किया, सिर्फ अमेरिका ने इसका विरोध किया.

    वीटो: एक लोकतांत्रिक संस्था में अधिनायकवादी शक्ति

    UN सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन के पास वीटो का विशेषाधिकार है. इसका अर्थ है कि यदि इन पाँच में से कोई भी एक देश किसी प्रस्ताव को अस्वीकार कर देता है, तो वह प्रस्ताव पारित नहीं हो सकता, चाहे बाकी सभी सदस्य उसके पक्ष में हों. यह शक्ति अक्सर वैश्विक शांति के रास्ते में बड़ी बाधा बन जाती है, जैसा कि इस बार देखने को मिला.

    अमेरिका का तर्क: प्रस्ताव "हमास के हित में" था

    अमेरिकी उप विशेष दूत मॉर्गन ऑर्टागस ने अल जजीरा को बताया कि अमेरिका का वीटो कोई चौंकाने वाली बात नहीं है. उनके अनुसार यह प्रस्ताव हमास की निंदा करने में विफल रहा और इजरायल के आत्मरक्षा के अधिकार को नज़रअंदाज़ करता है. उन्होंने यह भी कहा कि यह प्रस्ताव हमास के नैरेटिव को "वैध" बनाता है, जिसे अमेरिका स्वीकार नहीं कर सकता.

    अरब देशों और फिलिस्तीन का तीखा विरोध

    अमेरिकी वीटो पर फिलिस्तीनी और अरब प्रतिनिधियों ने गहरी नाराज़गी जताई है. फिलिस्तीनी राजदूत रियाद मंसूर ने कहा कि अमेरिका का यह कदम सुरक्षा परिषद की साख को गिरा रहा है. उन्होंने ज़ोर देकर कहा, "जब अत्याचार और युद्ध अपराध सामने हों, तब वीटो का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए."

    अब सवाल यह है...

    क्या वीटो जैसी शक्ति लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर नहीं करती? क्या शांति की उम्मीदें महाशक्तियों की राजनीतिक प्राथमिकताओं के नीचे कुचलती रहेंगी? और सबसे अहम, क्या आम लोगों की जानें, बस कूटनीतिक रणनीतियों का हिस्सा भर रह गई हैं?

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