अंतरराष्ट्रीय व्यापार जगत में एक बार फिर से हलचल मच गई है. अमेरिका ने चीन से आयात होने वाले कुछ उत्पादों पर 245% तक का भारी-भरकम टैरिफ लगा दिया है. वहीं भारत सहित करीब 70 देशों को फिलहाल 90 दिनों की राहत दी गई है, लेकिन यह राहत स्थायी नहीं है. इस फैसले से चीन भड़क गया है और उसने इसे वैश्विक व्यापार व्यवस्था के लिए खतरनाक संकेत बताया है. बीजिंग का साफ कहना है कि अगर दुनिया अमेरिका के दबाव में आकर चीन से व्यापारिक संबंध तोड़ती है, तो इससे पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था को मंदी के कगार पर लाया जा सकता है.
सिर्फ चीन को टारगेट, बाकी देशों को 'डील'
चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स के अनुसार, अमेरिका ने जानबूझकर ऐसा रास्ता चुना है जिससे केवल चीन को टारगेट किया जा सके और बाकी देशों के साथ उसका टकराव न हो.
अखबार का कहना है "अमेरिका चाहता है कि अन्य देश भी चीन से कम व्यापार करें, ताकि कोई भी देश चीन से सस्ता माल लेकर उसे अमेरिका में री-एक्सपोर्ट न कर सके." इतना ही नहीं, अमेरिका ने यह भी संकेत दिए हैं कि चीनी कंपनियों को रीलोकेट होने से भी रोका जाए और उनके उत्पादों की दूसरे देशों में एंट्री को भी सीमित किया जाए.
'दुनिया को भुगतना होगा नुकसान'
चीन ने एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि यदि वैश्विक व्यापार में चीन को अलग-थलग करने की कोशिश की गई, तो इससे सिर्फ चीन को नहीं, बल्कि दुनिया की तमाम अर्थव्यवस्थाओं को गहरा नुकसान पहुंचेगा. चीन का तर्क है कि वह सस्ते और हाइटेक उत्पादों का सबसे बड़ा निर्यातक है, और उसके बिना दुनिया की सप्लाई चेन चरमरा सकती है. "कुछ देश अमेरिकी दबाव में आ सकते हैं, लेकिन चीन के सस्ते और आधुनिक उत्पादों के बिना टिकना आसान नहीं होगा."
क्या मंडरा रहा है वैश्विक मंदी का खतरा?
ट्रेड वॉर की यह नई लहर एक बार फिर वैश्विक मंदी की आशंका को जन्म दे रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अमेरिका का यह आक्रामक रवैया जारी रहा और अन्य देश भी चीन से दूरी बनाते गए, तो इससे वैश्विक स्तर पर मूल्य वृद्धि, आपूर्ति संकट, और रोजगार में गिरावट जैसे संकट गहराने की संभावना है.