चीन की नई पीढ़ी ने अब सड़कों पर उतरने की बजाय बिस्तरों पर लेटकर विरोध का नया स्वरूप गढ़ लिया है. ये “रैट पीपल” यानी चूहे जैसे जीवन जीने वाले युवाओं ने थकान, असुरक्षा और नौकरी-विहीनता को दिखाने के लिए ऑनलाइन सोफाबेड स्ट्राइक का सहारा लिया है.
रैट पीपल” का जन्म
Douyin, वीबो और रेड्नोट जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स पर #रैटपीपल ट्रेंड चल पड़ा है. इन वीडियोज़ में युवा दिनभर बिस्तर पर लेटे मोबाइल स्क्रॉल करते, खाना ऑर्डर करते और बाहर की दुनिया से कटे रहते दिखते हैं. Zhejiang की एक लड़की ने अपने पूरे दिन का लेटे-लेटे शेड्यूल—दोपहर को उठना, घंटों स्क्रॉल करना, फिर खाने के लिए ही उठना—वीडियो में दिखाया, जिसे लाखों व्यूज़ और लाइक्स मिले.
पारंपरिक विरोध का नया रूप
2010 के दशक में चीन में जो “996 कल्चर” (सुबह 9 से रात 9, छह दिन) चल निकला था, उसने युवा वर्ग में भारी असंतोष जगा दिया. पहले “लाइंग फ्लैट” यानी पूरी तरह काम न करने का चलन चला, अब “रैट पीपल” ने आलस को ही हथियार बना लिया है. यह विरोध न सिर्फ सरकार या आर्थिक सिस्टम के खिलाफ है, बल्कि तेज रफ्तार, थकाऊ जीवनशैली से बचने की एक मौन पुकार भी है.
मनोवैज्ञानिक पहलू
विशेषज्ञों के अनुसार यह आलस्य नहीं, बल्कि मानसिक थकावट का नतीजा है. युवा बार-बार रिजेक्शन झेलते, मौके न मिलते देख ‘रैट’ बनकर खुद की रक्षा कर रहे हैं. धीरे-धीरे जीना उन्हें अपना नियंत्रण लौटाने जैसा लगता है.
आगे का रास्ता
हालाँकि इस लंबी “बिस्तर क्रांति” में रहने से करियर को नुकसान हो सकता है. मनोचिकित्सक सलाह देते हैं कि इसे एक चेतावनी समझकर छोटे-छोटे सकारात्मक कदम उठाएँ—एक दिन एक नया हुनर सीखना, थोड़ी नौकरी करना या कुछ घूमा-फिरा आएँ. धीरे-धीरे ये कदम युवा को काम की दुनिया से जोड़ने में मदद करेंगे और “रात की रेज़ीग्नेशन” से बाहर निकालेंगे.
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