चीन ने अपनी सैन्य ताकत का एक और नया चेहरा दुनिया के सामने उजागर किया है. बीजिंग में आयोजित विजय दिवस परेड के दौरान पहली बार एयर लॉन्च्ड बैलिस्टिक मिसाइल (ALBM) JL-1 को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया गया. इस मिसाइल ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा विशेषज्ञों के बीच हलचल मचा दी है, क्योंकि इसकी तकनीक और पहुंच अत्यधिक खतरनाक मानी जा रही है.
JL-1 मिसाइल को खासतौर पर चीन के अत्याधुनिक H-6N स्ट्रैटेजिक बॉम्बर के लिए विकसित किया गया है. यह मिसाइल हवा में उड़ते हुए ही दागी जा सकती है, जिससे किसी भी देश की सीमा में प्रवेश किए बिना गहरे और सटीक हमले किए जा सकते हैं. इसकी अनुमानित मारक क्षमता 3,000 से 4,000 किलोमीटर के बीच मानी जा रही है, जो इसे अत्यधिक प्रभावशाली बनाती है.
H-6N बॉम्बर: JL-1 का प्रमुख वाहक
इस मिसाइल को ले जाने वाला H-6N बमवर्षक विमान पहली बार 2019 में सामने आया था. यह विमान हवा में ईंधन भरने की क्षमता रखता है, जिससे इसकी ऑपरेशनल रेंज 5,000 किलोमीटर तक पहुंच जाती है. इस बॉम्बर की सबसे बड़ी ताकत है – इसे दुश्मन की पहुंच से दूर रखकर भी मिसाइल हमले किए जा सकते हैं.
क्यों है JL-1 मिसाइल इतना बड़ा खतरा?
चीन के न्यूक्लियर ट्रायड का हिस्सा: JL-1 अब चीन की परमाणु रणनीति का अहम अंग बन चुकी है, जिससे वह जमीन, समुद्र और वायु – तीनों माध्यमों से परमाणु हमला करने में सक्षम हो गया है. सर्वाइवल क्षमता अधिक: इसे ऐसे समय में दागा जा सकता है जब अन्य हमले विफल हो जाएं. यानी “सेकंड स्ट्राइक कैपेबिलिटी” को यह मिसाइल मजबूती देती है.
डिफेंस सिस्टम को चकमा: यह मिसाइल दुश्मन के एयर डिफेंस सिस्टम को चकमा देने और उन्हें भेदने में भी सक्षम है, जिससे समय रहते प्रतिक्रिया देना मुश्किल हो जाता है.मोबिलिटी और फ्लेक्सिबिलिटी: इसे कहीं से भी दागा जा सकता है, जिससे चीन को रणनीतिक बढ़त मिलती है. इससे न्यूक्लियर हमले के पहले संकेत मिलने की संभावना बेहद कम हो जाती है.
चीन की मिसाइल नीति में नया अध्याय
JL-1 के साथ-साथ चीन पहले ही JL-3 जैसी सबमरीन लॉन्च्ड मिसाइल और DF-61 जैसी इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल के ज़रिए अपने परमाणु भंडार को विस्तार दे चुका है. अब JL-1 ने उसकी रणनीतिक शक्ति को और भी अधिक व्यापक और खतरनाक बना दिया है.
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