Konkan Exercise 2025: भारत और यूनाइटेड किंगडम (UK) की नौसेनाओं ने अक्टूबर 2025 में एक उच्च स्तरीय द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास ‘कोंकण-25’ को सफलतापूर्वक संपन्न किया. यह अभ्यास हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में आयोजित हुआ, जो सामरिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण जलक्षेत्र है. यह अभ्यास सिर्फ एक सैन्य ऑपरेशन नहीं, बल्कि दोनों देशों के बीच रणनीतिक सहयोग, साझा हितों और रक्षा संबंधों को गहराई से दर्शाने वाला कदम है.
'कोंकण' नाम से जानी जाने वाली यह श्रृंखला भारत और यूनाइटेड किंगडम की नौसेनाओं के बीच कई वर्षों से आयोजित की जा रही है. 'कोंकण-25' इसका नवीनतम संस्करण है, जिसमें समुद्र में संचालित उच्च-तीव्रता वाली युद्धाभ्यास शामिल थी.
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— SpokespersonNavy (@indiannavy) October 9, 2025
Day 3 #ExKonkan2025
Participating forces maintained high operational tempo during advanced tactical air warfare and air defence drills involving carrier-based fighter aircraft.
Maritime patrol assets and anti-submarine warfare helicopters conducted complex, coordinated… https://t.co/FCQz6zR6iL pic.twitter.com/wPfrb3A3gF
क्या है इसका उद्देश्य?
‘कोंकण-25’ के दौरान दोनों नौसेनाओं ने हवा, सतह और जल-नीचे (sub-surface) तीनों युद्धक्षेत्रों में जटिल अभ्यासों को अंजाम दिया. इसमें शामिल थे:
1. एंटी-एयरक्राफ्ट ऑपरेशन्स:
डेक-बेस्ड फाइटर जेट्स और मैरीटाइम पैट्रोल एयरक्राफ्ट्स (MPA) की मदद से एयर डिफेंस ड्रिल्स की गईं. दोनों नौसेनाओं ने वायु खतरों की पहचान, ट्रैकिंग और न्यूट्रलाइजेशन पर संयुक्त अभ्यास किया.
2. एंटी-सबमरीन वॉरफेयर (ASW):
पनडुब्बियों की खोज और निष्क्रियता के लिए हेलीकॉप्टर, MPA और ASW फ्रिगेट्स का उपयोग हुआ. दोनों देशों की नौसेनाओं ने पनडुब्बियों की लोकेशन शेयरिंग और कोऑर्डिनेटेड हंटिंग ऑपरेशन को अंजाम दिया.
3. एंटी-सर्फेस मिशन:
सतह पर स्थित लक्ष्यों को निशाना बनाने के लिए युद्धपोतों ने मिसाइल फायरिंग और तोपखाने अभ्यास किए. अभ्यास में रीयल-टाइम टारगेट डेटा शेयरिंग और फायर कंट्रोल सिस्टम की इंटरलिंकिंग भी शामिल थी.
तकनीकी समन्वय और रीयल-टाइम डेटा लिंकिंग
एक बड़ी उपलब्धि यह रही कि दोनों नौसेनाओं ने रीयल-टाइम कम्युनिकेशन सिस्टम और डेटा लिंक नेटवर्किंग का सफलतापूर्वक उपयोग किया. इससे न केवल युद्ध स्थितियों में आपसी समन्वय बढ़ा, बल्कि यह भी सिद्ध हुआ कि भारत और ब्रिटेन अब समुद्री अभियानों में पूरी तरह से इंटरऑपरेबल हैं.
इसका अर्थ यह है कि दोनों देशों की नौसेनाएं भविष्य में किसी भी बहुपक्षीय या संयुक्त मिशन में सहज रूप से मिलकर काम कर सकती हैं, चाहे वह मानवीय सहायता हो, समुद्री डकैती के खिलाफ अभियान हो या संकट के समय युद्धक प्रतिक्रिया.
चीन को अप्रत्यक्ष चेतावनी
‘कोंकण-25’ अभ्यास केवल एक द्विपक्षीय रक्षा सहयोग नहीं था, बल्कि इसे हिंद महासागर क्षेत्र में शक्ति संतुलन की दिशा में एक ठोस कदम के रूप में भी देखा जा रहा है. विशेषज्ञों के अनुसार, यह अभ्यास विशेष रूप से उस समय हुआ जब चीन लगातार इंडो-पैसिफिक में अपनी नौसैनिक उपस्थिति बढ़ा रहा है. ब्रिटेन की रॉयल नेवी का भारत के साथ इतने करीबी ऑपरेशन में भाग लेना यह दर्शाता है कि पश्चिमी शक्तियां अब हिंद-प्रशांत में भारत को एक सामरिक साझेदार मान रही हैं.
‘स्टीमपास्ट’ से हुआ समुद्री चरण का समापन
अभ्यास के समुद्री चरण की समाप्ति पारंपरिक ‘स्टीमपास्ट’ समारोह के साथ हुई, जिसमें दोनों देशों के युद्धपोत एक-दूसरे के पास से गुजरे और नौसैनिक सलामी दी. यह सैन्य परंपरा युद्ध के मैदान में सम्मान और एकता का प्रतीक मानी जाती है.
संवाद, रणनीति और सांस्कृतिक मेलजोल
अब अभ्यास का दूसरा चरण ‘हार्बर फेज’ के रूप में आयोजित किया जाएगा, जिसमें दोनों देशों के नौसैनिक अधिकारी पेशेवर चर्चाओं में भाग लेंगे, सामरिक विषयों पर सेमिनार और वर्कशॉप्स होंगी, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों और परस्पर संवाद से नरम कूटनीति (Soft Diplomacy) को बढ़ावा मिलेगा.
भारत-ब्रिटेन रक्षा संबंधों की व्यापकता
ब्रिटेन और भारत के बीच रक्षा सहयोग सिर्फ नौसेना तक सीमित नहीं है. दोनों देश रणनीतिक डायलॉग और 2 2 मंत्रिस्तरीय संवाद करते हैं, रक्षा प्रौद्योगिकी और उद्योग में सहयोग को बढ़ा रहे हैं, और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में साझा रणनीतिक दृष्टिकोण विकसित कर रहे हैं. ‘कोंकण-25’ उसी श्रृंखला का हिस्सा है जो दोनों देशों के बढ़ते रक्षा संबंधों को दर्शाता है.
भविष्य के लिए नई नींव
‘कोंकण-25’ अभ्यास ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत और यूनाइटेड किंगडम समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में एक भरोसेमंद और प्रभावी साझेदारी की ओर बढ़ चुके हैं. इस अभ्यास ने साझा ऑपरेशनल समझ को बढ़ाया, तकनीकी एकरूपता (interoperability) को मजबूत किया और क्षेत्रीय शांति व स्थिरता की दिशा में एक ठोस कदम रखा. इस अभ्यास का महत्व आने वाले वर्षों में और अधिक बढ़ेगा, जब समुद्री चुनौतियां और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और अधिक तीव्र होंगी.
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