बीजिंग/टोक्यो/सियोल/ताइपेई: इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भू-राजनीतिक तनाव पहले से ही चरम पर है, और अब चीन के सबसे उन्नत पांचवीं पीढ़ी के स्टील्थ फाइटर जेट J-20 माइटी ड्रैगन ने अपने हालिया मिशन के माध्यम से इस तनाव को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है. चीन ने हाल ही में अपने इस लड़ाकू विमान को जापान और दक्षिण कोरिया के बीच स्थित त्सुशिमा जलडमरूमध्य और ताइवान-फिलीपींस के बीच के बाशी चैनल में उड़ाया, जहां दुनिया की कुछ सबसे उन्नत वायु रक्षा प्रणालियां तैनात हैं.
यह कदम न केवल चीन की सैन्य क्षमता का साहसिक प्रदर्शन है, बल्कि यह अमेरिका और उसके सहयोगी देशों विशेषकर जापान, दक्षिण कोरिया और ताइवान के लिए भी एक रणनीतिक झटका माना जा रहा है.
क्या वाकई 'अदृश्य' रहा चीन का फाइटर जेट?
चीनी सरकारी मीडिया CCTV की रिपोर्ट के अनुसार, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयर फोर्स (PLAAF) ने J-20 को “हाई-डेंसिटी रडार जोन” से सफलतापूर्वक उड़ाया, और दावा किया कि किसी भी वायु रक्षा प्रणाली ने उसे डिटेक्ट नहीं किया. रिपोर्ट में यद्यपि विमान का नाम सीधे नहीं लिया गया, लेकिन विशेषज्ञों और सैन्य विश्लेषकों का मानना है कि यह J-20 ही था — चीन का प्रमुख स्टील्थ फाइटर जिसे अमेरिकी F-22 रैप्टर और F-35 लाइटनिंग II का प्रतिद्वंदी माना जाता है.
यह विमान स्टील्थ तकनीक, लंबी दूरी की अति-उन्नत मिसाइल प्रणाली और नेटवर्क-सेंट्रिक वॉरफेयर क्षमताओं से लैस है. और अब, इसके हालिया ऑपरेशन ने चीन के इस दावे को भी बल दिया है कि वह ‘रडार-प्रूफ’ लड़ाकू शक्ति बनने की दिशा में बहुत आगे निकल चुका है.
त्सुशिमा और बाशी: क्यों अहम हैं ये चोक-पॉइंट्स?
1. त्सुशिमा जलडमरूमध्य
यह जलमार्ग दक्षिण कोरिया और जापान को अलग करता है और पूर्वी चीन सागर को जापान सागर से जोड़ता है. यह एक सामरिक गेटवे है, जिसे अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया के ट्राई-नेशन डिफेंस नेटवर्क द्वारा बारीकी से निगरानी में रखा जाता है. इस क्षेत्र में THAAD (Terminal High Altitude Area Defense) जैसी एंटी-मिसाइल प्रणाली, पैट्रियट मिसाइल सिस्टम, और एडवांस रडार नेटवर्क पहले से सक्रिय हैं.
2. बाशी चैनल
ताइवान और फिलीपींस के बीच स्थित यह जलमार्ग चीन के लिए दक्षिणी प्रशांत और हिंद महासागर तक पहुंच का मुख्य मार्ग है. यह क्षेत्र ताइवान स्ट्रेट क्राइसिस की संभावनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. अमेरिका और ताइवान यहां नियमित रूप से संयुक्त सैन्य अभ्यास करते हैं.
थाड और पैट्रियट सिस्टम को चकमा?
थाड, जो अमेरिका की सबसे उन्नत मिसाइल रोधी प्रणाली मानी जाती है, खासतौर से उच्च ऊंचाई और लंबी दूरी से आने वाली मिसाइलों को ट्रैक और नष्ट करने के लिए डिज़ाइन की गई है. इस सिस्टम को अमेरिका ने दक्षिण कोरिया में तैनात किया था, जिससे चीन पहले ही नाराज था.
अब चीन का दावा है कि J-20 ने थाड सहित कई रडार सिस्टम्स को चकमा देकर सफल उड़ान भरी- बिना किसी ट्रैकिंग या इंटरसेप्शन के. यदि यह दावा पूरी तरह सत्य है, तो यह अमेरिका के सुरक्षा प्रतिष्ठान के लिए सतर्कता की घंटी है.
J-20 की सैन्य शक्ति और बढ़ती तैनाती
चीन लगातार अपने J-20 बेड़े को विस्तार दे रहा है. वर्ष 2024 के अंत तक 12 एयर ब्रिगेड को इस अत्याधुनिक फाइटर से लैस किया जा चुका था. इनमें से 3 ब्रिगेड पूरी तरह J-20 पर निर्भर हो चुकी हैं. इसके साथ ही, चीन ने J-20 के परमाणु हथियार ले जाने की क्षमता को भी विकसित करने की घोषणा की है, जिससे यह विमान रणनीतिक भूमिका भी निभा सकेगा.
जापान और दक्षिण कोरिया की प्रतिक्रिया
फिलहाल जापान और दक्षिण कोरिया की ओर से इस उड़ान को लेकर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन रक्षा सूत्रों का मानना है कि रडार फीड और इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस डेटा की समीक्षा की जा रही है. दोनों देश अमेरिका के साथ अपनी इंटेलिजेंस-शेयरिंग व्यवस्था के तहत स्थिति का विश्लेषण कर रहे हैं.
यह भी माना जा रहा है कि ताइवान ने इस घटना के बाद अपने एयर डिफेंस अलर्ट को हाई लेवल पर शिफ्ट कर दिया है.
इस कदम के पीछे चीन की मंशा क्या है?
ताइवान पर दबाव बनाना
चीन पहले ही ताइवान को अपना "अलग हुआ प्रांत" मानता है और हाल के वर्षों में सैन्य दबाव लगातार बढ़ा रहा है. J-20 की बाशी चैनल से उड़ान एक साइकोलॉजिकल ऑपरेशन की तरह भी देखी जा सकती है.
अमेरिका को चेतावनी देना
चीन यह दिखाना चाहता है कि उसकी वायुसेना अब अमेरिकी डिफेंस सिस्टम के प्रतिरोध को पार कर सकती है, खासकर अगर भविष्य में ताइवान को लेकर संघर्ष की स्थिति बने.
इंडो-पैसिफिक में शक्ति संतुलन बदलना
इस क्षेत्र में अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच बन रही ‘QUAD’ साझेदारी को चीन अपने लिए खतरा मानता है. J-20 की ऐसी उड़ानें, उन साझेदारियों को मनौवैज्ञानिक रूप से चुनौती देने का प्रयास हो सकती हैं.
क्या ये अमेरिका के लिए चेतावनी है?
इस पूरे घटनाक्रम से एक बात स्पष्ट होती है कि इंडो-पैसिफिक में सैन्य टेक्नोलॉजी की होड़ अब निर्णायक मोड़ पर है. चीन की यह कार्रवाई संकेत देती है कि वह केवल अपने क्षेत्रीय प्रभुत्व तक सीमित नहीं रहना चाहता, बल्कि अमेरिकी सैन्य प्रतिष्ठानों को सीधे चुनौती देने की स्थिति में आ चुका है.
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