गवर्नर-राष्ट्रपति के लिए डेडलाइन बनाने का मामला, द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से पूछे 14 सवाल

    तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के बीच विधेयकों को लेकर जारी खींचतान पर सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था – राज्यपाल किसी विधेयक को अनिश्चितकाल तक रोक नहीं सकता.

    Droupadi Murmu asked 14 questions to Supreme Court
    द्रौपदी मुर्मू | Photo: ANI

    नई दिल्लीः भारत में संवैधानिक व्यवस्थाएं अक्सर तब चर्चा में आती हैं जब सत्ता के अलग-अलग केंद्रों के बीच टकराव की स्थिति बनती है. हाल ही में ऐसा ही एक मामला सुप्रीम कोर्ट और देश की प्रथम नागरिक राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के बीच उठा है.

    तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के बीच विधेयकों को लेकर जारी खींचतान पर सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था – राज्यपाल किसी विधेयक को अनिश्चितकाल तक रोक नहीं सकता. लेकिन, इस फैसले के बाद अब राष्ट्रपति ने सीधे सुप्रीम कोर्ट से सवाल पूछे हैं – कुल 14 संवैधानिक सवाल.

    इन सवालों से जुड़ा मुद्दा सिर्फ एक राज्य तक सीमित नहीं है, बल्कि ये पूरे भारतीय संघीय ढांचे और कार्यपालिका की जवाबदेही से जुड़ा है.

    मामला कहां से शुरू हुआ?

    तमिलनाडु की सरकार ने कई विधेयक पास कर राज्यपाल को मंजूरी के लिए भेजे थे, लेकिन राज्यपाल आर.एन. रवि ने इन पर निर्णय नहीं लिया. कुछ विधेयक उन्होंने वापस भेज दिए, कुछ राष्ट्रपति के पास भेज दिए और कुछ को लटका दिया.

    इस पर मद्रास हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचा. 8 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि राज्यपाल के पास कोई “वीटो पॉवर” नहीं है और वह विधेयकों को अनिश्चित समय तक रोके नहीं रख सकता.

    राष्ट्रपति ने क्यों उठाए सवाल?

    राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को संविधान की दृष्टि से “स्पष्टता की आवश्यकता वाला” बताया है और 14 अहम सवाल पूछे हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 200, 201, 361, 143, 142, 145(3) और 131 से जुड़े हैं. ये सवाल भारतीय गणराज्य की संस्थाओं की कार्यप्रणाली, सीमाएं और जवाबदेही को लेकर गहरी पड़ताल की मांग करते हैं.

    राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट से पूछे गए प्रमुख सवाल:

    • बिल आने के बाद राज्यपाल के पास कौन-कौन से संवैधानिक विकल्प होते हैं
    • क्या राज्यपाल को फैसला लेते वक्त मंत्रिपरिषद की सलाह मानना अनिवार्य है
    • क्या राज्यपाल के फैसले को कोर्ट में चैलेंज किया जा सकता है
    • क्या आर्टिकल 361 राज्यपाल के फैसलों पर न्यायिक समीक्षा को रोक सकता है
    • राज्यपाल के लिए संविधान में अगर समयसीमा तय नहीं हो तो क्या कोर्ट यह तय कर सकती है
    • क्या राष्ट्रपति के फैसले को कोर्ट में चैलेंज किया जा सकता है
    • क्या अदालत राष्ट्रपति के फैसलों पर समयसीमा तय कर सकती है
    • क्या सुप्रीम कोर्ट की राय लेना राष्ट्रपति के लिए अनिवार्य है
    • राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 142 से जुड़ा सवाल किया. उन्होंने पूछा कि क्या अनुच्छेद 142 के तहत राष्ट्रपति या राज्यपाल के संवैधानिक कार्यों और आदेशों को बदला जा सकता है.

    इस संवैधानिक बहस का क्या मतलब है?

    ये सवाल कोई साधारण कानूनी तकनीकी बिंदु नहीं हैं, बल्कि तीन प्रमुख स्तंभों – कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के संतुलन से जुड़े हैं. राष्ट्रपति द्वारा उठाया गया ये कदम एक तरह से यह दर्शाता है कि सर्वोच्च संस्थाओं के बीच भी संवैधानिक प्रक्रियाओं पर पुनर्विचार और स्पष्टता की आवश्यकता महसूस की जा रही है.

    संविधान विशेषज्ञों की राय क्या कहती है?

    संविधान के जानकारों का मानना है कि ये मामला न सिर्फ राज्यपाल की भूमिका और शक्तियों की सीमाओं पर रोशनी डालेगा, बल्कि यह भी तय करेगा कि क्या सुप्रीम कोर्ट कार्यपालिका के भीतर संवैधानिक पदाधिकारियों की समयसीमा और जवाबदेही निर्धारित कर सकता है.

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