चीन मधुमक्खियों को क्यों दे रहा मिलिट्री ट्रेनिंग, ताइवान से जंग छिड़ी तो कैसे करेंगी काम?

    China Bee Army: जहां पूरी दुनिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ड्रोन टेक्नोलॉजी पर भरोसा कर रही है, वहीं चीन ने जंग का एक अनोखा और चौंकाने वाला तरीका अपनाया है. अब चीन की सेना में मधुमक्खियां शामिल हो गई हैं.

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    प्रतिकात्मक तस्वीर/Photo- FreePik

    China Bee Army: जहां पूरी दुनिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ड्रोन टेक्नोलॉजी पर भरोसा कर रही है, वहीं चीन ने जंग का एक अनोखा और चौंकाने वाला तरीका अपनाया है. अब चीन की सेना में मधुमक्खियां शामिल हो गई हैं. जी हां, ये वही मधुमक्खियां हैं जिन्हें आम तौर पर फूलों पर मंडराते देखा जाता है, लेकिन अब ये एक हाईटेक जैविक हथियार बन चुकी हैं. बता दें कि इन दिनों में चीन और ताइवान के बीच तनातनी देखने को मिल रही है. ऐसे में यह जान लेना जरूरी है कि युद्ध की स्थिति में चीन की सेना में शामिल हुईं मधुमक्खियां किस प्रकार काम करेंगी. 

    दुनिया की सबसे हल्की ब्रेन डिवाइस का कमाल

    बीजिंग इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने मधुमक्खियों को नियंत्रित करने के लिए एक माइक्रो ब्रेन कंट्रोलर विकसित किया है. इसका वजन मात्र 74 मिलीग्राम है और इसे मधुमक्खी की पीठ पर फिट किया जाता है. इस डिवाइस के जरिए मधुमक्खियों के दिमाग में इलेक्ट्रिक पल्स भेजे जाते हैं, जिससे उनकी उड़ान की दिशा को नियंत्रित किया जा सकता है.

    अब मधुमक्खियां भी लेंगी कमांड

    इस तकनीक के तहत मधुमक्खियों को दाएं, बाएं, आगे और पीछे उड़ने के निर्देश दिए जाते हैं, और आश्चर्यजनक रूप से 10 में से 9 मधुमक्खियों ने सही प्रतिक्रिया दी है. यानी मधुमक्खियां अब इंसानों की तरह कमांड फॉलो कर रही हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि ये जैविक ड्रोन्स पारंपरिक मिनी ड्रोन्स से ज्यादा प्रभावी साबित हो सकते हैं.

    सीक्रेट ऑपरेशन में होगी खास भूमिका

    चीनी सेना इन मधुमक्खियों का इस्तेमाल जासूसी, सीक्रेट मिशन और बायो-वारफेयर जैसे कार्यों में कर सकती है. मधुमक्खियों की मदद से दुश्मन के इलाके में बिना किसी संदेह के प्रवेश किया जा सकता है. उनका आकार छोटा होने के कारण ये रडार या निगरानी सिस्टम से आसानी से बच सकती हैं. हालांकि यह तकनीक पूरी तरह से परिपक्व नहीं है. मधुमक्खियों की पीठ पर लगाया गया डिवाइस अभी ज्यादा समय तक काम नहीं करता क्योंकि इसकी बैटरी क्षमता सीमित है. वैज्ञानिक इस चुनौती पर काम कर रहे हैं ताकि इसे अधिक स्थायी बनाया जा सके. 

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