चीन ने ईरान को एयर डिफेंस सिस्टम्स मुहैया कराए हैं, जिनका इस्तेमाल इजरायल के हमलों से बचाव के लिए किया जा रहा था. रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि इन सिस्टम्स को ईरान से तेल के बदले में भेजा गया है. हालांकि, चीन ने इन खबरों को पूरी तरह से नकारते हुए कहा है कि उसने ऐसा कोई हथियार ईरान को नहीं भेजा है.
मिडिल ईस्ट आई की रिपोर्ट में बताया गया था कि इजरायल के साथ युद्धविराम समझौते के बाद, पिछले महीने ईरान को चीनी एयर डिफेंस सिस्टम की खेप भेजी गई थी. दावा किया गया कि यह एयर डिफेंस सिस्टम्स ईरान के तेल की कीमतों के बदले दिए गए थे, जिन्हें चीन ने खरीदा था.
चीन का स्पष्ट खंडन
इजरायल में स्थित चीन के दूतावास ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया. हिब्रू समाचार पत्र इजराइल हायोम को दिए गए बयान में चीन ने कहा कि वह कभी भी युद्ध में शामिल देशों को हथियार निर्यात नहीं करता है. इसके साथ ही, चीन ने यह भी स्पष्ट किया कि वह केवल ऐसे सामानों का निर्यात करता है जिन पर सख्त नियंत्रण होता है, और सामूहिक विनाश के हथियारों के प्रसार के खिलाफ मजबूत कार्रवाई करता है.
चीन के दूतावास ने अपने बयान में यह भी कहा कि "हम किसी भी प्रकार के सामूहिक विनाश के हथियारों के प्रसार का विरोध करते हैं और इस संबंध में हम अपनी प्रवर्तन क्षमताओं को निरंतर मजबूत कर रहे हैं."
ईरान-इजरायल संघर्ष और उसके बाद की स्थिति
यह मामला उस समय का है जब इजरायल और ईरान के बीच 12 दिनों तक चले संघर्ष ने पूरे मध्य-पूर्व में तकरार को जन्म दिया था. इस युद्ध के दौरान, इजरायल ने ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों और सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया. इसके परिणामस्वरूप, ईरान के बैलिस्टिक मिसाइलों का भंडार और लॉन्चरों की संख्या घट गई है. इजरायल का दावा है कि उसने ईरान के पास मौजूद 400 बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्चरों में से आधे से ज्यादा को नष्ट कर दिया था. इसके अलावा, इजरायल का अनुमान है कि युद्ध के शुरू होने से पहले ईरान के पास 2,000 से 2,500 बैलिस्टिक मिसाइलें थीं, जिनमें से 500 मिसाइलों का इस्तेमाल संघर्ष में किया गया.
चीन की भूमिका और रुख
चीन ने इस संघर्ष के दौरान इजरायल के हमलों की आलोचना की और शांति स्थापना के लिए "रचनात्मक भूमिका" निभाने का प्रस्ताव रखा, हालांकि उसने सीधे तौर पर इसमें किसी प्रकार की सैन्य भागीदारी से परहेज किया. कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इस संघर्ष ने यह स्पष्ट कर दिया है कि चीन मध्य-पूर्व में अपने प्रभाव का विस्तार करने में गंभीर नहीं है और वह ईरान को सीधे सैन्य सहायता देने में कोई रुचि नहीं रखता.
पिछले महीने, जब चीन के रक्षा मंत्रालय से पूछा गया था कि क्या वह ईरान को सैन्य मदद प्रदान करेगा, तो उन्होंने जवाब दिया कि उन्होंने पहले ही अपने विचार व्यक्त कर दिए हैं और "मध्य-पूर्व की स्थिरता सुनिश्चित करने में रचनात्मक भूमिका निभाते रहेंगे."
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