कौन हैं वो पुलिस अधिकारी, जिनके नाम से कांपते हैं नक्सली, माओवादियों के लिए बने काल

    IPS Sundarraj P Bastar IG: आंध्र प्रदेश के घने, भयावह और दुर्गम जंगल आज एक बड़े ऑपरेशन के गवाह बने, जहां सुरक्षा बलों ने भारत के सबसे कुख्यात नक्सली कमांडरों में से एक, माड़वी हिडमा उर्फ संतोष को मार गिराया.

    Chhattisgarh IPS Sundarraj P Bastar IG anti naxali operation hidma encounter
    Image Source: ANI/ File

    IPS Sundarraj P Bastar IG: आंध्र प्रदेश के घने, भयावह और दुर्गम जंगल आज एक बड़े ऑपरेशन के गवाह बने, जहां सुरक्षा बलों ने भारत के सबसे कुख्यात नक्सली कमांडरों में से एक, माड़वी हिडमा उर्फ संतोष को मार गिराया. एक करोड़ रुपये के इनामी इस आतंक के अंत के साथ ही बस्तर में चल रहे सुरक्षा अभियानों को नई मजबूती मिली है. लेकिन इस सफल अभियान की कहानी सिर्फ इतने पर खत्म नहीं होती. 

    इसके पीछे खड़ा है वह नाम जिसने बस्तर में नक्सलियों को पहली बार बचाव की स्थिति में ला दिया, आईजी सुंदरराज पी. पिछले कुछ सालों में बस्तर में जिस तेजी से नक्सली नेटवर्क कमजोर पड़ा है, उसका श्रेय अक्सर एक ही आवाज में लिया जाता है, सुंदरराज पी की अनोखी रणनीतियों, उनकी ग्राउंड कनेक्टेड सोच और जंगलों की गहराई तक उतरकर ऑपरेशन चलाने की क्षमता को.

    कोयंबटूर का साधारण लड़का, जो बना भारत के सबसे चुनौतीपूर्ण इलाकों का रणनीतिक योद्धा

    सुंदरराज पी की कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं लगती. तमिलनाडु के कोयंबटूर में 27 फरवरी 1980 को जन्मे सुंदरराज एक साधारण परिवार में पले-बढ़े. बचपन से ही पढ़ाई में तेज, जिज्ञासु और अनुशासनप्रिय, लेकिन यह किसी ने नहीं सोचा था कि आगे चलकर वही लड़का भारत के सबसे नक्सल-प्रभावित इलाके का सबसे भरोसेमंद चेहरा बन जाएगा.

    कोयंबटूर के लोकल स्कूलों में पढ़ाई करते हुए वे हमेशा टॉपर्स में रहे. विज्ञान में रुचि ने उन्हें बीएससी एग्रीकल्चर की तरफ मोड़ दिया. पढ़ाई खत्म होते ही उन्होंने यूपीएससी का रास्ता चुना, वह रास्ता जो हजारों के सपने तोड़ देता है, लेकिन सुंदरराज ने इसे अपनी मंज़िल बना लिया. किताबों के बीच बिताई गई अनगिनत रातों ने उन्हें वह सफलता दिलाई जिसकी चाह हर युवा करता है. 2003 में उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा पास की और देश की सबसे प्रतिष्ठित सेवा में शामिल होकर आईपीएस बने.

    छत्तीसगढ़ कैडर और एक ऐसा मोड़, जिसने जिंदगी को मिशन में बदल दिया

    यूपीएससी पास करने के बाद उनका चयन छत्तीसगढ़ कैडर में हुआ, वह कैडर जिसके नाम के साथ ही नक्सल हिंसा, घने जंगल और लगातार चुनौतियां याद आती थीं. सुंदरराज एक इंटरव्यू में बता चुके हैं कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि किस्मत उन्हें बस्तर के जंगलों तक ले आएगी. 

    लेकिन एक बार जब वे यहां आए, तो यह इलाका उनके लिए नौकरी नहीं, बल्कि मिशन बन गया. 5 सितंबर 2003 को सर्विस जॉइन करने वाले सुंदरराज तब सिर्फ 23 साल के थे. ट्रेनिंग पूरी होते ही उन्हें बस्तर भेजा गया, सिर्फ 25 साल की उम्र में. यहीं से शुरू हुआ वह सफर, जिसने आने वाले दो दशकों में नक्सलियों को रणनीतिक, मानसिक और जमीनी स्तर पर लगातार कमजोर करना शुरू किया.

    जंगलों को किताब की तरह पढ़ने वाला अधिकारी

    बस्तर के जंगल किसी आम इलाके की तरह नहीं हैं. यहां इतनी घनी हरियाली है कि धूप जमीन तक नहीं पहुँच पाती. रास्ते इतने उलझे हुए कि स्थानीय लोग भी कई बार भ्रमित हो जाएं. और हर मोड़ पर मौत का खतरा, नक्सलियों की घात, आईईडी, जंगल की कठिन भौगोलिक स्थिति.

    लेकिन सुंदरराज पी ने इन जंगलों को ऐसे समझा जैसे वे हमेशा से यहीं के हों. उनकी सबसे बड़ी ताकत यही रही कि उन्होंने नक्सलियों की मानसिकता को पढ़ना सीख लिया, वे कैसे सोचते हैं, कैसे मूव करते हैं, कैसे भ्रम फैलाते हैं और कैसे खुद को छिपाते हैं. यह समझ ही बस्तर पुलिस की सबसे बड़ी रणनीतिक संपत्ति बन गई.

    22 साल की सर्विस, ज्यादातर समय मौत और चुनौती के सबसे करीब

    आज 45 वर्ष के हो चुके सुंदरराज की 22 साल की पुलिस सर्विस में ज्यादातर समय नक्सल बेल्ट में बीता है. सरकार ने उन्हें लगातार बस्तर में ही रखा, क्योंकि हर ऑपरेशन, हर रणनीति और हर कदम में उनका अनुभव अनमोल साबित हो रहा था.

    उनकी मौजूदगी में सुरक्षा अभियानों ने नई धार पकड़ी. उनकी योजनाओं ने नक्सलियों को बैकफुट पर धकेला. और आज जिस हिडमा जैसे नाम का अंत हुआ, जो सालों से सुरक्षा एजेंसियों के लिए सिरदर्द था, वह भी इसी निरंतर अभियान का नतीजा है.

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