भारत के खिलाफ हुए हालिया सैन्य संघर्ष के बाद अब अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक नया समीकरण बनता दिख रहा है. चीन न सिर्फ पाकिस्तान की खुलेआम तारीफ कर रहा है, बल्कि दोनों देशों की सेनाओं के बीच बढ़ते सहयोग ने भारत की रणनीतिक चुनौतियों को और गहरा कर दिया है.
पाकिस्तानी वायुसेना प्रमुख एयर मार्शल जहीर अहमद बाबर सिद्धू और चीन के वायुसेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल वांग गांग की मुलाकात के बाद बीजिंग से आए बयान ने कई संकेत दे दिए हैं. साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट में कहा गया है कि वांग ने पाकिस्तानी पायलटों की "साहसिकता और अनुशासन" की सराहना करते हुए भारत के खिलाफ पीएएफ के प्रदर्शन को "मिसाल" बताया है.
भारत ने चेताया था, तीन मोर्चों पर था हमला
भारत के उपसेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण बयान में बताया कि भारत को 7 से 10 मई के संघर्ष के दौरान एक नहीं, बल्कि तीन मोर्चों पर सामना करना पड़ा. पाकिस्तान सामने था, चीन पर्दे के पीछे था और तुर्की हथियारों की आपूर्ति कर रहा था. उन्होंने यह भी कहा कि चीन ने अपने उपग्रहों की मदद से भारत की सैन्य गतिविधियों पर निगरानी रखी और इसकी जानकारी सीधे पाकिस्तान को साझा की जा रही थी.
जनरल सिंह ने चीन की कुख्यात "दूसरे के कंधे पर बंदूक रखकर गोली चलाने" वाली नीति का जिक्र करते हुए कहा कि बीजिंग ने एक बार फिर पुरानी रणनीति अपनाई है. खुद सामने आए बिना भारत को चोट पहुंचाने की कोशिश.
राफेल के खिलाफ चीन की छिपी साजिश?
इस बीच एक फ्रांसीसी खुफिया रिपोर्ट ने और भी चौंकाने वाला दावा किया है. रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने भारत और पाकिस्तान के बीच हुए टकराव के बाद एक प्रचार अभियान छेड़ा, जिसका मकसद फ्रांस में बने राफेल लड़ाकू विमानों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना था. एपी (एसोसिएटेड प्रेस) द्वारा देखी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन के कई विदेशी दूतावासों, खासकर इंडोनेशिया जैसे संभावित खरीदारों वाले देशों में, डिफेंस अटैशे को यह निर्देश दिया गया था कि वे राफेल की क्षमता पर सवाल उठाएं और चीन निर्मित लड़ाकू विमानों को विकल्प के रूप में पेश करें. यह अभियान ऐसे वक्त में चलाया गया जब भारत के पास मौजूद राफेल विमानों ने संघर्ष के दौरान प्रमुख भूमिका निभाई और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी साख और मांग बढ़ी.
भारत के लिए रणनीतिक सतर्कता का समय
इन तमाम घटनाओं के बाद भारत की सैन्य और कूटनीतिक मशीनरी को स्पष्ट संकेत मिल चुके हैं कि भविष्य में सिर्फ पारंपरिक युद्ध नहीं, बल्कि प्रचार, निगरानी और तकनीकी सहयोग जैसे क्षेत्रों में भी सतर्कता जरूरी है. चीन, पाकिस्तान और तुर्की की त्रिकोणीय समीकरण भारत के लिए एक दीर्घकालिक रणनीतिक चुनौती बनता जा रहा है.
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