चीन का ‘पानी का महाकाय किला’, फिर यूरोप के देश अपने बांध क्यों तोड़ रहे? जानिए पूरा मामला

    यूरोप अपने पुराने बांधों को तोड़कर नदियों को फिर से सांस लेने दे रहा है. यह सिर्फ दो महाद्वीपों की बांध नीति का अंतर नहीं, बल्कि विकास और पर्यावरण के बीच द्वंद्व की एक दिलचस्प कहानी है.

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    प्रतीकात्मक तस्वीर | Photo: Freepik

    कभी नदियां जीवन की धारा मानी जाती थीं - आज वे भू-राजनीति का शस्त्र बनती जा रही हैं. जहां एक ओर चीन ब्रह्मपुत्र जैसी विशाल नदियों पर महाबांधों का निर्माण कर रहा है, वहीं दूसरी ओर यूरोप अपने पुराने बांधों को तोड़कर नदियों को फिर से सांस लेने दे रहा है. यह सिर्फ दो महाद्वीपों की बांध नीति का अंतर नहीं, बल्कि विकास और पर्यावरण के बीच द्वंद्व की एक दिलचस्प कहानी है.

    चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र पर शुरू किया अब तक का सबसे महंगा बांध

    चीन ने हाल ही में तिब्बत के न्यिंगची क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र नदी (जिसे वहां यारलुंग जांगबो कहा जाता है) पर 167.8 अरब डॉलर यानी करीब 13.98 लाख करोड़ रुपये की लागत से एक मेगा हाइड्रोपावर डैम का निर्माण शुरू किया है. यह दुनिया की सबसे महंगी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में से एक है.

    इस बांध से हर साल 300 अरब किलोवाट घंटे से अधिक बिजली उत्पन्न होने की उम्मीद है — यानी 30 करोड़ से ज्यादा लोगों की सालाना जरूरत को पूरा करने लायक. इसका मकसद सिर्फ तिब्बत की स्थानीय जरूरतें नहीं बल्कि बाहरी खपत को भी पूरा करना है.

    भारत और बांग्लादेश के लिए चिंता की बात क्यों?

    ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत से निकलती है और भारत के अरुणाचल प्रदेश होते हुए बांग्लादेश तक बहती है. ऐसे में चीन द्वारा नदी के ऊपरी हिस्से पर विशाल बांध बनाना भारत और बांग्लादेश के लिए चिंता का कारण बन गया है.

    विशेषज्ञ इसे "वॉटर बम" कह रहे हैं — यानी एक ऐसा बांध जो मानसून के समय बाढ़ ला सकता है और सूखे समय में पानी की कटौती करके भारत को संकट में डाल सकता है. भारत की सुरक्षा एजेंसियाँ और रणनीतिक विशेषज्ञ इस पर करीबी नजर बनाए हुए हैं.

    भूकंप संभावित क्षेत्र में बना रहा चीन बांध

    इस मेगाबांध को हिमालयी भूकंपीय क्षेत्र में बनाया जा रहा है, जो एक बड़ी जोखिम को जन्म देता है. अगर कोई बड़ा भूकंप आता है, तो इसके टूटने से बड़ा मानव और पर्यावरणीय संकट पैदा हो सकता है. इसके अलावा, चीन ने परियोजना की सीमित जानकारी ही साझा की है, जिससे विश्वास की कमी और पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो रहे हैं.

    चीन की ऊर्जा जरूरतें और भू-राजनीतिक रणनीति

    चीन की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था को बिजली चाहिए — और वो भी कोयले के बजाय हरित ऊर्जा. जलविद्युत उसे यह विकल्प देता है. साथ ही, तिब्बत जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में इस तरह के मेगाप्रोजेक्ट चीन को राजनीतिक और प्रशासनिक पकड़ मजबूत करने का भी साधन प्रदान करते हैं.

    दूसरी तरफ यूरोप: जहां बांध टूट रहे हैं, नदियाँ फिर बह रही हैं

    जब चीन बांध बना रहा है, तब यूरोप बांध हटा रहा है. फ्रांस, स्पेन, स्वीडन जैसे देशों ने हाल के वर्षों में 487 पुराने बांधों को हटाया है और 2030 तक 25,000 किलोमीटर नदियों को अवरोध मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा है.

    क्यों?

    • क्योंकि पुराने बांध जलीय जीवन को बाधित करते हैं,
    • मछलियों के प्रवास को रोकते हैं,
    • गाद और पोषण की प्राकृतिक धारा को थाम देते हैं,
    • और कई बांध अब आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं रहे.
    • जलवायु परिवर्तन ने बांधों की सुरक्षा को और चुनौतीपूर्ण बना दिया है. इसीलिए पर्यावरणीय स्थिरता की ओर झुकाव अब नीति में झलकने लगा है.

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