आंध्र–छत्तीसगढ़ सीमा पर बड़ी कार्रवाई, खूंखार नक्सली कमांडर ढेर; पत्नी का भी हुआ एनकाउंटर

    आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित घने जंगल एक बार फिर गोलियों की आवाज़ से गूंज उठे. सोमवार सुबह शुरू हुआ सुरक्षाबलों का खास ऑपरेशन उस समय निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया जब देश के सबसे खतरनाक और रणनीतिक रूप से सक्षम नक्सली कमांडरों में गिने जाने वाले मादवी हिडमा को उसकी पत्नी के साथ ढेर कर दिया गया.

    Chhattisgarh Naxalite hidima and his wife encounter
    Image Source: Social Media

    आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित घने जंगल एक बार फिर गोलियों की आवाज़ से गूंज उठे. सोमवार सुबह शुरू हुआ सुरक्षाबलों का खास ऑपरेशन उस समय निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया जब देश के सबसे खतरनाक और रणनीतिक रूप से सक्षम नक्सली कमांडरों में गिने जाने वाले मादवी हिडमा को उसकी पत्नी के साथ ढेर कर दिया गया. दोनों कई वर्षों से वांछित थे और कई बड़े हमलों के लिए जिम्मेदार माने जाते थे.

    अल्लूरी जिले से सटे सुकमा के जंगलों में पिछले कुछ हफ़्तों से माओवादियों की आवाजाही बढ़ने की जानकारी मिल रही थी. इन इनपुट्स के आधार पर सुरक्षाबलों ने संयुक्त सर्च ऑपरेशन शुरू किया. अभियान के दौरान जवानों की टुकड़ी को जंगल में गहरी घुसपैठ करते हुए अचानक फायरिंग का सामना करना पड़ा. जवाबी कार्रवाई में मुठभेड़ भड़क उठी और इसी दौरान हिडमा और उसकी पत्नी दोनों गोलीबारी में मारे गए.

    दो दशक से सुरक्षा बलों के लिए सिरदर्द

    43 वर्षीय मादवी हिडमा का नाम देश के मोस्ट वांटेड नक्सलियों में शुमार था. वह PLGA की बटालियन नंबर 1 का कमांडर था और CPI (माओवादी) की केंद्रीय समिति का सबसे कम उम्र का सदस्य भी रह चुका था. जंगलों में गुरिल्ला युद्ध, तेजी से लोकेशन बदलने की कला और रणनीति बनाने की क्षमता ने उसे संगठन का सबसे शक्तिशाली चेहरा बना दिया था.उसकी पहचान सिर्फ एक फील्ड कमांडर की नहीं, बल्कि एक ऐसी शख्सियत की थी जिसकी हर चाल सुरक्षा एजेंसियों के लिए चुनौती बन जाती थी.

    सुकमा और दरभा घाटी जैसे हमलों का मुख्य चेहरे

    हिडमा की हिंसक पृष्ठभूमि बेहद लंबी रही है. वर्ष 1981 में सुकमा के पुवर्ती इलाके में जन्मे हिडमा ने किशोरावस्था में ही हथियार थाम लिया था. 2013 के कुख्यात दरभा घाटी नरसंहार में उसकी साजिश केंद्रीय थी, जिसमें कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं सहित 27 लोग मारे गए थे.इसके बाद 2017 के सुकमा हमले में भी उसकी भूमिका निर्णायक थी, जहाँ 25 सीआरपीएफ जवानों ने अपनी शहादत दी. उसके नाम 25 से अधिक बड़े नक्सली हमले दर्ज थे और उस पर एक करोड़ रुपए का इनाम घोषित था.

    पत्नी भी संगठन में सक्रिय सदस्य

    मुठभेड़ में मारी गई उसकी पत्नी भी नक्सली गतिविधियों में लंबे समय से शामिल थी. वह कई ऑपरेशनों में हिडमा के साथ दिखाई दी थी और संगठन के अंदर उसकी एक अलग पहचान थी. सुरक्षाबलों के अनुसार दोनों मिलकर दक्षिण बस्तर क्षेत्र में माओवादियों की ताकत को बनाए रखने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे थे.

    संगठन पर गहरा असर

    सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि हिडमा की मौत माओवादी नेटवर्क के लिए एक बड़ा झटका है. वह न केवल रणनीति बनाता था, बल्कि कई इलाकों में माओवादियों की पकड़ बनाए रखने की मुख्य कड़ी भी था. उसकी मौत के साथ माओवादियों को नेतृत्व स्तर पर भारी नुकसान हुआ है और आने वाले महीनों में उनके नेटवर्क के कमजोर पड़ने की उम्मीद जताई जा रही है.

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