आज के दौर में जब भारत और पाकिस्तान जैसे देशों के बीच तनाव बढ़ता है, तो न्यूक्लियर हथियारों की चर्चा तेज हो जाती है. परमाणु हथियारों का नाम सुनते ही दिमाग में विनाश, तबाही और लाखों मौतों की छवि उभरती है. लेकिन सोचिए, अगर ऐसा कोई सिस्टम हो जो इंसानों के बिना ही दुनिया को खत्म करने का फैसला कर सके, तो? जी हां, ‘डेड हैंड’ या ‘डूम्सडे डिवाइस’ नाम का एक ऐसा सिस्टम वाकई अस्तित्व में है और यह रूस के पास है.
क्या है डेड हैंड?
Dead Hand Doomsday Technology: डेड हैंड, जिसे Perimeter System भी कहा जाता है, एक स्वचालित परमाणु प्रतिशोध प्रणाली है. यह ऐसा सिस्टम है जो दुश्मन के न्यूक्लियर हमले के बाद बिना किसी मानव हस्तक्षेप के खुद ही जवाबी हमला कर सकता है. इसका मकसद एकदम साफ है. अगर रूस पर कोई भीषण हमला होता है और कमांड स्ट्रक्चर खत्म हो जाता है, तो यह सिस्टम अपने आप सभी मिसाइलों को दाग देगा. इसका दूसरा नाम डूम्सडे डिवाइस (Doomsday Device) है, और इसका नाम जितना डरावना है, इसकी क्षमताएं उससे कहीं अधिक विनाशकारी हैं.
कब और क्यों बना था?
1980 के दशक में, जब अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध चरम पर था, तब दुनिया ने कई खतरनाक हथियारों को जन्म लेते देखा. उसी दौर में सोवियत यूनियन ने 'डेड हैंड' का निर्माण किया. यह Cold War की उस मानसिकता का परिणाम था, जिसमें "अगर हमें मारा गया, तो हम पूरी दुनिया को साथ लेकर जाएंगे" जैसी सोच हावी थी.
कैसे करता है काम?
डेड हैंड सिस्टम पूरी तरह मशीन-आधारित निर्णय प्रणाली है. इसमें लगे सेंसर और मॉनिटरिंग डिवाइस लगातार इन बातों पर नजर रखते हैं. न्यूक्लियर रेडिएशन का स्तर, वायुमंडलीय दबाव (Air Pressure), भूकंपीय गतिविधियां, रेडियो कम्युनिकेशन फ्रीक्वेंसी अगर ये सिस्टम यह पाता है कि रूस पर न्यूक्लियर हमला हुआ है और कमांड सेंटर खामोश है, तो यह खुद ही एक विशेष रॉकेट लॉन्च करता है जिसमें रेडियो ट्रांसमीटर होता है. यह सिग्नल पूरे रूस में फैले न्यूक्लियर साइलोज़ को मिसाइल दागने का आदेश भेजता है. एक बार यह प्रक्रिया शुरू हो गई तो पूरी दुनिया तबाही की ओर बढ़ने लगती है और कोई रोक नहीं सकता.
क्या इसे हैक किया जा सकता है?
इस सवाल का जवाब है नहीं. डेड हैंड की संपूर्ण डिज़ाइन को इस तरह तैयार किया गया है कि यह किसी भी इंटरनेट नेटवर्क या डिजिटल कनेक्शन से जुड़ा न हो. रूस ने इसे पूरी तरह ऑफलाइन और एअर-गैप्ड सिस्टम बनाया है, ताकि हैकिंग का कोई खतरा न हो. इसके पीछे तर्क भी साफ है: अगर ये सिस्टम हैक हो गया, तो नतीजे अकल्पनीय होंगे.
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