नई दिल्ली: भारत का इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर सेक्टर एक नई चुनौती का सामना कर रहा है. रेयर अर्थ मैग्नेट्स की आपूर्ति में कमी के चलते देश की प्रमुख EV कंपनियां बजाज ऑटो, एथर एनर्जी और TVS मोटर उत्पादन घटाने की योजना बना रही हैं. ये मैग्नेट्स इलेक्ट्रिक मोटर्स के लिए आवश्यक हैं, और चीन द्वारा इनके निर्यात पर लगाई गई पाबंदियों के कारण यह संकट खड़ा हुआ है.
प्रभावित कंपनियां और उत्पादन पर असर
गौरतलब है कि ये चारों कंपनियां मिलकर भारत में बिकने वाले करीब 80% इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर का निर्माण करती हैं.
केंद्र सरकार की पहल
भारत सरकार और ऑटोमोबाइल उद्योग संगठनों ने चीन के साथ बातचीत शुरू कर दी है ताकि मैग्नेट्स की आपूर्ति बहाल की जा सके. साथ ही वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं जैसे वियतनाम, इंडोनेशिया और जापान से भी संपर्क किया जा रहा है. फिलहाल इन प्रयासों का कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया है.
SIAM (सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स) ने पहले ही चेतावनी दी थी कि यदि स्थिति जल्द नहीं सुधरी, तो कंपनियों को उत्पादन में कटौती करनी पड़ सकती है.
स्टॉक की स्थिति और निकट भविष्य
उद्योग से जुड़ी रिपोर्ट्स के अनुसार, अधिकांश भारतीय EV मैन्युफैक्चरर्स के पास 6-8 हफ्तों का स्टॉक ही बचा है. टीवीएस मोटर के मैनेजिंग डायरेक्टर सुदर्शन वेणू ने भी संकेत दिया था कि जून-जुलाई के उत्पादन पर इसका असर पड़ सकता है.
रेयर अर्थ मैग्नेट्स क्यों हैं जरूरी?
रेयर अर्थ तत्व जैसे नियोडिमियम, डिस्प्रोसियम और टेरबियम का उपयोग हाई-परफॉर्मेंस परमानेंट मैग्नेट्स बनाने में किया जाता है, जो इलेक्ट्रिक मोटर्स के लिए अनिवार्य हैं. ये मैग्नेट मोटर्स को अधिक कुशल, हल्का और कॉम्पैक्ट बनाते हैं – जो इलेक्ट्रिक वाहनों की रेंज और प्रदर्शन दोनों को बेहतर बनाते हैं.
इन तत्वों का उपयोग पारंपरिक आंतरिक दहन इंजन (ICE) वाहनों में भी होता है, जैसे कैटेलिटिक कन्वर्टर, सेंसर, और डिस्प्ले यूनिट्स में.
चीन की भूमिका और वैश्विक असर
ग्लोबल मार्केट में रेयर अर्थ धातुओं की 70% माइनिंग और लगभग 90% प्रोसेसिंग पर चीन का नियंत्रण है. हाल ही में चीन ने अमेरिका के साथ चल रहे व्यापार तनाव के बीच 7 कीमती धातुओं के निर्यात पर नियंत्रण लगाया है. अब इनका निर्यात केवल स्पेशल परमिट के तहत किया जा सकता है, जिसके लिए कंपनियों को 'एंड-यूज़ सर्टिफिकेट' देना होगा और यह साबित करना होगा कि सामग्री का उपयोग सैन्य उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाएगा.
चीन के बंदरगाहों पर मैग्नेट्स के शिपमेंट फिलहाल रुके हुए हैं, जिससे ऑटोमोबाइल, एयरोस्पेस, और सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री पर असर पड़ रहा है.
क्या बढ़ सकती हैं EV की कीमतें?
यदि आपूर्ति संकट लंबा खिंचता है, तो इसका असर कच्चे माल की लागत पर पड़ेगा, जिससे ईवी की कीमतें बढ़ सकती हैं. भारत जैसे बाजार, जहां मूल्य संवेदनशीलता अधिक है, वहां यह स्थिति इलेक्ट्रिक व्हीकल की मांग पर भी असर डाल सकती है.
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