Macron Warns Xi Jinping: ग्लोबल ट्रेड वॉर की गरमाहट अब यूरोप तक पहुँच चुकी है. अमेरिका द्वारा चीन पर भारी टैरिफ लगाने के बाद, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने भी संकेत दिया है कि यूरोप अब मुकाबले के लिए तैयार है. फ्रांसीसी अख़बार लेस इकोस को दिए इंटरव्यू में मैक्रों ने खुलासा किया कि उन्होंने हालिया चीन यात्रा में बीजिंग नेतृत्व को साफ चेतावनी दी है, अगर यूरोप के साथ चीन का बढ़ता व्यापार घाटा कम नहीं किया गया, तो यूरोपीय यूनियन भी कठोर टैरिफ लगाने का कदम उठा सकती है. उन्होंने मौजूदा हालात को यूरोपीय उद्योग के लिए “जीवन और मृत्यु” का मुद्दा बताया, और चीन के लिए नई शर्तों वाला एक प्रस्ताव भी रखा, जिसे भारत के लिए एक बड़ा अवसर माना जा रहा है.
मैक्रों ने इंटरव्यू में यह स्पष्ट किया कि यूरोप अब चीन की एकतरफा व्यापार व्यवस्था को और स्वीकार नहीं करेगा. उनका कहना था कि चीन यूरोप से खरीद कम कर रहा है, जबकि यूरोपीय बाज़ारों में अपने सस्ते उत्पादों की भरमार बनाए हुए है. यह असंतुलन यूरोप की आर्थिक स्थिरता पर सीधा असर डाल रहा है. मैक्रों का तर्क था कि यदि यूरोप आर्थिक रूप से कमजोर होता है, तो चीनी उत्पादों की माँग कहाँ बचेगी? इन बयानों से साफ है कि फ्रांस और व्यापक तौर पर यूरोप, अब चीन को व्यापार के “दोतरफा रास्ते” की आवश्यकता समझाने की कोशिश कर रहा है.
टैरिफ की सीधी चेतावनी
सिर्फ आलोचना ही नहीं, बल्कि मैक्रों ने एक समय सीमा के साथ चेतावनी भी जारी की. उन्होंने कहा कि आने वाले महीनों में यदि चीन कोई ठोस कदम नहीं उठाता, तो यूरोप अमेरिका की तरह सख़्त व्यापारिक उपाय लागू करने के लिए मजबूर होगा. इसमें चीनी उत्पादों पर भारी टैरिफ भी शामिल हो सकते हैं. यह बदलाव यूरोप की पारंपरिक ‘सॉफ्ट डिप्लोमेसी’ से हटकर एक आक्रामक आर्थिक नीति की ओर कदम माना जा रहा है.
यूरोप की बढ़ती चिंता
यूरोपीय यूनियन का चीन के साथ व्यापार घाटा 2019 से लगभग 60% बढ़ चुका है. सस्ते चीनी इलेक्ट्रिक वाहनों, सोलर पैनलों और स्टील ने यूरोपीय उद्योगों पर भारी दबाव बनाया है. वहीं यूरोपीय कंपनियों के लिए चीनी बाजार में प्रवेश आज भी मुश्किल और प्रतिबंधों से भरा हुआ है. फ्रांस का भी व्यापार संतुलन तेजी से बिगड़ रहा है.
दुनिया की दो महाशक्तियों के बीच फंसा यूरोप
मैक्रों ने यह भी कहा कि यूरोप अमेरिका और चीन के बीच फँसा हुआ है. अमेरिका ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के तहत स्थानीय उद्योगों को सुरक्षा दे रहा है और चीन भारी सब्सिडी के बल पर वैश्विक बाजारों में कब्जा बढ़ा रहा है. इस स्थिति में यूरोप ऐसे “एडजस्टमेंट मार्केट” में बदल गया है, जहां चीन वह माल उतार देता है जिसे अमेरिका स्वीकार नहीं करता. इस कारण यूरोपीय उद्योग डूबते हुए बाज़ारों का मुकाबला करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
मैक्रों का नया प्रस्ताव, पारस्परिक लाभ की कोशिश
चीन को चेतावनी के साथ-साथ मैक्रों ने सहयोग का एक नया रास्ता भी सुझाया. उन्होंने कहा कि यदि चीन यूरोप के लिए व्यापारिक संतुलन सुधारने के कदम उठाए, तो यूरोप भी सेमीकंडक्टर मशीनरी के निर्यात प्रतिबंधों में ढील दे सकता है. चीन के तकनीकी क्षेत्र के लिए ये मशीनें बेहद महत्वपूर्ण हैं. इसके बदले, चीन को रेयर अर्थ मिनरल्स के निर्यात पर लगी पाबंदियों को आसान करने का आग्रह किया गया है. ये खनिज आधुनिक तकनीकी उत्पादों और रक्षा प्रणालियों के लिए अनिवार्य माने जाते हैं.
साथ ही मैक्रों ने चीनी कंपनियों को सिर्फ यूरोप में सामान बेचने के बजाय वहां निवेश करने और उत्पादन इकाइयाँ स्थापित करने की अपील की, ताकि यूरोपीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूत लाभ मिल सके.
भारत के लिए खुला सुनहरा अवसर
यूरोप और चीन के बीच बढ़ते तनाव के बीच, भारत के लिए संभावनाओं का बड़ा द्वार खुल रहा है. यूरोपीय कंपनियाँ अब चीन के विकल्प खोज रही हैं, चाहे वह इलेक्ट्रिक वाहनों के घटकों की सप्लाई हो, सोलर तकनीक हो या रेयर अर्थ के विकल्पों पर रिसर्च. भारत अपनी स्थिर अर्थव्यवस्था, मैन्युफैक्चरिंग क्षमता और जियॉपॉलिटिकल संतुलन की वजह से यूरोप की पहली पसंद बन सकता है. ऐसे समय में जब यूरोप चीन से दूरी बनाने की ओर बढ़ रहा है, भारत के लिए व्यापार, निवेश और रणनीतिक साझेदारी में अभूतपूर्व वृद्धि का अवसर मौजूद है.
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